Published On : Fri, Sep 14th, 2018

वर्त्तमान दौर पत्रकार और पत्रकारिता के लिए ख़तरनाक – एस एन विनोद

नागपुर: वरिष्ठ पत्रकार एस एन विनोद ने वर्त्तमान दौर की पत्रकारिता की चर्चा करते हुए कहाँ की आज का समय इस पेशे के लिए ख़तरनाक बन चुका है। देश के प्रधानमंत्री सार्वजनिक मंच पर मीडिआ को बिका हुआ कहते है। लेकिन अफ़सोस की बात है कई पत्रकारों के लिए काम करने वाली कोई भी संस्था या मीडिया संस्थान ने इसका खंडन करने का हौसला नहीं जुटा पाया । आज के दौर में ऐसा लगता है मानों चाल चरित्र और चेहरा मानों शब्द बनकर रह गया हो।  लेखन और सामाजिक सरोकार समाज निर्माण के साथ राष्ट्र निर्माण की भूमिका अदा करते है। आज ऐसा लग रहा है मीडिया शास्टांग की मुद्रा में है। विजय माल्या खुले तौर पर कह रहा है की उसने अपने बैंक लोन के निगोशिएशन के लिए तत्कालीन वित्त मंत्री से मुलाक़ात की,ये मुलाकात संसद भवन में हुई लेकिन कोई पत्रकार ने इस मामले में व्यापक रिपोर्टिंग अब तक नहीं की है। मीडिया का काम सूचना देने के साथ शिक्षित करना भी है मगर ये काम आज नहीं हो रहा है। इस स्थिति ने निपटने के लिए पत्रकार और संपादकों को साथ आना होगा और ईमानदार पहल करनी पड़ेगी। देश के नवनिर्माण में यही भूमिका अपनानी पड़ेगी। एस एन विनोद ने शुक्रवार को विदर्भ गौरव प्रतिष्ठान और नागपुर श्रमिक पत्रकार संघ द्वारा संयुक्त रूप से दिए जाने वाले अनिल कुमार पत्रकारिता पुरुस्कार वितरण समारोह में अपने अध्यक्षीय भाषण में ये बात कही। इस वर्ष ये पुरुस्कार मराठी अख़बार सकाल के विदर्भ संपादक शैलेश पांडे और न्यूज़ एजेंसी पीटीआई के पूर्व पत्रकार विजय सातोकर को प्रदान किया गया।

कार्यक्रम में बतौर प्रमुख उपस्थिति के रूप में मौजूद शिक्षाविद डॉ वेदप्रकाश मिश्रा ने अपने उद्बोधन में कहाँ की समाज को निर्भय,निर्भीक और स्वावलंबी होना चाहिए। हमें इस बात पर गर्व नहीं करना चाहिए कि हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र है बल्कि इस बात पर करना चाहिए की भारत में कारगर प्रजातंत है। प्रजातंत्र की प्रगति जिन परिस्थितियों में होनी चाहिए वो नहीं हो रही है ये हकीकत है। मैं यह नहीं मनाता की भय,भूख,भ्रस्टाचार का मुकाबला देश की राजनीतिक पार्टियों ने किया लेकिन यह दावे के साथ कह सकता हूँ की इसका मुकाबला पत्रकारिता ने बखूबी किया है। कार्यक्रम में प्रस्तावना गिरीश गाँधी ने जबकि सत्कारमूर्तियों का परिचय प्रेस क्लब के अध्यक्ष प्रदीप मैत्र ने कराया।
दिल्ली से लेकर गल्ली तक पत्रकारों पर उठ रहे है सवाल 
सत्कारमूर्ति शैलेश पांडे ने कहाँ की आज के दौर में पत्रकारों के आचरण की वजह से सभी पत्रकार और पेशे पर सवाल उठ रहे है। पत्रकार बनने की सही ट्रेनिंग का न मिल पाना इसकी वजह है आज गाँव और तालुका स्तर में कोई भी अखबार शुरू कर लेता उसके दम पर उगाही करता है और बदनाम सारी बिरादरी होती है। पत्रकारिता के पेशे से जो देश,समाज को उम्मीद है उसमे हम कम पड़ रहे है। हमने वरिष्ठों से सीखा था पत्रकार को विरोधी पार्टी की भूमिका में होना चाहिए लेकिन आज पत्रकार सत्ता के करीब जाने को लालायित है। लोकतंत्र के लिए पत्रकार का निर्भीक होना जरुरी है। ऐसा अगर नहीं रहा तो हमारी विश्वश्नीयता ख़त्म हो जाएगी।
आज टच फोन में रहने वाला पत्रकार जनता के टच में नहीं है 
देश के साथ विदेशों में पत्रकारिता कर चुके और वर्त्तमान में आईआईएमसी,अमरावती के निदेशक विजय सातोकर के अनुसार आज पत्रकार का जनता से संवाद ख़त्म हो गया है। आज के दौर में हर कोई पत्रकार बन चुका है। स्थापित पत्रकार सोशल मीडिया के माध्यम से रिपोर्टिंग कर रहे है। जिसका नतीजा मॉब लिंचिग,फेक न्यूज़  के रूप में हमें देखने को मिल रही है। नेता मंत्री पत्रकारों से दुरी बनाकर चल रहे है और पत्रकार उनके ट्वीट से खबरें कर रहे है। नई सरकार आने के बाद मुश्किल बढ़ गई है मंत्रियो के साथ होने वाले दौरों को बंद कर दिया गया है। कोई भी संस्थान प्रधानमंत्री को दरकिनार नहीं कर सकता इसलिए उन्हें अपने खर्चे पर भेजा जा रहा है। आज कल सबकुछ कव्हर करने को कहाँ जा रहा है जिससे ख़बर की क़्वालिटी ख़त्म हो गई है। हमें विचार करना होगा आज टच फ़ोन में रहने वाला पत्रकार जनता से टच में नहीं है।
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