Published On : Thu, Jul 7th, 2016

साहेब और भाऊ के झगड़े में…अपन नहीं किसी के पचड़े में

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चौपट नागपुरिया

Neta-Cartoon

Representational Pic


नागपुर:
नाटा घाबरगुंडे से आप वाकिफ नहीं हैं, वे मेरे पड़ोसी हैं। मैं कौन हूँ? अरे भई मैं घाबरगुंडे का पड़ोसी हूँ। इस तरह हम दोनों एक दूसरे के पड़ोसी हैं और दोनों ही एक-दूसरे के दु:ख-सुख में बराबर के भागीदार रहते हैं। उनका दु:ख यह है कि उनकी कोई नहीं सुनता, मेरा दु:ख यह है कि मुझे हमेशा उनकी सुननी पड़ती है। उनका सुख यह है कि उन्हें अपनी गली के पंचरवाले से लेकर देश के राष्ट्रपति और उससे भी बढ़कर अमेरिका के राष्ट्रपति तक के बारे में सब कुछ मालूम है और मेरा सुख बस यही है कि मुझे इन सबके बारे में जानने के लिए अखबार और टेलीविजन में आँखें नहीं गड़ाना पड़ता।

आज सुबह जब घाबरगुंडे गुनगुनाते हुए मेरी बगल से निकले तो मुझसे उनकी खुशी बर्दाश्त नहीं हुई। आवाज देने पर रुक तो गए, लेकिन मेरी ओर ऐसे देखने लगे जैसे मैं उनसे पैसे उधार माँग रहा होऊं, जुबान में हिकारत भरकर बोले, ‘बोल चौपट जल्दी बोल मेरा टाइम खोटा मत कर, जरा जल्दी में हूँ।’
मैं उनके पास पहुँचा तो तीखी गंध से मेरी नाक फटने लगी, ‘इत्र में नहाए हो क्या मियां?’ मैंने पूछा तो वह बोले, ‘अरे नहीं यार, आज ईद है न तो ईदगाह मैदान के बाहर मैं भी साहेब के साथ खड़ा हो गया था और ईद की नमाज के बाद सभी से गले मिलकर बधाई दे रहा था, तो ईद की इत्र नसीब से कुछ मुझ पर भी जाहिर हो गई भाई।’ आखिरी वाक्य बोलते-बोलते नाटा घाबरगुंडे थोड़े इमोशनल टाइप साउंड करने लगे तो मैंने झट बोल दिया, ‘नो इमोशनल अत्याचार प्लीज!’

नाटा चुप और शांत हो गए। थोड़ी देर तक दोनों के बीच बस हवा की सांय-सांय ही सुनाई पड़ रही थी। माहौल को जरा ठीक करने के लिहाज से मैंने कहा, ‘नाट्या, नागपुर ग्रामीण कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के पद पर साहेब की नियुक्ति हो गई तो भाऊ फनफना उठे होंगे?’ घाबरगुंडे मेरे मुँह से निकले वाक्य को सुन घबराने लगे। फिर जरा तनने का दिखावा करते हुए बोले, ‘साहेब और भाऊ के झगड़े में – अपन नहीं किसी के पचड़े में।’ मैंने भी तुक्का मारा, ‘झूठ मत बोल नाट्या मेरे को मालूम है, इधर जब साहेब को अध्यक्ष बनाया जा रहा था तो तू उधर भाऊ के साथ कोपचे में गम गलत कर रहा था।’

मेरा तुक्का निशाने पर लगा, घाबरगुंडे बोले, ‘भाऊ के साथ तो नहीं था, भाऊ के एक खास आदमी के साथ था, वह बोल रहा था कि भाऊ पूरे जिले में अकेले कांग्रेस के विधायक हैं, फिर भी पार्टी ने उनके नाम के झंडे की जगह पुराने टेढ़े डंडे को आगे कर दिया।’ मैंने दोनों कान पर हाथ रखते हुए उनसे कहा, ‘यह क्या बोल रहा है रे बाबा, किसी ने सुन लिया तो कितने डंडे पडेंगे तेरे वहाँ पे कि तेरे को दबंग पिक्चर में सलमान का डायलॉग सुनाई देने लगेगा-साँस कहा से लूँ और…’ नाटा घाबरगुंडे ने मेरे मुँह पर हाथ रख दिया, नहीं तो मैं डायलॉग पूरा बोलने ही वाला था।

मैंने उनसे पूछा, ‘तेरे को क्या लगता है, पार्टी ने भाऊ को गच्चा क्यों दिया होएंगा? नाट्या ने इधर-उधर देखते हुए मेरे कान के पास अपना मुँह लगाकर जोर-जोर से बोलना शुरु किया, ‘मेरे को लगता है, पार्टी को मालूम हो गया होएंगा कि भाऊ कितना गुस्सेवाला है, कोई जब भाऊ की बात नहीं सुनता तो भाऊ उसकी हड्डी-पसली एक कर देता है, पण साहेब जरा सॉफ्ट दिल वाला है, उसकी बात जब कोई नहीं सुनता तो वह उसको राजनीतिक तौर पर पटकनी देता है, कुछ इस तरह कि सांप भी मरजाए और लाठी भी न टूटे। फिर साहेब को पूरे जिले में कांग्रेस से जुड़े मुसलमान और दलित कार्यकर्ताओं और नेताओं का भरपूर समर्थन हासिल है, भाऊ का क्या है न उनको चाहने वाले लोग एक खास बिरादरी से ही ताल्लुक रखते हैं।’ मैंने कान पर हाथ रख लिया तो घाबरगुंडे फिर घबरा गए, बोले, ‘चौपट मैंने कुछ ज्यादा बोल दिया क्या?’ मैंने हाँ में सिर हिलाया तो बोले, ‘अरे तेरे को ये तो मैंने बताया ही नहीं कि कांग्रेस पार्टी के बड़े नेताओं को लगता है कि भाऊ कभी भी भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो सकते हैं। घाबरगुंडे के मुँह से मैंने इतना सुना तो ऐसे भागने लगा जैसे मेरे पीछे कुत्ता लग गया हो।

मुझे तेजी से दौड़कर घर के अंदर घुसकर दरवाजा बंद करते देख पत्नी ने पूछा, ‘क्या हुआ, सिर पर पैर रखकर क्यों दौड़ना पड़ा…?’ मैंने कहा, ‘अरे भागवान, सुना है उमरेड से किसी ने रॉकेट छोड़ दिया है जो सावनेर में जाकर गिरा है, अब सावनेर वाले भी उमरेड की दिशा में रॉकेट छोड़ रहे हैं, मुझे मालूम है कि सावनेर वाले रॉकेट में इतना ही दम है कि वह उमरेड पहुँचने के पहले नागपुर में ही दम तोड़ देगा, इसीलिए डर रहा हूँ कि फुसकी रॉकेट मेरे ऊपर कहीं न आ गिरे, क्योंकि बड़े नेताओं के झगड़े में – कार्यकर्ता ही पिसता है पचड़े में…’