Published On : Thu, May 17th, 2018

काटोल-पानी के बिना नरखेड़ में खत्म हो जाएगी संतरा की कहानी

Advertisement

orange, mousambi plantation
नागपुर/काटाेल: नागपुर जिले में ही नहीं बल्कि संपूर्ण विदर्भ में काटाेल तहसील संतरा उत्पादन के लिए सुप्रसिद्ध है. किंतु घटते जलस्तर के चलते यहां के संतरा मौसबी के बाग सूखने की कगार पर पहुंच चुके हैं. जिसमें आग उगल रहे सूरज की भीषण गर्मी तथा सरकार के नियोजन के अभाव के चलते काटाेल – नरखेड तहसील संतरा मुक्त होने की कगार पर है.

काटाेल तहसील में संतरा – मौसबी तथा नीबू वर्गीय फल कुल 10 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में है. जिसमें संतरा 6, 000 हेक्टेयर में है. यहां का संतरा संपूर्ण देश तथा विदेशों में भेजा जाता है. संतरा बागन बचाने के लिए किसानों के परंपरागत कुओं का जल स्त्रोत घटने से संतरा बागान किसानों ने अब बोरवेल का सहारा लेना प्रारंभ किया है. जिसमें यहां अब 1,000 से 1200 और 1500 फुट तक गहरे बोरवेल खोदकर संतरा पेड़ बचाने का प्रयास किया जा रहा है. इसमें भी अब एक हजार फुट में भी नीचे जल स्त्रोत नहीं मिल रहा है.

यहां का क्षेत्र ड्रायजोन होने की पूर्ण संभावना से नकारा नहीं जा सकता. फलस्वरूप अब काटाेल विधानसभा क्षेत्र संतरा मुक्त होने की कगार पर होने की जानकारी संतरा कृषी कार्ति संतरा मौसबी बगायीत दार संगठन के चन्द्रशेखर बेलखेडे, मनीष हरजाल, मोहन चरडे, सोनु गुप्ता, नितीन राठी, राम पोहरकर, मुकेश चांडक, विक्रम वानखेडे, कैलाश देशमुख, जगदीश पालिवाल, दारासिंह चौधरी ने दी.

सरकार गत दो- तीन वर्षों से जमीन का जलस्तर बढ़ाने के लिए जल युक्त शिविर के माध्यम से किसानों खेतों के लगत के तथा नदियों और नालों का गहराई करण नदियों व नालों में बांध बनाकर तथा जंगलों और पहाड़ों पर भी डिपसिसिटी के माध्यम से खोलीकरण कर रहे हैं. जिससे जमीन का जलस्तर बड़े और पानी ठहरा रहे. मगर अभी गत दो वर्षों से कदरत की मार के चलते कम बारिश होने के कारण कारण पानी का संकट अब गहराने लगा है. जिससे जल युक्त शिविर जहां जहां काम हुये हैं वहां कहीं तो भी कुओं में जरा सा भी पानी नजर नहीं आ रहा है.

लेकिन अभी रोज दिनों दिन बढ़ रहे तापमान के चलते वह भी कुंए तथा बोरवेल ड्राय होते जा रहे हैं. जिस कारण अब किसानों के सामने पानी जैसी घभीर जल संकट आन पड़ी है कि वह अब अपने पेड़ कैसे बचाये रखने में मदद मिलेगी यह एक बहुत बड़ा भवनडर उनके समक्ष आन पडा है। राज्य सरकार तथा प्रगत संतरा उत्पादन किसान जिन नई – नई अभिनव योजनाओं का सहारा लेकर अपनी संतरा उत्पादन की साख बचाने में लगा है. वहीं प्रकृति के प्रकोप अथवा भूजल का घटता स्तर संतरा उतपदक बागान को अब बड़े संकट से गुजरना पड़ रहा है.