Published On : Sat, Dec 6th, 2025
By Nagpur Today Nagpur News

गोंदिया: जातिगत गणित ने पलटी बाजी, अध्यक्ष पद पर भाजपा ” डेंजर जोन ” में

भाजपा की टिकट वितरण चूक भारी , अध्यक्ष पद की रेस में तूफानी मोड़ , जातिगत फार्मूला बना ' किंगमेकर ' !
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गोंदिया । नगर परिषद चुनाव में जातिगत समीकरण एक बार फिर सियासी गणित का “डेसाइडिंग फैक्टर” बनकर उभर आए हैं।
21 दिसंबर की मतगणना से पहले के ट्रेंड साफ़ बता रहे है जिसने जाति पढ़ी, वही चुनाव जीतेगा! राजनीतिक दलों से लेकर मतदाता तक, टिकट बंटवारे से लेकर वोटिंग पैटर्न तक , हर जगह जाति का समीकरण निर्णायक भूमिका निभा रहा है। कांग्रेस और शिवसेना (शिंदे गुट) जहां इस फार्मूले को जोरदार तरीके से लागू करती दिखीं, वहीं भाजपा ने यहाँ चूक कर दी… और अब यही चूक उसका सबसे बड़ा नुकसान बन सकती है। अध्यक्ष पद की पूरी दौड़ पलटने के संकेत मिलने लगे हैं।गोंदिया अध्यक्ष पद की लड़ाई अब एकतरफा नहीं रही…बल्कि बड़ा उलटफेर दरवाज़े पर खड़ा है।

कुनबी–एससी–एसटी मुस्लिम शिफ्टिंग से भाजपा संकट में
गोंदिया नगर परिषद चुनाव में मतगणना से पहले सर्वेक्षण रिपोर्ट में सबसे बड़ा ट्रेंड उभरकर आया है OBC + SC + ST + मुस्लिम वोटों का भारी झुकाव कांग्रेस की ओर गया है। भाजपा ने नगरसेवक पद पर कुनबी समाज के महज़ 3 से 4 उम्मीदवार ही उतारे, जबकि कांग्रेस ने लगभग डेढ़ दर्जन कुनबी उम्मीदवार मैदान में झोंक दिए। इसी का परिणाम , कुनबी समाज ने अध्यक्ष पद पर सचिन शेंडे को बड़े भरोसे के साथ समर्थन दिया।

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इधर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वोटरों का झुकाव भी कांग्रेस के पक्ष में दिखा। सबसे महत्वपूर्ण-मुस्लिम वोट, जो गोंदिया चुनाव में सीधा परिणाम बदलने की क्षमता रखते हैं, इस बार भारी संख्या में कांग्रेस के खाते में जाते दिखे। इस शिफ्ट ने मुकाबले की दिशा बदल दी है और बड़ा उलटफेर लगभग तय माना जा रहा है। निष्कर्ष साफ़ है-जातिगत आधार पर टिकट वितरण, कांग्रेस के लिए बड़ा फ़ायदा लेकर आया है जबकि भाजपा इस दांव में पिछड़ती दिख रही ।

सिंधी–पोवार–RSS वोटों का पलटा रुख , भाजपा को झटका!
भाजपा अभी भी उच्च जातियों में लोकप्रिय है, लेकिन OBC वोट बैंक पर वह सहयोगियों पर निर्भर रही है। इस बार महायुति का गठबंधन न होना-भाजपा के लिए सीधा नुकसान साबित हो रहा है। डॉ. प्रशांत कटरे का टिकट कटना भाजपा के लिए “टर्निंग पॉइंट” बन गया। पवार समाज से लेकर RSS तक, कटरे को 70% से अधिक पोवार वोट मिले।

RSS ने भी अंतिम 72 घंटों में वही निर्णायक भूमिका निभाई, जो 2019 विधानसभा में “चाबी” प्रत्याशी विनोद अग्रवाल के समय निभाई थी।
एक आरएसएस कार्यकर्ता ने (नाम न छापने की शर्त पर) कड़ा बयान दिया – जब नेता खुद को पार्टी से बड़ा समझने लगे… तो उसे जमीन पर लाना ही पड़ता है।
चुनावी गमछों पर कमल के ऊपर नेता का बड़ा फोटो, और नीचे छोटा कमल ,यह भाजपा के भीतर नाराजगी की एक बड़ी वजह बन गया।

सिंधी वोट बैंक में दरार , भाजपा का “अजेय किला” टूटा
सिंधी कॉलोनी, माताटोली और श्रीनगर क्षेत्र-भाजपा जिन क्षेत्रों को अपना अभेद्य किला मानकर चल रही थी, इस बार वहां भी सेंध लगी। राष्ट्रवादी (अजीत गुट – घड़ी), कांग्रेस (पंजा), शिवसेना (मशाल), और निर्दलीय (चाबी) इन सभी ने सिंधी वोट में बड़ी दरार डालने में सफलता पाई। नतीजा-प्रभाग 20, प्रभाग 9 और 3–4 अन्य सीटों पर भाजपा को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। बहरहाल जाति समीकरण , टिकट वितरण की गलतियाँ , सिंधी-पोवार-RSS वोट शिफ्टिंग
से गोंदिया अध्यक्ष पद की लड़ाई अब एकतरफा नहीं रही बल्कि बड़ा उलटफेर दरवाज़े पर खड़ा दिखाई देता है‌।

रवि आर्य

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