Published On : Thu, Feb 22nd, 2018

‘मैग्नेटिक महाराष्ट्र’ – विदर्भ को क्या मिला ?

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Magnetic Maharashtraनागपुर: हाल ही में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की मौजूदगी में ‘मैग्नेटिक महाराष्ट्र’ का कार्यक्रम आयोजित हुआ, इसे कइयों ने देखा होगा। इस मैग्नेटिक महाराष्ट्र, अर्थात जिसका हिंदी अनुवाद चुंबकीय महाराष्ट्र होता है, सम्मेलन के दौरान 4106 समझौतों पर करार हुए, जिसके माध्यम से अकेले तीन दिनों के भीतर प्रदेश में 12 ट्रिलियन रुपए के निवेश का भरोसा दिलाने की कोशिश की गई।

वैसे देखा जाए तो भोली भाली प्रदेश के साथ साथ देश की आम आबादी को मिलियन और बिलियन में फर्क करना कठिन होता है, ऐसे में ट्रिलिय के अंक की कल्पना थोड़ा टेढ़ा साबित हो रहा है। लेकिन इसे हम सरल कर देते हैं। एक ट्रिलियन याने 1 के पीछे पूरे एक दरर्जन शून्य के आंकड़े लगे होना। यह कुछ ऐसे दिखाई देगा 1,000,000,000,000। इसे और आसान कर देते हैं। बता दें इसे एक लाख करोड़ का आंकड़ा कहा जाता है। यानी यह, कि मुख्यमंत्री महोदय ने समझौते के माध्यम से प्रदेश में 12 लाख करोड़ रुपए के निवेश पर हस्ताक्षर किए जाने का दावा किया है। लेकिन इतनी बड़े पूंजी निवेश में से विदर्भ के हिस्से में कितनी पूंजी आएगी, फिलहाल इसका साफ खुलासा नहीं किया गया है

लेकिन यह जान लेना भी यहां जरूरी है कि प्रदेश में मेक इन इंडिया के तहत दो वर्ष पहले मात्र 8 लाख रुपए ही पूरे प्रदेश के लिए मिल पाए थे।

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विदर्भ को क्या मिलेगा?

मुख्यमंत्री ने इस दौरान यह बताया कि इससे 36.77 लाख रोजगार का निर्माण होगा। प्रदेश और केंद्र सरकार के बीच हुए 104 करारों के जरिए 3.9 लाख करोड़ रुपए का निवेश प्रदेश में होगा। देखा जाए तो विदर्भ प्रदेश के भौगोलिक आकार के अनुपात में 31.6 और आबादी में 21.3 प्रतिशत की हिस्सेदारी आती है। वहीं प्रदेश के दो संभाग इस अंचल में आते हैं। ऐसे में इस अधिकार से यहां निवेश का अनुपात भी 30 प्रतिशत अगर माना जाए, तो अकेले विदर्भ में 3 लाख करोड़ रुपए के निवेश की गारंटी मानी जानी चाहिए। लेकिन असल में ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा है। कारारो में से केवल दो समझौतों पर सहमति बनी है। जिससे मात्र 2 हजार करोड़ रुपए के निवेश का ही रास्ता खुल पाया है, जो करीब 2 से 3 हजार से अधिक का रोजगार पैदा नहीं कर सकता। ऐसे में 37 लाख रोजगार के दावों की बुनियाद जांच लेने की जरूरत नितांत महसूस होती है।

मीडिया  में प्रकाशित रिपोर्ट में मुख्यमंत्री फडणवीस द्वारा ने मीडिया को साक्षातकार में बताते हैं कि इसमें से कुछ कम्पनियों ने आर्थिक रूप से पिछड़े विदर्भ, मराठवाड़ा और उत्तर महाराष्ट्र में निवेश के लिए भी करार किए हैं। वहीं महिन्द्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिन्द्रा ने यह घोषणा भी की है कि नागपुर में वे 125 करोड़ रुपए का निवेश सभी प्रकार के ग्रीन टेक उत्पाद हब के लिए करेंगे जो करीब 2500 रोजगार पैदा करेगा। इसी तरह ऊर्जा मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले के ऊर्जा विभाग और गिरिराज रिन्युएबल्स प्रायवेट लिमिटेड के बीच हुए करार के अनुसार यहां सौर ऊर्जा पैनल्स उत्पादन के लिए 21 सौ करोड़ रुपए का निवेश किया जाएगा। इसी तरह महाजेनको ने भी उमरेड में 800 मेगावॉट की बिजली परियोजना के लिए 5200 करोड़ रुपए के निवेश के एमओयू पर हस्ताक्षर किया है। इन तमाम करारों में केवल यही 52 सौ करोड़ रुपए के निवेश का करार ही सतही जान पड़ता है। लेकिन ये परियोजना भी कोयला मांगेगी जो सूबे में वन क्षेत्र को कम करेगी और खनन पट्‌टे के क्षेत्र को बढ़ाएगी। इससे नागपुर व आस पास का इलाका चंद्रपुर की तर्ज पर भारी प्रदूषण की चपेट में आ जाएगा। लेकिन फिर भी बड़ा सवाल यही उठता है कि आखिर यह सब किसके लिए और क्यों किया जा रहा है। पश्चिम महाराष्ट्र के औद्योगिक विकास की गति को बनाए रखने के लिए?

