नागपुर – राष्ट्रीय महामार्गों की बदहाल स्थिति को लेकर अधिवक्ता अरुण पाटिल द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने एनएचएआई को फटकार लगाई है। विशेष रूप से काटोल नाका से फेटरी तक के संकरे मार्ग के चौड़ाईकरण को लेकर कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है और कार्य में देरी पर नाराजगी जताई है।
एनएचएआई की ओर से पुनः समय मांगे जाने पर, कोर्ट ने इसे अंतिम अवसर बताते हुए ₹1 लाख की राशि दो सप्ताह के भीतर सरकारी वकील कार्यालय में जमा करने की शर्त पर समय विस्तार की अनुमति दी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि समय मांगे जाने का कोई ठोस कारण प्रस्तुत नहीं किया गया, लेकिन सार्वजनिक हित में होने के कारण अंतिम अवसर देना उपयुक्त समझा गया।
लाइब्रेरी विकास के लिए होगा जुर्माने का उपयोग
कोर्ट ने आदेश में स्पष्ट किया कि यह जमा की गई राशि सरकारी वकील कार्यालय की लाइब्रेरी के विकास के लिए उपयोग में लाई जाएगी।
गौरतलब है कि 18 नवंबर 2024 को हाई कोर्ट ने एनएचएआई को एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था, जिसमें नागपुर रिंग रोड के काटोल नाका से फेटरी तक के मार्ग का सुधार कार्य किस समयावधि में पूरा किया जाएगा, यह जानकारी देनी थी। इसके अनुसार, एनएचएआई ने 30 अप्रैल 2025 तक कार्य पूर्ण होने का आश्वासन दिया था।
हालांकि अब तक कार्य पूरा नहीं हो सका है। एनएचएआई ने देरी का कारण वृक्षों की कटाई की अनुमति प्राप्त करने में लगने वाला समय बताया—जहाँ अनुमति हेतु आवेदन करने में दो महीने और वन विभाग तथा मनपा की प्रक्रिया में चार महीने का विलंब हुआ।
कोर्ट ने अपेक्षा जताई थी समयसीमा पालन की
कोर्ट ने आदेश में यह भी कहा कि एनएचएआई से यह अपेक्षा थी कि वे समयसीमा के उल्लंघन और प्राधिकरणों द्वारा अनुमति में देरी को पहले ही न्यायालय के संज्ञान में लाते, जो वे नहीं कर सके।
पिछली सुनवाई में, राजस्व व वन विभाग के प्रधान सचिव की ओर से उप वन संरक्षक प्रभु नाथ शुक्ला द्वारा दाखिल शपथपत्र में कहा गया कि विभाग को सड़क चौड़ाईकरण पर कोई आपत्ति नहीं है और इसके लिए एनएचएआई को हरसंभव सहयोग दिया जाएगा।
निष्कर्ष: हाई कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि यह एनएचएआई के लिए अंतिम अवसर है और यदि समयसीमा का उल्लंघन पुनः हुआ, तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी।