नागपुर। ‘बीड़ी जलैले जिगर से पिया, जिगर मा बड़ी आग है’ गाने की हकीकत आज सांप देखने को मिल सकती है। बीड़ी की मांग घटी है, इसकी जगह सिगरेट ने ले ली है। इसका सीधा असर तेंदूपत्ता संग्रहण पर पड़ा है। इससे ठेकेदारों ने भी तेंदू नीलामियों से मुंह मोड़ लिया है। तीसरी निविदा प्रक्रिया के बाद, 264 इकाइयों में से केवल 133 ही बिक पाई हैं। इस साल 150 से अधिक तेंदू इकाइयों के बिकने के संकेत मिल रहे हैं।राज्य में मार्च से अब तक तेंदू बिक्री की तीन निविदा प्रक्रिया लागू की जा चुकी है। केवल 50 फीसदी यूनिट्स ही बिक पाई हैं। दिसंबर से मार्च तक मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों में तेंदू इकाइयों की नीलामी की गई। उन दोनों राज्यों में तेंदू इकाई की बिक्री में 90 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। व्यापारियों के पास पिछले साल के डेढ़ लाख तेंदू बोरे बचे हैं। मांग में भी कमी आई है और तेंदूपत्ता की यूनिट बिक्री प्रभावित हो रही है।
इस वर्ष राज्य सरकार ने तेंदूपत्ता की बिक्री से प्राप्त पूरी राशि मजदूरों के खातों में जमा करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है। इसके अनुसार 72 करोड़ की राशि तेंदू मजदूरों को वितरित की जा रही है। हालांकि, जानकारों का कहना है कि राज्य सरकार ने इस साल के अंत में तेंदू नीलामी शुरू करने के बाद से तेंदू खरीदारों से वांछित प्रतिक्रिया नहीं मिल रही है। नतीजतन, राज्य में लाखों श्रमिकों को अपनी नौकरी खोने का डर है। बीड़ी की जगह अब सिगरेट ने ले ली है। बीड़ी की जगह सिगरेट के कारखाने लग रहे हैं और उनका कारोबार फैल गया है। इसका सीधा असर तेंदूपत्ता संग्रहण पर पड़ा है।
इससे कुछ वर्षों में तेंदूपत्ता की मांग कम हो गई है और ठेकेदार भी हटने लगे हैं। वन विभाग द्वारा तेंदूपत्ता की नीलामी का ठीक से पालन नहीं किए जाने के कारण नीलामी का समय भी चूक गया है। अब निर्माताओं को इस पेज पर 28 फीसदी जीएसटी देना होगा। बीड़ी के नए ग्राहक भी कम हुए हैं। बीड़ी के बंडल रेट बढ़ गए हैं। इससे तेंदू का कारोबार प्रभावित हुआ है। अभी तक 131 तेंदू इकाइयों की बिक्री नहीं होने के बावजूद टेंडर प्रक्रिया अमल में लाई जा रही है। जानकारों का कहना है कि मौजूदा हालात को देखते हुए 20 से 30 यूनिट और बेची जाएंगी। बीड़ी कारखाने में श्रमिकों की संख्या बहुत अधिक है। उठाव नहीं होने से खरीदारी घट गई है। इसके साथ ही बीड़ी फैक्ट्री में उत्पादन का काम भी कम हो गया है।