Published On : Fri, Dec 28th, 2018

संतान को धन का नहीं धर्म का वारिस बनाएंः आचार्यश्री सुधांशुजी महाराज

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नागपुर: मानव जीवन प्रभु का दिया गया अनुपम उपहार है। इसका एक- एक क्षण बड़ा मूल्यवान है। जीवन के हर क्षण का भरपूर उपयोग प्रभु की भक्ति में करना चाहिये। हमारे हाथों में समय की पूंजी के नाम पर यही वर्तमान पल है। इसलिये अपने हर पल को परमात्मा में लगा दो। समय को पकड़ कर नहीं रख सकते इसलिये इसे संभालने वाले बन जाओ। उक्त उद्गार विश्व जागृति मिशन के तत्वावधान में आयोजित पांच दिवसीय विराट भक्ति सत्संग के तीसरे दिन प्रवचन के अवसर पर आचार्यश्री सुधांशुजी महाराज ने व्यक्त किए। विराट भक्ति सत्संग का भव्य आयोजन महावीर मैदान, गणेश नगर, ग्रेट नाग रोड में जारी है।

आचार्यश्री ने श्रीकृष्ण द्वारा ‘समय की महत्ता’ पर दिए गए संदेश पर विशेष चर्चा करते हुए समय को सबसे बड़ा देवता बताया। उन्होंने कहा कि समय का सही नियोजन करने वाले व्यक्ति ही जीवन में उंचे उठते हैं। इतिहास भी केवल उन्हीं को याद रखता है जो समय का सम्मान करते हैं। इसलिये जीवन के एक- एक पल का सदुपयोग करते हुए निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिये। उन्होंने कर्मयोग का उद्बोधन करते हुए राजा जनक की भांति कर्म को अपने उद्धार का माध्यम बनाने की बात कही। उन्होंने कहा कि कर्म की लिप्तता से कमलपत्रवत् की तरह जीवन जीना चाहिये। मोह इस लिप्तता को बढ़ाता है।

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हैरत की बात है कि मोह प्रेम जैसा ही दिखता है। मोह प्रेम जैसा दिखता तो है पर वह वैसा है नहीं। इसलिये अपने बच्चों को साधन एकत्र करके देने के स्थान पर उन्हें शिक्षा, संस्कार, धर्म आदि के ज्ञान से अवगत करना चाहिये व देना चाहिये। संतान को धन का वारिस बनाने की बजाय धर्म का वारिस बनाना चाहिये। प्रभु से प्रार्थना करो कि संतान कर्म योगी बने, धर्म योगी बने।

हर व्यक्ति में उस परमात्मा के अंश की शक्ति छिपी होती है। उस आंशिक शक्ति को यदि हम धर्म, भक्ति और कर्म से पोषित करें तो परमात्मा स्वयं आपमें प्रकट हो जाते हैं। उस व्यक्ति में प्रभु अवतार ले लेते हैं। भगवान श्री कृष्ण ने धर्म की स्थापना के लिये दुष्टों का दलन किया। कोई भी कर्म दिव्य कर्म बनना चाहिये। श्रीकृष्ण ने श्रीमद् भागवत में कहा है कि जब जब संसार में अधर्म बढ़ेगा, अधर्म की प्रधानता होने लगेगी, तब तब मैं इस धरा पर अवतार लूंगा। धर्म के लिये कार्य करने वालों पर प्रभु की कृपा हमेशा बनी रहती है।

उन्होंने आगे कहा कि जीवन में निरंतर आगे बढ़ते रहो। पीछे मुड़कर देखने वाले सदा पीछे ही रह जाते हैं। जो सीधा और आगे की ओर देखता है वह अपने लक्ष्य की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। प्रभु भी ऐसे भक्त के लक्ष्य की पूर्ति में सहायक बनते हैं। जब आप प्रभु से जुड़ जाते हैं प्रभु आपके हर कार्य के लिये ‘तथास्तु’ कहते हैं। वहीं जहां तामसिकता की भावना बढ़ने लगे तो समझो की प्रभु की कृपा वहीं रूक गई है।

हमारे भीतर धन को देखकर नहीं धर्म को देखकर लालच जागृत होना चाहिये। जिसके भीतर धर्म व संस्कार आ जाते हैं परमात्मा उसी के भीतर वास करने लगते हैं। आज व्यासपीठ का प्रथम पूजन मुख्य यजमान दिलीप मुरारका परिवार, सहित अन्य ने किया। सफलातार्थ विश्व जागृति मिशन के समस्त पदाधिकारी व कार्यकर्ता प्रयासरत हैं। सत्संग का समय सुबह 9 से 11.30 और शाम को 4 से 6.30 बजे तक रखा गया है। यह आयोजन 30 दिसंबर जारी रहेगा।

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