गोंदिया: महाराष्ट्र में सीट बंटवारे को लेकर महायुति में जारी चर्चा के बीच भाजपा ने 13 मार्च बुधवार को अपनी दूसरी लिस्ट जारी करते महाराष्ट्र से 20 उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए जिससे सहयोगी पार्टी शिवसेना ( शिंदे ) और एनसीपी (अजीत ) के साथ बीजेपी का टकराव , घमासान में तब्दील हो गया है। प्रतिष्ठा की सीट कहे जाने वाले गोंदिया भंडारा संसदीय क्षेत्र पर राष्ट्रवादी के कार्याध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल ने ताल ठोंक दी है।
हालांकि वे हाल ही में दोबारा राज्यसभा के लिए चुने गए हैं लेकिन 7 मार्च को जिले के सड़क अर्जुनी में हुई सार्वजनिक सभा में उन्होंने चुनाव लड़ने का ऐलान करते कहा- एनसीपी को कोई पार्टी झुका नहीं सकती ? सब की कुंडली मेरे पास है…? एनसीपी के चुनावी सर्वे में प्रफुल्ल पटेल का नाम लोकप्रियता में सबसे ऊपर है पार्टी के कार्यकर्ताओं और पब्लिक चाहती है कि 2024 में वे लोकसभा चुनाव लड़ें , टिकट का फाइनल नहीं हुआ है अगले 2 से 4 दिन दोनों में होगा और मैं बैठक हेतू दिल्ली जा रहा हूं।
बता दें कि भाजपा अपनी विनिंग सीट छोड़ना नहीं चाहती जबकि राष्ट्रवादी कार्याध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल मोदी रथ पर सवार होकर 2024 में लोकसभा पहुंचाना चाहते हैं , टिकट को लेकर रास्सा खींच का परिणाम महायुति गठबंधन पर भी पड़ रहा है इससे न केवल राष्ट्रवादी कार्यकर्ता बल्कि भाजपा के संभावित उम्मीदवारों में भी टेंशन बढ़ गई है। कमोवेश इसी का नतीजा है कि भाजपा ने दूसरी सूची तो जारी कर दी लेकिन गोंदिया भंडारा संसदीय सीट से उम्मीदवार कौन होगा यह अभी तक तय नहीं हो पाया है।
1989 में भंडारा सीट पर बीजेपी का हुआ था उदय , क्या है इतिहास ?
1952 में भंडारा कांग्रेस का गढ़ था पहले चुनाव में तुलाराम साखरे ( अनुसूचित जाति ) के आरक्षण सीट से चुने गए , 1957 में कांग्रेस के बालकृष्ण वासनिक (अनुसूचित जाति) से चुने गए वो 1962 में दोबारा चुनाव जीतने में सफल रहे थे।
1967 में कांग्रेस टिकट पर के आर मेहता , 1971 में कांग्रेस के विशम्भर प्रसाद दुबे विजयी हुए तथा 1977 में कांग्रेस के हाथ से यह सीट निकल गई और लक्ष्मणराव मानकर ने ( भारतीय लोक दल ) की टिकट पर जीत दर्ज की लेकिन जीत ज्यादा दिन नहीं चली , 1979 में दोबारा कांग्रेस को जीत मिली केशवराव पारधी कांग्रेस की टिकट पर जीते तथा 1984 में दोबारा जीत दर्ज करने में वे सफल रहे।
1989 में बीजेपी का भंडारा लोकसभा सीट पर उदय हुआ तथा खुशाल बोपचे ने बीजेपी को जीत दिलाई।
1991 में कांग्रेस की टिकट पर प्रफुल्ल पटेल जीते वो यहां से लगातार 1996 और 1998 में चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंचे।
1999 में बीजेपी ने दोबारा जीत दर्ज की तथा चुन्नीलाल ठाकुर सांसद बने , अगले 2004 के चुनाव में भाजपा फिर सफल रही तथा शिशुपाल पटले ने एनसीपी के दिग्गज नेता प्रफुल्ल पटेल को चुनाव हराया।
हालांकि परिसीमन के बाद यहां 2009 में बाजी पलट गई और निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नाना पटोले ( टोपली ) के खड़े होने से बीजेपी के शिशुपाल पटेल त्रिकोणीय लड़ाई में चुनाव हार गए और प्रफुल्ल पटेल ने चुनाव में बाजी मारी , नाना पटोले दूसरे स्थान पर रहे जबकि भाजपा के शिशुपाल पटले तीसरे स्थान पर चले गए।
नाना पाटोले की इसी पकड़ को देखते हुए 2014 में बीजेपी ने उन्हें लोकसभा का टिकट दिया उन्होंने प्रफुल्ल पटेल को डेढ़ लाख से अधिक वोटों से हराया तथा धमाकेदार जीत दर्ज करते संसद भी पहुंचे लेकिन भाजपा आलाकमान से मतभेद के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया ।
गोंदिया भंडारा सीट पर 28 मई को उपचुनाव हुआ कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस ने गठबंधन किया कुल 18 उम्मीदवार मैदान में थे , राष्ट्रवादी के मधुकर राव कुकड़े ने भाजपा के उम्मीदवार हेमंत पटेल को 40, 000 से अधिक मतों से पराजित किया।
2019 के चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी सुनील मेंढे ने एक बड़ी जीत दर्ज करते लोकसभा के सदन में कदम रखा।
बहरहाल एनसीपी उपचुनाव की जीत को अपनी जीत बता कर गोंदिया भंडारा सीट पर दावा ठोंक रही है जबकि भाजपा अपनी परंपरागत विनिंग सीट को छोड़ना नहीं चाहती।
सूत्रों के मानें तो एनसीपी का कैंडिडेट बीजेपी के चुनाव चिन्ह ‘ कमल निशान ‘ पर चुनाव लड़े तो पार्टी की ओर से हां है , नहीं तो ना ?
यानी यह सीट बीजेपी किसी भी हाल में ‘ कमल ‘ चुनाव चिन्ह के लिए रिजर्व रखना चाहती है इसी बात को लेकर दोनों पक्षों के बीच टकराव की स्थिति कायम है।
रवि आर्य