नागपुर: सीबीआई के विशेष जज बी एच लोया की मृत्यु के संबंध में पूर्व सांसद नाना पटोले से सनसीखेज खुलासा किया है। पटोले ने दावा किया है की जिस दिन जस्टिस लोया की मृत्यु हुई उस दिन वह रविभवन में रुके ही नहीं थे। अपने दावे को पुख्ता करते हुए नाना ने रविभवन के विजिटर बुक का हवाला दिया। उनके मुताबिक जस्टिस के रविभवन में ठहरने संबंधी जानकारी विजिटर बुक में उपलब्ध ही नहीं है। शनिवार को नागपुर में ली गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने विजिटर बुक के रजिस्टर के कुछ पन्ने भी दिखाए। जस्टिस लोया की मौत 1 दिसंबर 2014 की रात को होने का दावा सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज है। नाना ने इस तारीख की एंट्री का कोई रिकॉर्ड सबूत के तौर पर पेश नहीं किया लेकिन यह दावा किया की लोया के रविभवन में रुकने की जानकारी देती कोई एंट्री रजिस्टर में नहीं है। जबकि मार्च के महीने में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के रुकने की एंट्री है।
इस मामले को गंभीर मानते हुए नाना पटोले ने इसके निष्पक्ष जाँच की माँग की है। उनके अनुसार जज की बहन और उनके पिता ने जो आरोप लगाए है वह गंभीर है जिसका जवाब मिलाना चाहिए। एक ऐसा जज जो देश के गंभीर मामले की सुनवाई कर रहा हो। उसे किसी तरह की सुरक्षा प्रदान नहीं की जाती। इतना ही नहीं उसे ऑटो से अस्पताल ले जाया जाता है। मौत को भले की प्राकृतिक बताया गया लेकिन पोस्टमार्टम और पुलिस द्वारा की गई प्राथमिक जाँच की सीएल रिपोर्ट में काफी अंतर है। मौत को प्राकृतिक ठहराने के लिए महज जज के बेटे जिसकी उम्र 14 वर्ष की है उसकी बात पर यकीन नहीं किया जा सकता। एक सिटिंग जज को अपनी कुर्सी की मर्यादा को दरकिनार कर सार्वजनिक बयान नहीं देना चाहिए। लोया की मृत्यु पर जस्टिस शुक्रे और गवई ने बयान दिया था। जज लोया की मृत्यु हुई या उनकी हत्या हुई इसका खुलासा होना चाहिए।
मेरी बगावत को न्यायपालिका का भी साथ
देश के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर न्यायव्यवस्था में शुरू घटनक्रम पर बड़ा सवालिया निशान खड़ा किया है। संवैधानिक पदों पर बैठे लोगो की तकलीफ़ न्यायधीशों ने देश के सामने व्यक्त किया है। वर्त्तमान दौर में न्यायव्यवस्था पर कितना दबाव है इससे इसका खुलासा होता था। मैंने भी संवैधानिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए कांग्रेस में शामिल होने का फ़ैसला लिया। मेरे द्वारा की गई बगावत को न्यायपालिका द्वारा भी समर्थन मिला है।