मनुष्य को स्नेहभाव के साथ उत्तरोत्तर प्रगति का संदेश देनेवाली मकर संक्रांति !
मकर संक्रांति यह प्रकृति से संतुलन साध्य करने का उत्सव है । यह, पूरे भारत में विविध नामों से मनाया जाता है । छत्तीसगढ, गोवा, ओडिशा, बिहार, झारखण्ड, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, राजस्थान, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात और जम्मू आदी राज्यों में यह उत्सव मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है ।
तमिळनाडु में इसे ‘पोंगल’ कहा जाता है । सिंधी लोग इस पर्व को ‘तिरमौरी’ कहते हैं । यही त्यौहार गुजरात और उत्तराखंड में ‘उत्तरायण’ नाम से भी जाना जाता है । हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब में ‘माघी’, असम में ‘भोगाली बिहु’ के नाम से मनाया जाता है । कश्मीर घाटी में इसे ‘शिशुर सेंक्रात’ कहां जाता है । उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार में यह उत्सव ‘खिचडी’ पर्व के नाम से भी जाना जाता है । पश्चिम बंगाल में इसे ‘पौष संक्रान्ति’, तो कर्नाटक में ‘मकर संक्रमण’ कहते है । पंजाब में यह उत्सव ‘लोहडी’ नाम से भी मनाया जाता है ।
यहां पर हमें ध्यान में यह लेना है की, भारत में सभी स्थानों पर यह उत्सव मनाया जाता है । जिससे हिन्दु धर्म का महत्व भी ध्यान में आता है । संस्कृति के कारण एकता साध्य होती है । देश तो केवल भौगोलिक सीमाएं है, पर संस्कृति के कारण वह राष्ट्र का रूप धारण कर भिन्न भाषा और भौगोलिक प्रदेश के लोगोंको भी एक धागे में कैसे पिरोता है, यह हमें इससे ध्यान में आता है । इसलिए त्योहारोंका एक अनन्यसाधारण महत्त्व है । इससे भी यह स्पष्ट होता है की, भारत में भाषा, राज्य भिन्न हो, तो भी एक संस्कृती-एक राष्ट्र है। इसकारण भारत कभी एक राष्ट्र नही था, इस आरोप का मिथ्या रूप भी ध्यानमें आता है ।
मकर संक्रांति अन्य देशों में मनाई जाती है !
संक्रांति यह त्यौहार भारत के साथ ही विदेशों में भी मनाया जाता है । बांग्लादेश में इस त्यौहार को ‘शंक्रेन’ (Shakrain) और ‘पौष संक्रान्ति’ के नाम से मनाया जाता है ।
नेपाल
भारत का पडोसी देश नेपाल में यह पर्व अलग-अलग नाम व भिन्न-भिन्न रीति-रिवाजों द्वारा भक्ति और उत्साह से मनाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन किसान अच्छी फसल होने पर भगवान का धन्यवाद करते हैं और अपनी कृपा दृष्टी बनाए रखने की प्रार्थना करते है । नेपाल में मकर संक्रांति को ‘माघे-संक्रांति’, ‘सूर्योत्तरायण’ और थारू समुदाय में ‘माघी’ कहा जाता है । इस दिन नेपाल में सार्वजनिक अवकाश होता है । यह पर्व थारू समुदाय का प्रमुख त्यौहार है । नेपाल के अन्य समुदाय के लोग भी तीर्थस्थल में स्नान करके दान-पुण्य करते हैं । इसके साथ ही तिल, घी, शर्करा (चिनी) और कन्दमूल खाकर यह पर्व मनाते हैं ।
थाईलैंड
थाईलैंड में अप्रैल में यह पर्व मनाया जाता है । वहां पर इस पर्व को ‘सॉन्कर्ण’ के नाम से जानते हैं । यहां की संस्कृति भारतीय संस्कृति से भिन्न है । कहां जाता है कि थाईलैंड में प्रत्येक राजा की अपनी विशेष पतंग होती थी, जिसे जाडे के मौसम में भिक्षु और पुरोहित देश में शांति और खुशहाली की आशा में उडाते थे ।
म्यानमार
म्यानमार में भी अप्रैल में यह पर्व ‘थिनज्ञान’ के नाम से मनाया जाता है । म्यानमार में यह पर्व ३-४ दिन तक चलता है । माना जाता है कि यहां पर यह पर्व नए साल के आने की खुशी में मनाया जाता है ।
श्रीलंका
श्रीलंका में मकर संक्रांति मनाते की पद्धति भारतीय संस्कृति से थोडी भिन्न है । यहां पर इस पर्व को ‘उजाहवर थिरुनल’ नाम से जाना जाता है । तमिलनाडु के लोग यहां पर रहते हैं, इसलिए श्रीलंका में इस पर्व को ‘पोंगल’ भी कहते हैं ।
कंबोडिया
कंबोडिया में मकर संक्रांति को ‘मोहा संगक्रान’ कहा जाता है । यहां भारतीय संस्कृति की झलक देखने को मिलती है । माना जाता है कि यहां के लोग नए वर्ष के आने और पूरा वर्ष खुशहाली बनी रहे, इसके लिए ये पर्व हर्षोल्लास से मनाते हैं ।
भारतीय संस्कृति में मकरसंक्रांति का त्यौहार आपसी मनमुटाव भुलाकर प्रेमभाव बढाने के लिए मनाया जाता है । परंतु यदि हम राष्ट्र का विचार करेंगे, तो स्थिति अत्यंत हृदयविदारक है । आतंकवाद, भ्रष्टाचार, खून, बलात्कार, गुंडगिरी, दंगे और बमविस्फोट और अभी चल रहा कोरोना महामारी का काल ! क्या सच में हम हर्षोल्लास से मंगलमय वातावरण में त्यौहार मनाने की स्थिति में हैं ? इसका उत्तर है – नहीं । फिर इसे बदलने के लिए क्या करना चाहिए ? क्या इस स्थिति को बदलना असंभव लगता है ? राज्य, धर्म और प्रकृति का सीधा संबंध होता है। आजकल राजा धर्माष्ठित न होने से और अधिकांश प्रजा का भी धर्मपालन न करने से वातावरण में रज-तम गुणों की प्रबलता बढ गई है । जब राजा धर्माधिष्ठित होगा और प्रजा भी धर्मपालन करेगी, तब वातावरण पूर्व के अनुसार पुन: सात्त्विक होगा ।
१. ‘जीवन में सम्यक क्रांति लाना’ मकरसंक्रांति का आध्यात्मिक तात्पर्य है । आज राष्ट्र की स्थिति को देखते हुए आंतरबाह्य वैचारिक क्रांति की अत्यंत आवश्यकता है । इसके लिए हिन्दुआें का संगठित होना, वर्तमान की मांग है । संक्राति देवता सात्त्विकता लेकर आते हैं और अनिष्ट का नाश करते हैं । हमें धर्माचरण के द्वारा सात्त्विकता का लाभ लेना है। संतोंने एवं द्रष्टों ने बताए अनुसार आगे आनेवाले भीषण आपत्काल को ध्यान में लेते हुए वर्तमानकाल में साधना और हिन्दू संगठन करना आवश्यक है । इस मकरसंक्रांति के शुभअवसर पर हम धर्माचरण करने का संकल्प करे । अपना धर्म समझकर धर्माभिमानी बने !