नागपुर. प्रदुषित हो रहे सूराबर्डी जलाशय पर तुरंत उपाय करने के प्रशासन और राज्य सरकार को आदेश देने का अनुरोध करते हुए याचिकाकर्ता नितिन शेंद्रे की ओर से हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई. याचिका पर सुनवाई के दौरान पर्यटन स्थल तक जाने का मार्ग ही नहीं होने का मामला उजागर हुआ था.
यहां तक कि मार्ग पर कई अतिक्रमण होने की भी जानकारी दी गई थी. जिसके बाद हाई कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार न केवल सड़क के एलायमेन्ट पर कार्य किया जा रहा है, बल्की अतिक्रमणकारियों की भी पहचान कर ली गई है. जिलाधिकारी ने भूमि अभिलेख उप अधीक्षक, नागपुर (ग्रामीण) को उचित निर्देश जारी किए हैं, साथ ही जिला भूमि अभिलेख अधीक्षक को भी सत्यापित किए जाने वाले प्रस्ताव के नापजोक के संबंध में निर्देश दिए हैं. याचिकाकर्ता की ओर से अधि. सुधीर मालोदे और सिंचाई विभाग की ओर से अधि. जैमीनी कासट ने पैरवी की.
जिलाधिकारी की ओर से बताया गया कि महाराष्ट्र भूमि राजस्व संहिता के प्रावधानों के अनुसार मामले में की गई कार्रवाई की एक रिपोर्ट 3 मई 2025 तक प्रस्तुत की जाएगी. गत समय कोर्ट का मानना था कि सुराबर्डी झील और आसपास की जमीन को लेकर कई संदेहास्पद तथ्य उजागर हुए. लघु सिंचाई विभाग के कार्यकारी अभियंता की कार्यप्रणाली पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा था कि वर्ष 2015 में ही लीज की समयावधि खत्म हो गई थी. इसके बावजूद लीजधारक से जमीन वापस नहीं ली गई है. इसके विपरित निजी स्तर पर अवैध रूप से समयावधि बढ़ाकर देने की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जा रही है. कोर्ट ने लीजधारक एजेन्सी के चलते सूराबर्डी झील के हुए नुकसान और लीजधारक एजेन्सी से भरपाई को लेकर क्या किया गया. इसे लेकर विदर्भ सिंचाई विकास महामंडल के चीफ इंजीनियर को शपथपत्र दायर करने के आदेश दिए थे.
दोनों पक्षों की दलिलों के बाद कोर्ट ने पहले ही स्पष्ट किया था कि सुराबर्डी में सार्वजनिक सड़कों पर अतिक्रमण किया गया है. यहां तक कि पानी की टंकियों के निर्माण के रूप में ऐसी सार्वजनिक सड़कों पर बहुत अधिक अतिक्रमण मौजूद है. सार्वजनिक उपयोगिता वाले ऐसे स्थायी ढांचों को हटाने में आनेवाली कठिनाईयों को लेकर तहसीलदार द्वारा हलफनामा में स्पष्टीकरण दिया है. जिस पर सरकारी वकील की ओर से बताया गया कि ऐसी स्थिति में एक वैकल्पिक मार्ग का सुझाव दिया जाना चाहिए.