Published On : Sat, Aug 25th, 2018

वे दो ‘बाबूजी’!

Advertisement

इन दिनों जब सत्ता के समक्ष मीडिया मालिकों को रेंगते-बिलबिलाते,साष्टांग,असहाय और कभी-कभी तो निर्वस्त्र,नृत्य-मुद्रा में देखता हूँ तो अनेक यक्ष प्रश्नों के बीच दो निडर-अटल चेहरे अनायास प्रकट हो निराशा को आशा में परिवर्तित कर डालते हैं ।

प्रथम,
इंडियन एक्सप्रेस के (स्व)राम नाथ गोयनका

द्वितीय,
लोकमत मीडिया समूह के (स्व) जवाहर लाल दर्डा!
दोनों आदरपूर्वक “बाबूजी “के संबोधन से सर्वमान्य!
पर-प्रमाण अवांछित!

स्व-प्रमाण के रूप में निजी अनुभव !!

प्रत्यक्षदर्शी-भोगी।

मध्य 80 के दशक की बात है।तब कुलदीप नैयर नई दिल्ली के सुंदर नगर में रहा करते थे।एक दिन सुबह उनसे मिलने गया तब वे घर से निकल रहे थे।”चलो,बाबूजी से मिलने चलते हैं”,उन्होंने कहा और मैं साथ हो लिया।मैं समझ गया कि उनका आशय आदरणीय गोयनका जी से था। तब सुन्दर नगर में ही उनका एक’गेस्ट हाउस ‘था,जहाँ दिल्ली में वे ठहरा करते थे। हम टहलते हुए वहाँ गए । गोयनका जी से मेरी वह पहली मुलाकात थी ।नैयर साहब ने परिचय कराया तो वे परिवार के सदस्यों के बारे में पूछने लगे। उनकी विलक्षण स्मरण-शक्ति का कायल हो गया ।खैर ।
बातचीत चल ही रही थी कि इंडियन एक्सप्रेस के गुरुमूर्ति और एक अन्य पत्रकार पहुंचे ।इंडियन एक्सप्रेस के एक बहुचर्चित मामले में गिरफ़्तार, दोनों जेल से रिहा हो सीधे बाबूजी के पास मिलने आये थे ।

उन्हें देखते ही बाबूजी खड़े हुए ।दोनों के बीच खड़े हो बाबूजी ने दोनों के कंधों पर हाथ रख पूछा,”–तुम लोग डरे तो नहीं?–अरे,जब वो “—–“नहीं सकीं,तो ये “—–“क्या सकेगा?”

बाबूजी का आशय क्रमशः इंदिरा गांधी और तब प्रधानमंत्री राजीव गांधी से था ।दोनों ने एक साथ जवाब दिया,”डरने का सवाल ही कहाँ?”

अपने कर्मचारियों को प्रधानमंत्री से भी टक्कर लेने को प्रेरित कर,मनोबल बढ़ाने वाला ऐसा मालिक?
बाबूजी उवाचित ‘शब्दों’ को लेकर मैं थोड़ा परेशान था।लेकिन,नैयर साहब ने हँसते हुए बताया,”ये बाबूजी का ‘स्टाइल ‘है!”

निश्चय ही प्रात:स्मरणीय!

अब एक अन्य “बाबूजी ” –जवाहर लाल दर्डा !

90के दशक का आरम्भ-काल!

तब मैं “लोकमत समाचार “का संपादक था ।नागपुर के सदर में ‘ वन-वे ‘को लेकर पुलिस और नागरिकों के बीच तनाव की परिणति पुलिस-लाठी चार्ज में हुई थी। घटना-स्थल पर मौजूद हमारे एक संवाददाता राय तपन भारती को भी पुलिस ने नहीं बख्शा । तपन को चोटें आईं। उन्हीं दिनों शहर में झुग्गी-झोपड़ी उजाड़ने की एक पुलिसिया कारर्वाई के दौरान तब हमारे मुख्य संवाददाता हर्षवर्धन आर्य को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया था ।

इन दोनों घटनाओं को लेकर “लोकमत समाचार ” पुलिस के खिलाफ काफी आक्रमक था । सम्बंधित दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कारर्वाई की माँग करते हुए प्राय: प्रतिदिन कड़े अग्रलेख/विशेष टिप्पणी मैं स्वयं लिखा करता था। मामला प्रदेश से बाहर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हो चला था। महाराष्ट्र सरकार ने विभागीय आयुक्त को जांच के आदेश दिए थे।

नागपुर के तत्कालीन पुलिस आयुक्त ने मुझसे मिलने/बात करने के अनेक प्रयास किए। लेकिन,हमारी मांगों की पूर्ति के वगैर मैं उस मुद्दे पर बात करने को तैयार नहीं था ।अंत में वैद्यनाथ आयुर्वेद के चेयरमैन पं सुरेश शर्मा के आग्रह पर,शर्मा जी के आवास पर मैं पुलिस आयुक्त से मिला।आयुक्त महोदय ने हमारी शिकायतों की वैधता को स्वीकार किया। लेकिन प्रतीक्षा विभागीय आयुक्त के रिपोर्ट की थी। खैर।

इस बीच मामले की चर्चा महाराष्ट्र मंत्रिमंडल की एक बैठक में हुई।तब शरद पवार मुख्यमंत्री थे।उन्होंने “बाबूजी “(श्री जवाहरलाल दर्डा),जो तब काबीना मंत्री थे,से पूछा ,”बाबूजी!ये क्या हो रहा है?”

“बाबूजी “ने जवाब दिया, “वो हमारे संपादक हैं ।वे जो लिखते हैं,उसमें हमारा कोई दखल नहीं ।—और,अगर वे सरकार के खिलाफ लिख रहे हैं,तो हमारे खिलाफ भी लिख रहे हैं—मैं कैबिनेट मिनिस्टर हूं।”

मुख्यमंत्री पवार और अन्य मंत्री स्तब्ध रह गए ।
मैं बता दूं कि ये बात “बाबूजी “ने कभी नहीं बताई ।बाद में,एक मुलाकात में स्वयं पवार साहब ने “बाबूजी “को ससम्मान याद करते हुए ये बात मुझे बताई ।

ऐसे थे दो अखबारों के दो मालिक,दो “बाबूजी “!

और आज?????

बहुत ढूंढता हूँ—–कहीं किसी में वो अक्श दिख जाये!