Published On : Fri, Jul 26th, 2019

कारगिल युद्ध: वीर चक्र विजेता यहां संभाल रहे हैं ट्रैफिक व्यवस्था

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टाइगर हिल पर हाथ से ही (मल्ल युद्ध) लड़ाई शुरू हो गई। ट्रैक सूट पहने लंबे-चौड़े कद-काठी वाला शख्स था जो अपने (पाकिस्तानी) टुकड़ी को निर्देश दे रहा था। उसी दौरान वहां आपा-धापी मची हुई थी। दोनो तरफ से हाथापाई के दौरान गाली-गलौच हो रही थी। तभी मैने किसी तरह उसे (शेर खान) को मार डाला।”

पंजाब के संगरूर जिला स्थित एक छोटे से शहर भवानीगढ़ में चौराहे पर हेड कॉन्सटेबल सतपाल सिंह ट्रैफिक को संभालने में व्यस्त हैं। लेकिन, उनकी वर्दी पर जब आपकी नज़र पड़ेगी तो पता चलेगा कि वह सामान्य ट्रैफिक पुलिसकर्मी नहीं हैं। सतपाल सिंह ने अपनी शर्ट पर चार मेडल पहन रखी है। इसमें से एक आधा नीला-आधा नारंगी है, यानी “द वीर चक्र”।

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बीस साल पहले सतपाल सिंह भारतीय सेना में एक सिपाही थे। सतपाल कारगिल युद्ध के दौरान टाइगर हिल पर पाकिस्तानी सेना के जवाबी हमलों से मुकाबला कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने नॉर्दन लाइट इन्फैंट्री के कैप्टन करनाल शेर खान और अन्य तीन को मार डाला था। बाद में उसी शेर खान को पाकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान निशात-ए-हैदर से सम्मानित किया गया। गौर करने वाली बात यह है कि यह सम्मान ऊंची चोटी पर बहादुरी दिखाने के लिए भारतीय ब्रिगेड कमांडर की सिफारिश पर दिया गया।

सतपाल सिंह 8 सिख सिख टीम का हिस्सा थे। जिसमें दो अधिकारी, चार जेसीओ और 46 ओआरएस (अन्य रैंक) शामिल थे। इस टुकड़ी को 19 ग्रेनेडियर्स को टाइगर हिल पर कब्जा जमाने के लिए मदद के लिए कहा गया था। टाइगर हिल पर हुई भीषण जंग में तीन जेसीओ समेत 8 सिपाही शहीद हुए थे। इनमें से जो बचे थे उनमें से अधिकांश घायल थे, जिनमें दो अधिकारी मेजर रविंद्र परमार और लेफ्टिनेंट आरके सहरावत शामिल थे।

अब 46 वर्ष के हो चुके सतपाल सिंह उस लड़ाई को याद करते हुए बताते हैं, “हम 5 जुलाई, 1999 की शाम तक पोजिशन संभाल चुके थे। वहां बहुत टी ठंडा था और हमारे पास सिर्फ हमारे कपड़े जिसे हमने पहन रखा था। या तो हम अतिरिक्त सर्दी के कपड़े ले जाते या गोला-बारूद। चॉइस स्पष्ट थी।” भारतीय सैन्य टुकड़ी को पीछे धकेलने के लिए पाकिस्तान की तरफ से 7 जुलाई को काउंटर अटैक किया गया। “एक बाद एक ताबड़तोड़ हमले हो रहे थे। हम एक को हरा रहे थे और फिर हमारा निशाना अगला होता था। पाकिस्तानियों के पास एक अच्छा अफसर था जो उनका नेतृत्व कर रहा था।”

सतपाल बताते हैं कि अधिकारियों और जेसीओ के घायल होने के बाद सुबेदार निर्मल सिंह जो खुद भी घायल थे, उन्होंने कमांड अपने हाथ में रखी और लगातार ब्रिगेडियर एमपीएस बाजवा से वायरलेस पर संपर्क में थे। “सिर में सीधे गोली लगने से पहले सुबेदार साब ने हमसे हमारा नारा ‘बोले सो निहाल सत श्री आकाल’ जोर सो बोलने को कहा और कूच कर दिए। मेरे लाइट मशीन गन (LMG) में सिर्फ चार बुलेट बच गए थे। अब बिना हथियार के हाथ से ही (मल्ल युद्ध) लड़ाई शुरू हो गई। वहां ट्रैक सूट पहने लंबे-चौड़े कद-काठी वाला शख्स था जो अपने (पाकिस्तानी) टुकड़ी को निर्देश दे रहा था। उस दौरान वहां आपा-धापी मची हुई थी। दोनो तरफ से हाथापाई करते हुए गाली-गलौच हो रही थी। इसी दौरान मैने किसी तरह उसे (शेर खान) मार डाला।”

हालांकि, सतपाल सिंह को उस दौरान पता नहीं था कि उन्होंने जिसे मारा है वह कैप्टन करनाल शेर खान था। वह बताते हैं, “मैंने उनमें से चार को मारा। एक अधिकारी, उसका रेडियो ऑपरेटर और दो जवान जो क्लोज कवर दे रहे थे।” अफसर के मरते ही पाकिस्तानी खेमे का साहस पस्त हो गया। “अपने टुकड़ी को निर्देशित करते हुए और फायरिंग के साथ कवरिंग मेथड के जरिए हम पर लगातार हमले कर रहा था। वह बड़ी बहादुरी से लड़ा था।” सपतपाल सिंह के पूर्व ब्रिगेड कंमाडर ब्रिगेडियर बाजवा कहते हैं, “टाइगर हिल पर सतपाल के अदम्य साहस और शौर्य को देखते हुए मैंने उसका नाम वीर चक्र के लिए चिन्हित किया। वह वीर चक्र से सम्मानित हैं।

सेना से अपनी सर्विस पूरी करने के बाद सतपाल सिंह 2009 में रिटायर हो गए। उसी साल उन्होंने पंजाब पुलिस जॉइन कर ली। वह कहते हैं, “हो सकता है मैंने ग़लत फैसला लिया हो। मुझे ‘वीर चक्र’ के लिए कोई खास तरजीह नहीं मिलती। मैंने एक्स-सर्विसमेन कोटे तहत जॉइन किया था। मैं अब हेड-कॉन्सटेबल हूं।” सतपाल आगे कहते हैं, “खिलाड़ियों के मेडल जीतने पर उन्हें ऊंचे रैंक से नवाजा जाता है…मैंने उस शख्स को मारा जिसे पाकिस्तान ने वीरता पुरस्कार दिया। खैर, ईश्वर महान है। उसने मुझे जिंदा रखा। फिलहाल, मैं अपने पोस्ट-ग्रेजुएट बेरोजगार बेटे के लिए काफी खराब महसूस करता हूं।”

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