
मनपा में चर्चा है कि उक्त निर्देश के बीच उक्त पदाधिकारी ने मुख्यमंत्री से साफ़ साफ़ शब्दों में कहा कि स्वतंत्र काम करने की आजादी देंगे तो ही मनपा में सक्रिय होऊंगा। बताया जाता है कि इस मामले में उक्त पदाधिकारी को मुख्यमंत्री ने आश्वस्त किया।
याद रहे कि उक्त पदाधिकारी मनपा कर मामले से सम्बंधित समिति का सभापति है. आज के दौर में यह समिति महापौर, स्थाई समिति, परिवहन आदि समिति से महत्वपूर्ण समिति बन गई है. वजह साफ़ है कि मनपा आज प्रशासन की अनगिनत खामियों के कारण और पदाधिकारी, नगरसेवकों के हस्तक्षेप के कारण बुरी तरह आर्थिक अड़चनों का सामना कर रहा है.
ऐसे में कर समिति के सभापति अविनाश ठाकरे की गुणवत्ता व कार्यशैली से भयभीत सत्ताधारियों ने ठाकरे को मनपा के कामकाज से दरकिनार कर दिया था. यहां तक कि मनपा मुख्यालय में उसके लिए स्वतंत्र कक्ष तक बनने नहीं दिया. जबकि अन्य निष्क्रिय समिति के सभापतियों को शानदार कक्ष दिलवा दिए.
उक्त नीतियों से नाराज ठाकरे घर बैठने के बजाय वे अपने समाज के उत्थान के लिए राज्य भर में सक्रिय हो गए. इनकी सक्रियता से पार्टी नेता भी प्रभावित थे. माना जा रहा था कि पार्टी इन्हें कहीं न कहीं बड़े महत्वपूर्ण महामंडल का जिम्मा सौंप सकती है. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, क्योंकि सत्ता में आते ही सभी पार्टी एक सी हो जाती हैं.
इधर मनपा की लगातार स्थित ख़राब होती जा रही है, तो दूसरी ओर नियमित मदद की मांग से परेशान मुख्यमंत्री ने अंततः ठाकरे के गुणवत्ता से परिचित होने के कारण ठाकरे के अभियान में खलल डालते हुए अगले ३ माह मनपा में पूरा समय देकर मनपा की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए ठाकरे को निर्देश दिया।
उल्लेखनीय है कि ठाकरे को ३ माह के बजाय एक अतिरिक्त टर्म बतौर समिति सभापति देने से ही सकारात्मक परिणाम समक्ष आएगा। आज के दौर में मनपा और टाइटेनिक की स्थिति समान हो गई है.
कड़की में अप्रत्यक्ष व्यवसाय में कई लीन
कुछ पदाधिकारी, पूर्व पदाधिकारी और नगरसेवक वर्ग अन्य किसी के नाम से मनपा में व्यवसाय कर रहे हैं. इस व्यवसाय को सफल अंजाम देने और उसका भुगतान निकलवाने में ही अपना ‘एनर्जी’ झोंक रहे हैं. कोई बिजली, कोई जनसम्पर्क, कोई अस्पताल, कोई सड़क ठेकेदार, कोई सर्वे, कोई मनुष्य बल का व्यवसाय कर रहा है.
ठाकरे को जानने वाले कर्मी भयभीत
ठाकरे तकनिकी रूप से सबल होने के साथ ही साथ काम लेने में भी माहिर बतलाये जाते हैं. उनके कार्यशैली से वाकिफ कर्मियों का मानना है कि ठाकरे के सक्रिय होने से १००% काम को अंजाम देना ही अंतिम पर्याय है, वर्ना घर बैठाने में ठाकरे को हिचक नहीं होती।









