नागपुर: हर साल मई की पहली तारीख मजदूर दिवस के तौर पर मनाई जाती है। किसी भी समाज, देश, संस्था और उद्योग में मज़दूरों, कामगारों और मेहनतकशों की अहम भूमिका होती है। किसी भी उद्योग की कामयाबी के लिए मजदूरों का योगदान सबसे अहम होता है। कामगारों के बिना कोई भी औद्योगिक ढांचा खड़ा नहीं रह सकता। लेकिन देश में ही नहीं शहर में भी ऐसे सैकड़ों मजदूर हैं जो मजदूर दिन पर भी दिन भर मजदूरी कर पिसते रहे। इन्हें मजूदर दिवस तो पता है पर मजदूर किसे कहा जाता है यह पता नहीं है।
इन लोगों से जब बात की गई तो इन्होने बताया कि हमें यह नहीं पता था कि मजदूर की इस श्रेणी में हम भी आते हैं। हमें ऐसे लगता था कि केवल सरकारी नौकरी करनेवाले अधिकारी और कर्मचारियों के लिए ही यह दिन होता है। भले ही मजदूर दिवस पर सभी सरकारी विभागों में अवकाश होता है। लेकिन निजी क्षेत्रों में काम करनेवाले मजदूरों को इस दिन भी राहत नसीब नहीं हुई। इन्हे काम पर बुलाया गया और कराया भी गया। रिक्शा चालक राजन दुबे ने कहा कि वे पिछले 20 वर्षो से लगातार रिक्शा चला रहे हैं, लेकिन उन्होंने कभी भी इस दिन छुट्टी नहीं ली। छुट्टी लेने से उनका नुकसान होता है।
बता दें कि अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाने की शुरूआत 1 मई 1886 से मानी जाती है। जब अमेरिका की मज़दूर यूनियनों ने काम का समय 8 घंटे से ज़्यादा न रखे जाने के लिए हड़ताल की थी। भारत में मजदूर दिन सबसे पहले चेन्नई में 1 मई 1923 को मनाया गया। उस समय इस को मद्रास दिवस के तौर पर प्रामाणित कर लिया गया था। इस की शुरूआत भारती मजदूर किसान पार्टी के नेता कॉमरेड सिंगरावेलू चेट्यार ने की थी। लेकिन अब मजदूर दिवस की तस्वीर बदल चुकी है। ‘मजदूर’ की परिभाषा में किसे मजदूर कहा जाए यह स्पष्ट नहीं है। कर्मचारी, अधिकारी, निजी काम करनेवाले सभी लोग खुद को श्रमिक कहते हैं।