नागपुर: नकली दवाओं का निर्माण कर सरकारी अस्पतालों को सप्लाई करने वाले एक संगठित रैकेट का पर्दाफाश होने के बाद कलमेश्वर पुलिस ने रॉबिन उर्फ हिमांशु विजयकुमार तनेजा को गिरफ्तार किया था। इस मामले में जिला सत्र न्यायालय में रॉबिन को जमानत पर रिहा करने की अर्जी दी गई थी। दोनों पक्षों की दलीलों के बाद कोर्ट ने सख्त शर्तों के साथ उसे जमानत पर रिहा करने के आदेश जारी किए।
जांच में सामने आया कि नकली दवाओं का निर्माण कर सरकारी टेंडर के ज़रिए अस्पतालों में सप्लाई की गई थी। फॉरेंसिक रिपोर्ट में जब दवाओं को नकली पाया गया, तब जाकर पूरे सिंडिकेट का खुलासा हुआ।
फर्जी कंपनियों और नकली सर्टिफिकेट्स का इस्तेमाल
अभियोजन पक्ष के अनुसार, विजय शैलेंद्र चौधरी ने सिप्रोफ्लोक्सासिन 500 एमजी (रेसिप-500 टैबलेट) नामक नकली दवा खरीदी और मिहिर शशिकांत त्रिवेदी को दी। मिहिर ने यह दवा हेमंत धोंडीबा मूले को सौंपी, जिसने सरकारी टेंडर पास होने के बाद सिविल सर्जन, जनरल अस्पताल नागपुर को इसकी आपूर्ति की। दवा निरीक्षक नितिन भंडारकर ने नमूने लेकर जांच के लिए मुंबई भेजे, जहां से रिपोर्ट आई कि दवा नकली है।
बॉक्स पर बतौर निर्माता “मेसर्स रिफैंट फार्मा प्रा. लि., गांधीनगर, गुजरात” का नाम दर्ज था, लेकिन जांच में पता चला कि ऐसी कोई कंपनी अस्तित्व में नहीं है। आरोपी ने फर्जी विश्लेषण रिपोर्ट व GMP सर्टिफिकेट भी पेश किए, जो जांच में जाली पाए गए।
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से जुड़े तार
विजय चौधरी की पूछताछ में खुलासा हुआ कि ये नकली दवाएं रॉबिन तनेजा और उसके भाई रमन तनेजा (निवासी सहारनपुर, उत्तर प्रदेश) से खरीदी गई थीं। साथ ही, उत्तराखंड STF ने हरिद्वार जिले के रूड़की में स्थित “द्वारिका नेचुरल फॉर्मुलेशन” फैक्ट्री पर छापा मारा था, जहां से नकली दवाएं बनाने की मशीनें और कच्चा माल बरामद हुआ। फैक्ट्री मालिक अमित धीमान ने कबूला कि वह रॉबिन तनेजा के डिमांड ऑर्डर पर नकली दवाओं का निर्माण कर रहा था।
रॉबिन की ओर से पेश किए गए तर्क
रॉबिन की ओर से पेश हुए वकील ने अदालत में दलील दी कि रॉबिन 15 जुलाई 2024 से जेल में बंद है और उसने स्वयं नकली दवाएं नहीं बनाई हैं। अन्य आरोपियों को भी जमानत मिल चुकी है। रॉबिन को नकली दवाओं के निर्माण की जानकारी नहीं थी और वह केवल आपूर्ति श्रृंखला से जुड़ा था। चार अलग-अलग मामलों में जमानत मिलने के आधार पर कोर्ट से रॉबिन को भी जमानत देने की अपील की गई, जिसे कोर्ट ने मंजूर कर लिया।
निष्कर्ष:
यह मामला स्वास्थ्य व्यवस्था में गहरे सेंध का प्रतीक है, जहां सरकारी सिस्टम को चकमा देकर नकली दवाएं सप्लाई की जा रही थीं। हालांकि कोर्ट से रॉबिन को जमानत मिल गई है, लेकिन जांच एजेंसियों के लिए अब यह चुनौती है कि पूरे रैकेट की जड़ों तक पहुंचकर दोषियों को सज़ा दिलाई जाए।