अ.भा. सहसंपर्क प्रमुख ने संघ नीति का किया खुलासा
यवतमाल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या भाजपाध्यक्ष अमित शाह या अन्य कोई व्यक्ति या भाजपा पार्टी केंद्र या राज्यों में सत्ता परिवर्तन का श्रेय न लें, यह बात आज संघ के दिल्ली के अ.भा. सहसंंपर्क प्रमुख ने बताई. इसके साथ ही उन्होंने संघ के नीति का खुलासा भी कर दिया कि संघ या चाहता है? उन्होंने कहा कि, जनता ने अन्य पार्टियों के घोटालों से परेशान होकर सत्ता की कूंजी किसके हाथ में देनी है, यह तय किया था. उसी के चलते यह सत्ता परिवर्तन केंद्र और राज्य में हुआ है. ऐसा भी संघ के राष्ट्रीयस्तर के सहसंपर्क प्रमुख अरुणकुमार ने बताया. वे यवतमाल में यवतमाल, वाशिम, पुसद इन तीन स्थानों के आए हजारों स्वयसेवकों को संबोधित कर रहें थे. इस कार्यक्रम की अध्यक्षता सुभाषकुमार शर्मा ने की. इस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री हंसराज अहिर, राजस्व राज्यमंत्री संजय राठोड़, सांसद भावना गवली, विधायक मदन येरावार और संजय बोदकुलवार समेत आदि मान्यवर उपस्थित थे. इससे पहले शहर के तीन अलग-अलग स्थानों से स्वयंसेवकों ने पथ मार्च निकालकर अनुशासन में पोस्टल ग्राऊंड आए जहां उनका शानदार पथसंचलन हुआ.
अरुणकुमार ने कहा कि, संघ की तरक्की में विदर्भ प्रांत की भूमिका अहम रही है. 90 वर्षों से संघ का कार्य अविरोध चालू है. संघ के संस्थापक डा. हेडग़ेवार के निष्कर्षाे के आधार पर संघ की नीति बनी थी. उन्होंने बताया कि, 12 वीं शताब्दी में कंबोडिय़ा देश में 279 फिट ऊंचा विष्णू भगवान का मंदीर बनाया था. जिसकी परीक्रमा 2 कि.मी. की है. बिहार का नालंदा विश्वविद्यालय विश्व में विख्यात था, ऐसा हमारा संपन्न देश था. हिंदू में परिवर्तन हों, ऐसी चर्चा होती थी. मगर चर्चा के स्थान पर काम करने से परिवर्तन होता है, इसलिए निस्वार्थ भाव से काम करनेवाले कार्यकर्ता निर्माण करने का महत्वपूर्ण कार्य संघ ने किया. यही कार्यकर्ता देश की रीढ़ है. राष्ट्र की महानता व्यक्ति पर नहीं तो समाज पर निर्भर है. ऐसा समाज बनने पर ही लक्ष्य प्राप्त होती है. पहले बोला जाता था, देश का
भविष्य अंधकारमय है. ऐसा ही रहा तो देश मुश्किल में पड़ जाएगा. पहले तो बोफोर्स का घोटाला 200 करोड़ का था. मगर बाद में 2 जी का घोटाला 1.75
लाख करोड़ का हो गया. इसकेे बावजूद देश की नीति सिर्फ मायनॉरटी के लिए ही बनती थी. सीमा पर देश के जवानों के सर काटे जाते थे. इसके बावजूद नेताओं
के चर्चा के बयान आते थे. अण्णा हजारे द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई, रामदेव बाबा द्वारा कालेेधन को वापिस लाने की मुहिम भी जनता को सजग करने
का साधन बनी. इसीलिए जनता ने सत्ता की कूंजी उन लोगों के हाथ से निकालकर दूसरों को सौंपी, मगर इसका श्रेय किसी व्यक्ति, नेता या पार्टी ने कदापि
नहीं लेना चाहिए. समाज की जागृत शक्ति ने यह परिवर्तन लाया है. 1977 में भी ऐसी शक्ति जागी थी वह फिर 2015 में जागी है. सरकार का तंत्र, दिशा और
नीति सबकुछ बदलना है. जिससे समाज जागृति शक्ति की जिम्मेदारी बड़ गई है.
स्थाई परिवर्तन के लिए यह जरूरी भी है. हमारे देश के सभी व्यक्ति भगवान के अंश है. संस्कारों के आधारों पर व्यक्ति पहचान होती है. देश के मूल्य और संसार का शरण हो गया है. जिससे देश की पहचान मिट चुकी है. भारत एक बिना दिशा यंत्रवाला जहाज बन चुका है. जिसके पास कोई विजन या दृष्टि नहीं है. वहीं देश ताकतवर बनते है जो सशक्त संस्था के बलबूते होते है. सुप्रिम कोर्ट के एक वकील ने पहले जो 15 न्यायाधीश होकर गए. उसमें 5 को छोड़कर सभी भ्रष्ट थे, ऐसा शपथपत्र देने के बाद भी उसके खिलाफ कोई कंटे पट नहीं हुआ.
क्योंकि वह तथ्यों पर बात कर रहा था. परिवर्तन में समाज की योजनाबद्ध भूमिका हों तो देश का चित्र बदलेंगा. 1925 में नागपुर में संघ की स्थापना हुई थी. 2010 में लाकस्तर पर संघ पहुंच चुका है. संघ का सशक्त स्वरूप है. समाज और संघ शक्ति का समन्वय हों तो देश का तंत्र, दिशा और नीति बदल सकती है. सड़ीगली व्यवस्था को उखाड़ फेंकना होगा, उसके बाद ही राष्ट्र के भाग्य का उदय होगा.