Published On : Sat, Dec 8th, 2018

सन १९८० से अतिक्रमण कार्रवाईयां हैं ‘पेंडिंग’

Advertisement

नागपुर : मनपा के प्रभारी आयुक्त ने विगत माह न्यायालय में एक प्रतिज्ञापत्र सुपुर्द किया. उसके अनुसार शहर में वर्ष २०१२ से १७ तक साढ़े ५ हज़ार अतिक्रमण हैं. जबकि मनपा अतिक्रमण विभाग प्रमुख का कहना है कि वर्ष १९८० से अतिक्रमण कार्रवाई बाधित हो रही है. इस पर छुटपुट कार्रवाई होती रहती है. उक्त दोनों के हिसाब से शहर में लगभग ३५००० अतिक्रमण है.

जिम्मेदार ‘जेई’ व ‘डिप्टी’ ?
उक्त साढ़े ३ दशक में अतिक्रमण का बढ़ते आँकड़े के जिम्मेदार ज़ोन के कनिष्ट और उप अभियंता बतलाए गए. यह भ्रम है कि मनपा का संचालन आयुक्त करते हैं, बल्कि असल संचालन जोन के कनिष्ठ और उप अभियंता करते हैं.

विभाग प्रमुख का कथन

अतिक्रमण विभाग के समक्ष वर्ष १९८० से अब तक ५१५ मामले अतिक्रमण के प्राप्त हुए हैं. इनमें से १५ अतिक्रमण हटाए गए. शेष ५०० अतिक्रमण के प्रस्ताव ज़ोन स्तर पर रोके रखे गए हैं. क्यूंकि गांधीबाग ज़ोन का वार्ड अधिकारी का जिम्मा मेरे पास है, मैंने अब तक १४० अतिक्रमण के प्रस्ताव अतिक्रमण विभाग को भेजे हैं. इस ज़ोन में संभवतः १००० मामले अतिक्रमण के होना चाहिए. गांधीबाग जोन के सम्बंधित कनिष्ठ और उप अभियंता ने अतिक्रमण के प्रस्तावों को दबा कर रखा है. इस मामले में उपस्थित कनिष्ठ अभियंता ने चुप्पी साध उठे शंका को बल दिया.

प्रशासन ने ५५०० अतिक्रमण स्वीकारा
सेशन कोर्ट में अतिक्रमण विभाग से सम्बंधित एक मामले में मनपा के तात्कालीन प्रभारी आयुक्त ने न्यायालय में एक प्रतिज्ञापत्र दायर की. इसके अनुसार वर्ष २०१२ से १७ तक ५५०० अतिक्रमण के मामले हैं जिन्हें ५३ व ५४ की नोटिस दी गई.

न्यायालय ने नोटिस को दूषित बतलाया
एक वर्ष पूर्व अतिक्रमण के लिए मनपा की ओर से ५३ की नोटिस दी गई थी. इस नोटिस में ३० दिन की मोहलत होती है. उच्च न्यायालय ने सभी नोटिसों को बोगस/दूषित ठहराते हुए गलत बतलाया और मनपा को निर्देश दिया था कि भविष्य में नियमानुसार ५ सप्ताह का नोटिस दिया जाए. पिछले एक साल से जितने भी नोटिस दिए गए सभी के सभी ३५ दिन के थे. इस हिसाब से एक वर्ष पूर्व दिए गए सभी नोटिस रद्द हो गए. अर्थात आज की तारीख में उक्त आदेशानुसार एक भी प्रकरण पेंडिंग नहीं है.

अतिक्रमण विभाग प्रमुख के अनुसार विभाग से मामलों को सम्बंधित ज़ोन में भेजा जाता है. लेकिन जोन के सम्बंधित कनिष्ठ अभियंता और उप अभियंता सहयोग नहीं करते हैं. उनकी भी मज़बूरी है कि उन पर सम्बंधित क्षेत्र के नगरसेवक का दबाव रहता है.

जहां तक अतिक्रमण विभाग द्वारा प्रकरणों को प्राथमिकता देने का सवाल है, वे कार्रवाई के लिए तैयार प्रस्तावों में सबसे पुराने प्रस्ताव से प्राथमिकता तय करते हैं. जोन की निष्क्रियता से कभी कभी पुराने प्रकरण रह जाते हैं और उसके बाद के प्रकरणों पर कार्रवाई हो जाती है.

कार्रवाई करने के मामले में देरी का दूसरा बड़ा कारण यह है कि विभाग के पास जरूरत के अनुसार कर्मियों का आभाव और समय पर पुलिस का सहयोग नहीं मिल पाता है.

विभाग प्रमुख की मांग

न्यायालय में विभाग प्रमुख ने अपने निलंबन को रोकने के लिए दायर प्रतिज्ञापत्र में यह अंकित किया कि धार्मिक अतिक्रमण उन्मूलन की तर्ज पर उक्त अतिक्रमण का उन्मूलन करने का आदेश और जरूरत अनुसार कर्मी व पुलिस बल मिले तो शहर को अतिक्रमण मुक्त करने को तैयार हैं.