तीस चौवीसी विधान मे पहुच रहे है भक्त
नागपुर: सज्जन बनने सज्जनता लानी होगी यह उदबोधन प्रज्ञायोगी आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी गुरुदेव ने बुधवार को उत्तर नागपुर के रानी दुर्गावती चौक स्थित श्री. चंद्रप्रभु जिन चैत्यालय मे जारी तीस चौवीसी महामंडल विधान के दूसरे दिन दिया.
विधान मे सुबह सभी इंद्रों ने जिनेन्द्र भगवान की महाशांतिधारा संपन्न की. आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी गुरुदेव ने पूजन के एक-एक का अर्थ समझाया.Iआर्यिका आस्थाश्री माताजी ने मधुर कंठ से संगीत मे पूजन मे और अधिक रंग भरा. क्षुल्लक विनयगुप्तजी ने मंत्रोच्चार से वर्षा की. प्रतिष्ठाचार्य पं. कमलेश जैन सलूम्बर ने पूजन विधि की धार्मिक क्रिया मे उपस्थित इंद्रों को मार्गदर्शन कर रहे थे. संगीतकार राजेश शाह बागीदौरा (राजस्थान) और सहयोगियों ने संगीत स्वरलहरीयों से विधान मे शामिल इंद्र-इंद्राणी भक्ति कर रहे थे.
सौधर्म इंद्र सुरेश निहालचंद ढालावत, धनपति कुबेर इंद्र राजेन्द्र धुरावत, चक्रवर्ती इंद्र जितेन्द्र तोरावत,यज्ञनायक धनपाल दोशी, विनोद दोशी, पं. कमलेश सिंगवी ने पूजन मे प्रभावना की.गुरुदेव ने संबोधित करते हुए कहा तीर्थंकर तीर्थ की स्थापना नही, तीर्थ का प्रवर्तन करते है. तीर्थंकर स्वयं संसार मे तिरते है. जगत के प्राणियों को संसार से पार करते है. संसार मे तीन प्रकार के लोग होते है. तरण, तारण और तरण तारण. तरण यानि तीर जाये. तीर्थंकर तरण तारण है. मुनिराज तरण और तारण भी है. जो प्रवचन करते है, जो लोगों को मार्ग बताते है वह तारण है.
तीर्थंकर का भगवान का जीवन परोपकार का प्रत्यक्ष उदाहरण है. तीर्थंकर भगवान समस्त प्राणियों के प्रति वात्सल्य रखते है. वृक्ष पानी लेकर, धुप लेते है इसलिये सारे संसार को फल देते है. जिसका दिया ज्ञान पाकर समाज मे विवाद, कलह , धन का घमंड किया, शक्ति पाकर दूसरों को दुःख देना, अपने धन से दूसरों को परेशान कर रहा है, अपना ज्ञान विवाद मे लगा रहा है, मंदिरों मे विवाद, कलह करता है वह दुर्जन है. अपने ज्ञान का दूसरों के लिये उपयोग करनेवाला, अपने विद्या उपयोग धर्म, शिक्षा, धन के लिए करनेवाला वह सज्जन है. अपने तीर्थंकर का जीवन क्रांतिकारी और परोपकारी रहा है. मंत्र,जाप हमे तीर्थंकर की ओर ले जाते है. देव-शास्त्र-गुरु उत्तम पात्र है. देव-शास्त्र-गुरु की भक्ति करे.
अपना धन, द्रव्य परोपकार के लिये लगाये. मन,वचन, काय से प्रत्यक्ष किसी का काम का विरोध नही करे. समाज को आवाहन करते हुए गुरुदेव ने कहा यह विधान नागदा समाज का नही है, यह विधान सकल जैन समाज का है. जिनके भाग्य अच्छे है वह अच्छे रूप से जुड़ सकता है. पूजन, आराधना, विधान का लाभ भाग्यवान को मिलता है.
संचालन महेन्द्र सिंगवी ने किया. धर्मप्रिय जनों से उपस्थिती की अपील महेन्द्र सिंगवी, मुकेश सिंहावत, शांतिलाल धुरावत, धनराज दोशी ने की है. केसरीमल सिंहावत ने आयोजन मे सुंदर व्यवस्था की है.