चुनावी हलफनामे में दो आपराधिक मामले छिपाने का मामला, जिला अदालत ने 15 हजार के पीआर बांड पर देवेंद्र फडणवीस को दी जमानत
नागपुर. महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस 2014 के आमचुनाव में नामांकन के वक्त अपने खिलाफ दर्ज और लम्बित दो आपराधिक मुकदमे की जानकारी छिपाने के एक केस में गुरुवार को नागपुर की जिला अदालत में पेश हुए। जहां अदालत ने उन्हें 15 हजार के पीआर बांड पर जमानत दी है। इस मामले में पेशी से बचने के लिए पूर्व सीएम ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया है। जिसपर सुनवाई करते हुए अदालत ने 17 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
मुझ पर दर्ज दोनों केस सेटेल हो गए थे: फडणवीस
अदालत से बाहर आकर देवेंद्र फडणवीस ने कहा,”आज मुझे अदालत ने चुनावी हलफनामे के एक मामले में सम्मन किया था। मैं कोर्ट में हाजिर हुआ और अदालत ने पीआर बांड पर मुझे अगली तारीख दी है। और मेरी प्यार बॉन्ड की अर्जी को स्वीकृत किया है। मूल रूप से 93 से 98 के बीच के यह दो कैसे थे और हमने एक झुग्गी झोपड़ी को बचाने के लिए आंदोलन किया था। उस आंदोलन में मेरे ऊपर दो प्राइवेट केस डाले गए थे। वह कैसे सेटल भी हो गए थे, अब वह केस मेरे पर नहीं है।”
फडणवीस ने आगे कहा,”मेरे ऊपर आरोप लगाया गया कि मैंने 2014 के एफिडेविट में इन मुकदमों को छिपाया। मैं लोवर कोर्ट में जीता, हाईकोर्ट में जीता लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फिर से इसे लोवर कोर्ट में सुनवाई के लिए भेज दिया इसलिए मैं वहां आज हाजिर हुआ था।”
पूर्व सीएम ने आगे कहा-“मेरे ऊपर आज तक जो भी कैसे हुए हैं वह सभी आंदोलनों में हुए हैं और कोई भी व्यक्तिगत केस नहीं है। यह सारे लोगों के कारण ही हुए हैं इसलिए उन्हें छुपाने का कोई मतलब नहीं था। अगर मैंने बाकी कैस के बारे में बताया है तो इन दो केसों को छुपाने का कोई मतलब नहीं है। मेरे वकील ने जो एफिडेविट तैयार किया है और बाकी हम अपना सारा पक्ष अदालत के सामने रखेंगे और मुझे पूरा विश्वास है कि अदालत हमें न्याय देगा।”
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर की थी पुनर्विचार याचिका
हालांकि, इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने फडणवीस को झटका देते हुए ट्रायल का सामना करने का आदेश दिया था। जिसके खिलाफ उन्होंने पुनर्विचार याचिका दायर की थी। इस याचिका पर दलील देते हुए फडणवीस के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा था कि फडणवीस ने नामांकन के वक्त पर्चों में ऐसा कोई मामला या जानकारी नहीं छुपाई जिसमे कोर्ट ने संज्ञान लिया हो।
इस पर जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा कि क्या आपके खिलाफ सारे लम्बित और दर्ज मामलों की सारी जानकारी देना ज़रूरी नहीं था? आपको नहीं लगता कि क्या सब कुछ साफ साफ बताना जरूरी था? इस पर मुकुल रोहतगी ने कहा कि कानून में ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। मुकदमा दर्ज कराने वालों ने आरपी एक्ट के प्रावधानों को बदले की भावना से गलत नजरिए से पेश किया।
इसलिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले पेश हुए
जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा था कि सवाल सिर्फ ये है कि आरपी एक्ट की धारा 33A में धारा 31 के प्रावधान शामिल हैं या नहीं? इस पर मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि ये तो विशुद्ध रूप से कानूनी प्रश्न है, लेकिन मैंने कोई गलत जानकारी अपने पर्चे में नहीं दी है। जानकारी छुपाने के इल्जाम में किसी अन्य धारा में मुकदमा भले दर्ज हो लेकिन इस धारा में तो कतई नहीं हो सकता। माना जा रहा है कि अदालत के रुख को देखते हुए फडणवीस के वकीलों ने फैसले से पहले उन्हें नागपुर जिला अदालत के सामने पेश होने की राय दी थी।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने मामले में फडणवीस को दी थी क्लीनचिट
सुप्रीम कोर्ट ने 1 अक्टूबर, 2019 को फडणवीस को झटका देते हुए कहा था कि निचली अदालत उनके खिलाफ दायर मुकदमे को नए सिरे से देखे। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए यह आदेश दिया था। बता दें कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने फडणवीस को इस मामले में क्लीनचिट दे दी थी।
चुनाव रद्द करने की मांग को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ता और वकील सतीश उइके की उस याचिका को भी खारिज कर दिया था, जिसमें फडणवीस की ओर से चुनावी हलफनामों में आपराधिक मामलों की जानकारी छुपाने के लिए उनका चुनाव रद्द करने की मांग की गई थी। इसके बाद उइके ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। याचिकाकर्ता का आरोप था कि फडणवीस ने विधानसभा चुनाव 2014 में अपने ऊपर विचाराधीन दो आपराधिक मुकदमों की जानकारी छिपाई थी। इसलिए उनका चुनाव रद्द किया जाना चाहिए। बता दें कि फडणवीस पर ये दोनों मुकदमे 1996 और 1998 में दर्ज कराए गए थे. हालांकि, दोनों मामलों में उनके खिलाफ आरोप तय नहीं किए जा सके थे।