उड़ान की उम्मीद

इन सारी लोकलुभावन घोषणाओं के बीच मात्र उड़ान परियोजना ऐसी है जो यहां एयरो स्पेस उद्योग और डिफेंस हब एंसिलरी के लिए तकनीकी मानव बल विकास के रास्तों को खोलेगा। नागपुर एमआरओ के पूरी क्षमता में काम करने के बाद डिफेंस क्षेत्र में निवेश बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त होगा। यह परियोजना इस क्षेत्र में 8वीं के ड्रॉप आउट से लेकर पॉलिटेक्निक पास 50 हजार बेरोजगारों को रोजगार की गारंटी भी देगा। इस परियोजना को यहां लाने का श्रेय सेवानिवृत्त जनरल रवींद्र थोगड़े और दुश्यंत देशपांडे को जाता है, जो बीते कुछ समय से इसके पीछे लगे रहे। लेकिन इन सब के बीच तेलंगाना राज्य, जो न्यूनतम या कर मुक्त व्यवस्था के अधीन उद्योगों को आने का न्यौता दे रहा है, उद्योगों को प्रदेश में लाने की राह में एक बड़ा रोड़ा दिखाई पड़ता है। नागपुर टुडे से बातचीत के दौरान दुश्यंत ने कहा भी, ‘इन सब के बीच मुख्यमंत्री फडणवीस द्वारा यहां प्रदेश सरकार की जीएसटी में हिस्सेदारी छोड़ने का ऐलान स्वागत योग्य माना जाना चाहिए। यह परियोजना विदर्भ, विशेष तौर से मिहान, में निवेश का रास्ता साफ करेगी। लेकिन यहां भी एक पेंच है, कि यह परियोजना भी जिसे यही दोनों सख्सियत इसे साकार रहे हैं, कहीं मैग्नेटिक महाराष्ट्र की घोषणाओं की फेहरिस्त में शामिल तो नहीं कर ली जाएगी? ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि किसान आत्महत्याग्रस्त और बेरोजगारी वाले विदर्भ को इससे क्या हासिल होगा?

इस कॉन्क्लेव में भाग लेने वाले अंचल के एक उद्योगपति ने नागपुर टुडे से बातचीत में कहा कि यह एक बेहतरीन कॉन्क्लेव था जो कि विशेष रूप से मुंबई को ही लाभ पहुंचाने के हिसाब से तैयार किया गया है। जहां रिलायंस इंडस्ट्रीड लिमिटेड 60 हजार करोड़ रुपए और वर्जिन हायपरलूप 40 हजार करोड़ रुपए मुंबई पुणे के बीच हायस्पीड ट्रेन के लिए निवेश करने राजी हैं। इसी तरह के अन्य निवेश भी पश्चिम महाराष्ट्र में होते दिखाई दे रहे हैं। जबकि पिछड़े विदर्भ में मात्र कुछ सौ करोड़ रुपए के निवेश का झुनझुना थमाकर मन बहलाने की कोशिश की जा रही है।

मुख्यमंत्री कहते हैं, लॉयड मेटल एंड एनर्जी प्रायवेट लिमिटेड की ओर से नक्सलग्रस्त गडचिरोली जिले में 700 करोड़ रुपए के निवेश पर करार हुआ है। इसी तरह आदिवासी बहुल जिला नंदूरबार में जीनस पेपर्स एंड बोर्ड लिमि़टेड की ओर से 700 करोड़ रुपए के निवेश का समझौता किया गया है। इसी प्रकार नांदेड में इंडिया एग्रो अनाज लिमिटेड 200 करोड़ व हिंगोली में शिउर एग्रो लिमिटेड के साथ 125 करोड़ रुपए का निवेश का करार हुआ है, वह भी तब जब हिंगोली को गैर औद्योगिक क्षेत्र करार दिया गया था।

सवाल बरकरार, कितने समझौते होंगे साकार

इस सवाल के जबाव में मुख्यमंत्री जवाब बताते हैं कि बीते रिकॉर्ड बताते हैं कि निवेश के करार 60 प्रतिशत ही हकीकत में साकार हो पाते हैं। लेकिन इस बार के इतने बड़े पैमाने पर हुए करारों को देखकर यही मानाया जा रहा है कि इनमें से कम से कम 50 प्रतिशत निवेश होने चाहिए। लेकिन सवाल फिर भी वहीं बरकार है कि अमरावती और अकोला में टेक्सटाइल हब बनाने के वादे की तरह कहीं यह दावे भी खोखले न निकलें। करारों की कथनी, करनी में कितनी तब्दील होती है, यह तो आनेवाला वक्त ही बताएगा।

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