‘आघाड़ी’ की ‘बागड़ ही जब खेत खा रही थी’…तब राष्ट्र और महाराष्ट्र की जनता ने बड़ी उम्मीदों के साथ ‘भगवा पहरुओं’ को देश और प्रदेश की चौकीदारी दी थी. फिर देश ‘नमो-नमो’ करने लगा….और ‘नमो महाराज’ ने भी खुद को ‘प्रधानसेवक’ घोषित कर सबका दिल जीत लिया. माना, हमने बागडोर सौंपी आपको… पर हमें क्या पता था कि हमने पाला ‘सांप’ को…! लोग कह रहे हैं डंके की चोट पर… कि वोट के बदले उनकी ‘नीयत में खोट’ दिख रही है! पहले ‘बागड़’ ने खेत की हरियाली चट कर ली,… अब ‘सांप-नेवले’ की जंग से खेत का सत्यानाश होने लगा है! ध्यान रहे कि अक्सर ‘आस्तीन में छुपे हुए सांप’ ही डंसा करते हैं!
हमें नहीं पता था कि हमने ‘सांप और नेवले’ को संयुक्त रूप से (युति के रूप में) अपने प्रदेश की सत्ता (खेत) की रखवाली सौंपी हैं. राष्ट्र की सबसे बड़ी आर्थिक ‘सत्ता के खेत’ (महाराष्ट्र) को ये ‘सत्ता के सांप’ और उनके ‘मित्रमय शत्रु नेवले’ ही अब तहस-नहस कर रहे हैं, तो अब दोष किसे दें! सांप को?… नेवले को?… या अपने उस फैसले को, जिसमें हमने इन सत्तापिपासुओं को अपने लोकतंत्र की जागीर संभालने-संवारने का जनादेश दिया था!
विपरीत विचारों वाले ‘सत्ता हवसियों’ की शादी को 3 साल पूरे हो चुके हैं. सत्ता की मलाई चाटने और बांटने के लालच में ‘फूल’ और ‘तीर’ एकाकार हुए थे! ‘तीर’ को ‘फूल की बहार’ पसंद नहीं आयी, तो ‘धनुष्य पर धमकी रूपी बाण’ चढ़ गया,… वह ‘फूल’ के पीछे पड़ गया! और, ‘तीन तलाक’ वाले देश में 3 साल पहले हुए ‘नाकाबिल निकाह’ की बात अब ‘तलाक’ तक पहुंच गई! ‘धनुष’ वाले सिर्फ प्रत्यंचा चढ़ा-चढ़ा कर ‘फूल’ वालों को धमका रहे हैं— “एक ही भूल, कमल का फूल!” इधर, परेशान ‘फूल’ सिर्फ यही कहे जा रहा है कि ”धनुष की दोहरी भूमिका पसंद नहीं है!”
यह कैसा बेमेल विवाह है जहां ‘सत्ताधारी दुल्हन’ दूर प्रतिद्वंदी-पड़ोसी से दिल खोल रही है… और पूरी निर्ममता से उसकी ‘ममता’ में अपना भविष्य टटोल रही है! अगर ‘फूल’ से बराबर जमता… तो ममता में इनका दिल कैसे रमता? सियासत के इस खेल को हर कोई समझता है. सत्ता का एक पक्ष, जब विपक्ष की गोद में जा बैठता है,… तो घर -परिवार की सरकार का ‘बैंड’ बज जाता है! ऐसे में विकास का सत्यानाश हो जाता है. राष्ट्र से महाराष्ट्र तक यही हो रहा है. दोष किसे दें अब? ‘धनुष’ को डर है कि अगर वह ‘फूल’ से नाता तोड़ कर किसी ‘हाथ’ में गया, तो उसकी एकता के परखच्चे उड़ जाएंगे! वह ‘शिव-धनुष’ की तरह टूट जाएगा! ….और तब उसे न ‘सत्ता का राम’ मिलेगा, न सीता की पवित्रता! नारायण-नारायण करते धनुषधारी स्वयं आज असमंजस के उस दोराहे पर खड़े हैं, जहां से उनको रास्ता नहीं सूझ रहा है. इसलिए मुंह की मुँहजोरी बनाम सत्ता की कमजोरी जारी है. मगर ‘सत्ताधारी सांप-नेवले’ की इस जंग के चलते महाराष्ट्र के ‘हरे-भरे खेत’ का सत्यानाश हो रहा है! आखिर कहां ले जा कर रख दिया इन्होंने महाराष्ट्र हमारा!