ईओडब्ल्यू एक भी आरोप को अब तक नहीं पकड़ पाई
नागपुर: आरटीओ में लर्निंग लाइसेंस बनानेवाले घोटाले में भले ही पुलिस ने 17 आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया हो लेकिन आर्थिक अपराध शाखा के हाथ अब तक एक भी आरोपी नहीं लगने की बात खुद विभाग की डीसीपी श्वेता खेडकर ने कही है. बता दें पिछले रास्ते से लर्निंग लाइसेंस बना कर देनेवाले इस गिरोह के आरोपियों में मोटर विहिकल इंस्पेक्टर समेत पांच दूसरे एसिस्टेंट मोटर विहिकल इंस्पेक्टर के नाम भी शामिल हैं.
डीसीपी खांडेकर ने बताया कि इस मामले की जांच में अब भी कई अनसुलझे पहलु सीताबर्डी पुलिस ने छोड़ रखे हैं. उन्होंने भरोसा दिलाया कि आर्थिक अपराध शाखा इस संबंध में गहन जांच कर रही है और किसी भी दोषी को बक्शा नहीं जाएगा.
बता दें इस मामले में कई अधिकारियों के शामिल होने और जांच की गति को बढ़ाने के लिए पुलिस आयुक्त डॉ. भूषण कुमार उपाध्याय ने मामले को सीताबर्डी पुलिस के हाथों से निकालकर आर्थिक अपराध शाखा को सौंपा था.
आरोपी अधिकारी अब भी आरटीओ कार्यालय में काम करते देखे जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि पुलिस इस मामले में आरटीओ कार्यालय परिसर में पुलिस उनके कर्मचारियों के साथ कुछ नहीं कर सकती. उन्हें काम करने देने या उनके कार्यकाल को अवरुद्ध करने का अधिकार आरटीओ के पास है.
बता दें कि इस मामले के आरोपियों में एमवीआरई अभिजीत खारे और विलास ठेंगे, एएमवीआई मंगेश राठोड़, संजीवनी चोपड़े, शैलेश कोपुल्ला, संजय पल्लेवाड़ और मिथुन डोंगरे समेत दो क्लर्क, रिटायर्ड ऑफिस सुपरिटेंडेंट प्रदीप लेहगांवकर और दीपाली भोयर और आठ बाहरी एजेंटों का समावेश है. इनमें अश्विन सावरकर, राजेश देशमुख, अरुण लांजेवार, उमेश दिवडोंडे, अमोल पांतावने, ऑरेंज इंफोटेक प्रायवेट लिमिटेड के जेरोम डिसूजा और उसके एक एम्प्लाइ का समावेश है.
सीताबर्डी पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ आपीसी की धारा 419, 420, 464, 465, 468 व आईटी एक्ट के सेक्शन 66 (C), (D) के तहत मामला दर्ज किया है.
इस मामले को उजागर करनेवाले एक्टिविस्ट और शिवसेना के शहर समन्वयक नितिन तिवारी ने कहा कि सीताबर्डी पुलिस की ओर से 17 आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज करने के बाद भी ईओडब्ल्यू की ओर से एक भी आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया गया है. सारे आरोपी शहर में ही हैं और एंटीसिपेटरी बेल मिलने का इंतेजार कर रहे हैं. वे आगे बताते हैं कि आरटीओ के पास अपने ई-सिस्टम का आईडी और पासवर्ड होता है जिसे केवल अधिकारियों को ही एक्सेस होता है. लेकिन ये आरोपी अधिकारी अपना आईडी और पासवर्ड दलालों के साथ साझा करते थे ताकि वे अपने मंसूबों को अंजाम दे सके. इससे दलालों ने मनमर्जी ढंग से लर्निंग लाइसेंस जारी किए.