Published On : Tue, Oct 19th, 2021
By Nagpur Today Nagpur News

गोंदिया: यह तो ट्रेलर है ‘ खेला हौबे ‘

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न.प सभापति चुनाव में क्यों पलटी बाज़ी , दरअसल मामला यह था

गोंदिया। सोमवार 18 अक्टूबर को गोंदिया नगर परिषद के सभापति और स्थाई समिति के चुनाव दौरान बड़ा उलटफेर देखने को मिला। क्यों पलटी बाजी , दरअसल मामला क्या था ? हमने यही जानने की कोशिश की । विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारी अनुसार एक व्यक्ति की निजी महत्वाकांक्षा और अहंकार के कारण यह परिदृश्य सामने आया। दरअसल सभापति चुनाव से एक दिन पहले रविवार 17 अक्टूबर के दोपहर रेस्ट हाउस में मीटिंग आयोजित की गई थी इस बैठक में भाजपा जिला अध्यक्ष केशवराव मानकर , पूर्व अध्यक्ष हेमंत तानुभाऊ पटले , जिला संगठन मंत्री बालाभाऊ अंजनकर, पूर्व विधायक गोपालदास अग्रवाल , पूर्व विधायक रमेशभाऊ कुथे , नगराध्यक्ष अशोकराव इंगले मौजूद थे। आपसी विचार-विमर्श पश्चात बैठक के दौरान इस मीटिंग में पार्टी गटनेता को बुलाया गया और कहा गया कि यह जो मौजूदा सभापति है , इनको ही कंटिन्यू रखा जाए क्योंकि कोरोना काल के चलते इनको काम करने का पर्याप्त समय नहीं मिला है , अब 2 महीने की तो बात है ?

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सूत्रों से प्राप्त जानकारी अनुसार गटनेता को समझाया गया लेकिन उसने कहा- तुम कुछ भी करो लेकिन मेरे को पीडब्ल्यूडी (बांधकाम विभाग ) होना , मैं तो चुनाव लड़ूंगा ? जिस पर सभी ने समझाया कि राजू कुथे यह 25 साल से वार्ड मेंबर है आज तक कभी सभापति पद लिया नहीं , पहली बार सभापति बने हैं उसे और समूची बॉडी को कंटिन्यू रखा जाए ? लेकिन गटनेता खुद पीडब्ल्यूडी चेयरमैन बनने के चक्कर में थे और उन्होंने बात नहीं मानी।

फिर सवाल उठा कि तुम अगर चेयरमैन बनोगे तो बीजेपी के सिंबल्स से बनोगे या चाबी के सिंबल्स से ? क्योंकि गुटबाजी में टीम अलग अलग हो गई है, इसका जवाब भी उन्होंने गोलमोल दिया। सूत्रों ने बताया गटनेता के जाने के बाद आपसी सलाह मशविरे के बाद यह फैसला हुआ कि बाला अंजनकर और केशवराव मानकर क्योंकि कल बाहर गांव जा रहे हैं इसलिए सभापति चुनाव को संपन्न कराने की अथॉरिटी हेमंत पटले , गोपालदास अग्रवाल , रमेशभाऊ कुथे , नगराध्यक्ष अशोकराव इंगले इन्हें सौपे जाने का आपसी सहमति से फैसला हुआ।

मीटिंग में यह बात भी उठी की पिछले स्थाई समिति चुनाव में जिला अध्यक्ष केशवराव मानकर ने नगरसेविका फतेह मैडम का नाम स्टैंडिंग कमेटी के लिए लिख कर दिए थे उनके बोलने के बाद फतेह मैडम का नाम लिखने के बाद गटनेता ने उनका नाम काटकर अपना नाम लिख लिया था इसलिए इस पर विश्वास कैसे किया जाए ? इस पर भी चर्चा हुई। आखिरकार मीटिंग में सभापति चुनाव को लेकर निर्णय यह हुआ कि चार लोगों की कमेटी को जैसा फाइनल करना है , तुम फाइनल करो। विशेष उल्लेखनीय है कि आघाड़ी गुट के भरोसे ही बीजेपी की अब तक सरकार बनती थी। लिहाज़ा इस मर्तबा गोपालदास अग्रवाल गुट ,राष्ट्रवादी गुट इनको मिलाकर आघाड़ी गुट के 2 सदस्यों के बूते इनकी संख्या 6 हो गई और उनकी संख्या 5 रह गई इस तरह सभापति चुनाव की बाजी पलट गई।

क्या यह बीजेपी की हार हैं या चाबी संगठन की हार ?

अब चुनाव परिणामों के बाद भाजपा की ओर से तर्क यह दिया जा रहा है कि क्या राजू कुथे बीजेपी का नहीं है ? क्या गोपालदास अग्रवाल बीजेपी का नहीं है ? यह जब बीजेपी के हैं तो बीजेपी की हार कैसी ? हार तो चाबी संगठन वालों की हुई है । भाजपा कार्यकर्ताओं का इस मसले पर कहना है कि एक व्यक्ति की निजी महत्वाकांक्षाओं के कारण विधायक की राजनीति पर इसका असर पड़ा है ।

अभी तक लोगों में यही धारणा थी कि एनसीपी (घड़ी) और चाबी संगठन साथ में हैं लेकिन सभापति चुनाव के इस उलटफेर ने लोगों की आंखें खोल दीं है , की राष्ट्रवादी ने शहर विकास आघाड़ी गुट को साथ दे दिया , इससे विधायक की लोकप्रियता का ग्राफ जरूर कमजोर हुआ है ‌। विश्वसनीय सूत्रों की मानें तो यह सारा ताना-बाना आघाड़ी गटनेता राजू कुथे , कांग्रेस गट नेता शकील मंसूरी और एनसीपी गटनेता सतीश देशमुख , इन तीनों के साथ आने के बाद बुना गया जिसके बाद राष्ट्रवादी के लीडर से बात हुई और बाज़ी पलटा दी गई।

इधर हो , उधर हो.. किधर हो ?

नगर परिषद सभापति और स्थाई समिति चुनाव में हुए इस बड़े उलटफेर पर हमने आम पब्लिक की राय ली उनका कहना है- सत्ता और कुर्सी के लिए किसी के साथ भी गठबंधन कर गंदी राजनीति की जा रही है। राजकुमार कुथे यह शिवसेना के टिकट से चुने गए और चुनाव परिणाम पश्चात शहर विकास आघाड़ी में शामिल हुए फिर बीजेपी में प्रवेश किए। बीएसपी के टिकट से चुने गए नगरसेवक लोकेश यादव ओर पंकज यादव ने शिवसेना में प्रवेश किया वहीं बसपा की एक पार्षदा राष्ट्रवादी में शामिल हो गई , कांग्रेस के सुनील भालेराव भी राष्ट्रवादी में शामिल हो गए। भाजपा के टिकट से चुने गए पार्षदों ने चाबी संगठन में प्रवेश कर लिया। और अब सभापति चुनाव में राष्ट्रवादी ने गठबंधन कर कांग्रेस प्रवेश करी है। कुल मिलाकर कुर्सी के लिए किसी के साथ भी गठबंधन कर गंदी राजनीति और सिर्फ धन की राजनीति की जा रही है और जनता यह सब देख रही है।

निश्चित तौर पर आने वाले नगर परिषद चुनावों में मंच से यह मुद्दा गर्माएगा और इसका परिणामों पर असर भी दिखाई देगा। और अगर ऐसा होता है तो दल बदल मैं विश्वास रखने वाले कई नगर सेवकों को हार का सामना करना पड़ सकता है ।

रवि आर्य

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