Published On : Tue, Feb 28th, 2017

जब हनुमान ने राम-सीता में भेद नहीं किया तो ये कौन लोग हैं जो महिलाओं को उनके पास नहीं जाने देते?

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  • जाम सांवली के ‘सरकारी’ मंदिर में महिलाओं को हनुमान मंदिर के गर्भगृह में नहीं जाने दिया जाता
  • न्यायालय के निर्देशों की खुलेआम अवहेलना


नागपुर:
नागपुर से करीब सत्तर किलोमीटर दूर जाम सांवली में प्रसिद्ध हनुमान मंदिर है। मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के इस मंदिर को स्वयंभू हनुमान के लिए जाना जाता है। पीपल वृक्ष की जड़ों से इन स्वयंभू हनुमान की रचना होने की किंवदंति यहाँ प्रचलित है। लगभग दो दशक पहले जाम सांवली मंदिर के वर्तमान स्वरुप का निर्माण किया गया। मंदिर के हर कार्य का संचालन एक न्यास के जरिए होता है। इस न्यास में छिंदवाड़ा जिले के कई सरकारी अधिकारी शामिल होते हैं, जिलाधिकारी न्यास के स्वाभाविक मुखिया होते हैं। यदि यह कहा जाए कि जाम सांवली मंदिर का संचालन राज्य सरकार के अधीन है तो यह अतिश्योक्ति न होगी। लेकिन इसी सरकार संचालित हनुमान मंदिर के गर्भगृह में महिलाओं का प्रवेश सर्वथा वर्जित है। महिलाओं को गर्भगृह में प्रवेश क्यों नहीं दिया जाता? इस सवाल का जवाब देने के लिए कोई सरकारी अधिकारी उपलब्ध नहीं होता है, कभी नहीं, इसलिए इस सवाल का जवाब देते हैं हनुमान मंदिर के पुजारी। पुजारी या पुरोहित जो भक्तों के लाए हुए फूल-माला और प्रसाद को प्रतिमा से छुआकर भक्त को लौटा देता है, सुबह-शाम आरती कर लेता है, प्रतिमा पर समय-समय पर सिन्दूर लेपन करता है, वह प्रतिमा के पास जाकर दर्शन करने वालों का पैरवीकार भी हो जाता है। मंदिर का पुजारी कहता है, “क्योंकि हनुमान जी ब्रह्मचारी थे, इसलिए महिलाओं को उनके गर्भगृह में जाने की अनुमति नहीं होती है।“ अब इस पुजारी से पूछिए, “जब हनुमान जी ने राम-सीता में भेद नहीं किया तो यहाँ यह भेद करने वाले तुम कौन?”

पुजारी बगले झाँकने लगता है, लेकिन उसी के बगल में खड़ी मध्यप्रदेश पुलिस की महिला सिपाही तपाक से बोल उठती है, “मैं तो यहाँ कब से ड्यूटी कर रही हूँ, मुझे भी आजतक गर्भगृह में नहीं जाने दिया गया।“ उस महिला पुलिस कर्मी की आवाज ‘रोके जाने’ को लेकर जो अभिमान है, उससे बस आप अचंभित ही हो सकते हैं। अब उन दोनों से पूछिए कि जब अदालत ने महिलाओं को देश के सभी मंदिर के गर्भगृह में जाने की अनुमति दे दी है तो फिर रोकने वाले आप कौन? पर उनके चेहरे पर उड़ती झाइयाँ देखकर आपका दिल पसीज उठता है और आप सोचते हैं कि रूढ़ियों के नंबरदार इन सामान्य लोगों को क्यों बेजा परेशान करें! इस सवाल का जवाब तो मध्यप्रदेश सरकार से लेना चाहिए। उसी मध्यप्रदेश सरकार से जो प्रगतिशीलता का दंभ तो भरती है, लेकिन एक मंदिर के गर्भगृह तक महिलाओं के जाने पर पाबंदी लगाए हुए है!

क्या हैं अदालत के आदेश
400 वर्ष पुराने शनि शिंगणापुर मंदिर में प्रवेश को लेकर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए गत वर्ष मार्च महीने में मुंबई उच्च न्यायालय की एक पीठ ने अपने आदेश में स्पष्ट किया था कि किसी भी हिन्दू को चाहे फिर वह किसी भी जाति या वर्ग का हो, उसे मंदिर के गर्भगृह में जाकर पूजा-अर्चना से रोकना, मना करना या वर्जित करना कानूनन गुनाह है।

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इन प्रमुख मंदिरों में अभी तक नहीं मिल पाया महिलाओं को प्रवेश
केरल का सबरीमला मंदिर, असम राज्य का पट्बौसी सत्र मंदिर, पुष्कर के भगवान कार्तिकेय मंदिर और राजस्थान के ही रणकपुर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी है। हालाँकि सबरीमला मंदिर और पट्बौसी सत्र मंदिर में कुछ हद तक महिलाओं के प्रवेश को मान्यता मिल चुकी है, लेकिन मुख्य गृह तक प्रवेश पाना अभी महिलाओं के लिए टेढ़ी खीर ही साबित हो रहा है।


परंपरा के नाम पर आरूढ़ रूढ़ियाँ

जहाँ भी महिलाओं को मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश नहीं दिया जाता है, वहां परंपरा की दुहाई दी जाती है, लेकिन इतिहास गवाह है कि इन सभी मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी मुग़ल काल अथवा अंग्रेजों के शासनकाल में ही लगाई गई और आजादी के इतने सालों बाद भी व्यवस्था परंपरा के नाम पर गैर-हिन्दू रूढ़ियों के घोड़े पर सवार अपने ही देश के नागरिकों से, अपनी ही माता-बहनों से भेदभाव करने में अपना अभिमान देख रही है। धन्य-धन्य हे देश!

चमत्कारी हनुमान, इधर भी मेहर बख्शो
जाम सांवली के हनुमान को ‘चमत्कारी’ माना जाता है। मान्यता है कि यहाँ के ‘लेटे हुए हनुमान जी’ यहाँ आने वाले भक्तों की दिमागी समस्याओं का निवारण करते हैं। तमाम भक्तों की ओर से ‘चमत्कारी हनुमान’ जी से यही प्रार्थना कि ‘‘प्रभु यहाँ की व्यवस्था संभाल रहे लोगों के दिमागी फितूर को दूर करो और अपनी मातृस्वरूपा महिला भक्तों को भी अपने गर्भगृह तक पहुँचने का इंतजाम कराओ।“

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