नागपुर: डेवलपर्स जिस बेसा–पिपला को “साउथ नागपुर का नेक्स्ट बिग एड्रेस” बताकर प्रचारित कर रहे हैं, अब वही इलाका घटिया निर्माण और खराब सड़कों की वजह से सुर्खियों में है। नागपुर खंडपीठ ने इस क्षेत्र में सड़कों की बदहाल स्थिति और निर्माण में लापरवाही को लेकर संबंधित विभागों को कड़ी फटकार लगाई है।
जनमंच संस्था द्वारा दायर जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति अनिल किलोर और न्यायमूर्ति रजनीश व्यास की पीठ ने सार्वजनिक निर्माण विभाग (PWD) को निर्देश दिए कि घटिया निर्माण के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के नाम पेश करें और हाल ही में हुए बेसा–पिपला सड़क हादसे में मृतक परिवार को मुआवज़ा दिया जाए।
कोर्ट ने आरटीओ फ्लाईओवर और अमरावती हाईवे की सर्विस रोड की खराब हालत पर भी सख्त टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि सड़क निर्माण की गुणवत्ता “असुरक्षित और अस्वीकार्य” है, और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) से स्पष्टीकरण मांगा गया है।
जहां बिल्डर्स इस क्षेत्र को निवेश का सुनहरा मौका बताकर लाखों के प्रोजेक्ट बेच रहे हैं, वहीं स्थानीय नागरिकों की शिकायत है कि बुनियादी सुविधाएं अब भी अधूरी हैं — सड़कों पर गड्ढे, नालियां बंद, स्ट्रीट लाइटें खराब और ट्रैफिक प्रबंधन अस्त-व्यस्त।
एक स्थानीय निवासी ने बताया, “बिल्डर्स साउथ नागपुर का सपना बेच रहे हैं, लेकिन हकीकत में यहां रहना रोज़ की चुनौती बन चुका है।”
पिछले तीन सालों में बेसा–पिपला में प्रॉपर्टी के दाम 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़े हैं। लेकिन शहरी नियोजन विशेषज्ञों का मानना है कि तेज़ रफ्तार विकास बिना ठोस इंफ्रास्ट्रक्चर के लंबे समय में मुसीबत बन सकता है।
हाईकोर्ट की यह सख्त टिप्पणी उस हकीकत को उजागर करती है जो चमकदार रियल एस्टेट विज्ञापनों के पीछे छिपी है — नागपुर का दक्षिणी विस्तार शायद जितना दिखता है, उतना टिकाऊ नहीं है।
फिलहाल बेसा–पिपला एक चौराहे पर खड़ा है — एक ओर हाइप और विकास का वादा, दूसरी ओर जमीनी हकीकत और जवाबदेही की मांग।










