नागपुर। मेडिकल कॉलेज और मेयो अस्पताल में अव्यवस्थित सेवाओं और सुविधाओं की कमी को देखते हुए हाई कोर्ट ने इस विषय पर स्वत: संज्ञान लिया। मेडिकल कॉलेज में लीनियर एक्सीलेरेटर की स्थापना का मामला लंबे समय से अटका हुआ है। बुधवार को हुई सुनवाई में राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त सरकारी वकील ठाकरे ने 6 मई 2025 को प्राप्त एक पत्र कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया। इस पत्र के आधार पर सरकार ने आश्वस्त किया कि लागत चाहे जितनी भी हो, मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में लीनियर एक्सीलेरेटर की स्थापना के लिए तीन सप्ताह के भीतर प्रशासकीय मंजूरी दे दी जाएगी।
खरीद प्रक्रिया जल्द पूरी करने का निर्देश
राज्य सरकार के आश्वासन के बाद हाई कोर्ट ने लीनियर एक्सीलेरेटर की खरीदी प्रक्रिया तत्काल प्रभाव से शुरू करने के आदेश दिए। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह पूरी प्रक्रिया चार सप्ताह के भीतर पूरी की जानी चाहिए ताकि मंजूरी मिलते ही उपकरण की खरीदी और स्थापना जल्द से जल्द की जा सके। कोर्ट ने कहा कि इस उपकरण की स्थापना में पहले ही काफी विलंब हो चुका है, लेकिन अब तक कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया है। सरकार के दावे के अनुसार, कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को सभी आवश्यक लाइसेंस पहले ही प्राप्त करने की हिदायत दी है, साथ ही आदेश दिया है कि किसी भी स्थिति में एक सप्ताह के भीतर लाइसेंस के लिए आवेदन किया जाए।
लागत और रखरखाव पर भी उठे सवाल
पिछली सुनवाई में कोर्ट को बताया गया था कि लीनियर एक्सीलेरेटर के लिए वार्षिक रखरखाव शुल्क (AMC) पाँच वर्ष की वारंटी अवधि समाप्त होने के बाद लागू होगा। इस पर कोर्ट ने चिंता जताते हुए कहा कि एक करोड़ रुपये प्रतिवर्ष की AMC बहुत अधिक है और इसे यथासंभव कम किया जाए। इसके लिए संबंधित विभाग से निर्देश लेकर कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करने को कहा गया।
औरंगाबाद में दो मशीनें चालू, नागपुर में मामला अटका
सुनवाई के दौरान अदालत मित्र अधिवक्ता अनुप गिल्डा ने बताया कि लीनियर एक्सीलेरेटर जिस बंकर में लगाया जाना है, वह लगभग तैयार हो चुका है। वहीं औरंगाबाद के जीएमसी कैंसर अस्पताल में दो लीनियर एक्सीलेरेटर पहले से ही स्थापित और चालू हैं। परंतु नागपुर में यह परियोजना ₹25 करोड़ की स्वीकृति के अभाव में रुकी रही, जबकि अब इसकी लागत बढ़कर ₹48 करोड़ तक पहुंच चुकी है।