Published On : Wed, Jan 10th, 2018

पहले विश्व हिंदी सम्मेलन के लिए तमिलनाडु सरकार ने दी थी पांच लाख रूपए की मदत

नागपुर: भाषाई विवाद के बीच हिंदी आज तक राष्ट्र भाषा नहीं बन पायी। पर क्या ये यकीन किया जा सकता है की पहले विश्व हिंदी सम्मेलन के लिए गैर हिंदी भाषी राज्यों ने हिंदी भाषी राज्यों से ज्यादा मदत दी थी। लगभग दक्षिण के सभी राज्यों ने न केवल सम्मेलन को सफल बनाने के लिए सहयोग दिया बल्कि आर्थिक मदत भी की। उस दौर में हिंदी विरोध का आंदोलन चरम पर था और तमिलनाडू राज्य आंदोलन का केंद्र बिंदु बावजूद इसके तमिलनाडू की तत्कालीन राज्य सरकार ने पांच लाख रूपए दिए थे। ये भी दिलचप्स बात है की पहला विश्व हिंदी सम्मेलन गैर हिंदी भाषी राज्य महाराष्ट्र के नागपुर शहर में हुआ। जिसका उत्तर भारत के हिंदी भाषी राज्यों में पुरजोर विरोध हुआ। बावजूद इसके 10 जनवरी 1975 को नागपुर विश्वविद्यालय के खेल मैदान में न सिर्फ आयोजन हुआ बल्कि सफल भी रहा।

तब के दौर में नागपुर से प्रकाशित होने वाले प्रसिद्ध अखबार नागपुर टाईम्स के मालिक और संपादक जो मूलतः मराठी भाषी थे अनंतगोपाल शेवले ने विश्व हिंदी सम्मेलन के आयोजन का सपना देखा। सम्मेलन के आयोजन में प्रमुख भूमिका निभाने वाले डॉ मधुप पाण्डेय ने अपनी प्राध्यापक की नौकरी से एक वर्ष की छुट्टी ली। पाण्डेय ने आयोजन की यादों को ताज़ा करते हुए बताया की सन 75 की 10 जनवरी को शहर का नजारा माँगो ऐसा था की शहर में राष्ट्रीय उत्सव हो। आयोजन के एक हफ़्ते पहले तक देश भर में हो रहे विरोध के चलते आयोजकों में डर का माहौल था लेकिन हमने हिम्मत नहीं हारी,विरोध को दरकिनार कर सबने पहले हिंदी सम्मेलन को सफल बनाने में योगदान दिया। सबसे ज्यादा सहयोग नागपुर शहर की जनता का रहा। हजारों लोग,आमंत्रित हस्तियाँ बिना आयोजकों के प्रतिनिधि के खुद व्यवस्था कर आयोजन स्थल पर पहुँचे। विश्व और देश भर से आने वाले लोगों को लोगो ने लॉज और होटल मालिकों ने अपने स्थान पर निशुल्क रखा। व्यापारियों,उद्योगपतियों ने आवश्यकता अनुरूप आर्थिक मदत और सहयोग दिया।

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तत्कालीन राज्य सरकार और केंद्र में इंदिरा गाँधी की सरकार जो खुद इस आयोजन को लेकर उत्सुक थी पूरा सहयोग दिया। आयोजन में हिस्सा लेने वाले 10 हजार लोगो में से हजारों लोग गैर हिंदी भाषी थे। पाण्डेय के मुताबिक उस दिन नागपुर में देश का उसकी भाषा से प्रेम प्रदर्शित हो रहा था उस दृश्य को देखने वाला हर कोई भौचक्का था। देश में हिंदी विरोध की बातें झूठी प्रतीत हो रही थी। पहले जो लोग नागपुर से इतर दिल्ली या कही और विश्व हिंदी सम्मेलन कराने की वकालत कर रहे थे। वह नागपुर में हिंदी प्रेम को देखकर भौचक रह गए।

500 से अधिक विश्व भर से पहुँचे प्रतिनिधियों ने सम्मेलन में हिस्सा लिया। हिंदी भाषा में मानस पटल पर साहित्य जगत से जगमगाते सितारें नए सिरे से गढ़े जा रहे इतिहास के साक्षी बन रहे थे। अमृता प्रीतम,महादेवी वर्मा,शिवमंगल सिंह सुमन,धर्मवीर भारती,काका हाँथरसी जैसे दिग्गज साहित्यकारों ने सम्मेलन में भाग लिया। इस आयोजन के बाद देश में विश्व हिंदी सम्मेलन के आयोजन का सिलसिला शुरू हुआ जो अब भी जारी है हर चार वर्ष में इसका आयोजन हो रहा है।

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