Published On : Fri, Feb 22nd, 2019

मुद्गल के आदेश पर फेरा उगले ने पानी

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मामला १२ साल पहले ली गई पेरिफेरल निधि और उससे होनेवाले परिसर के विकास का

नागपुर: नागपुर सुधार प्रन्यास के अड़ियल रवैय्ये के कारण एक रहवासी संकुल के निर्माता से लगभग १३ वर्ष साल पहले पेरिफेरल डेवलपमेंट (परिधीय विकास) के नाम पर लाखों रुपए लेने के बाद विकासकार्य करने के बजाय निधि हजम करने का मामला सामने आया है. यह बात और है कि नासुप्र के पूर्व सभापति ने मामले की गंभीरता के मद्देनज़र टेंडर जारी करने की प्रक्रिया शुरू की, लेकिन उनका अतिरिक्त प्रभार ख़त्म होने के बाद नई सभापति ने उसे सख्ती से रोक कर अपना होने की जानकारी दी.

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कोराडी मार्ग पर वॉक्स कूलर फैक्ट्री के निकट चर्चित राय उद्योग समूह ने १९२ फ्लैट व १२० दुकान की रजत हाइट फ्लैट स्कीम की मंजूरी नागपुर सुधार प्रन्यास से ली थी. नासुप्र ने मंजूरी के लिए कुल पेरिफेरल डेवलपमेंट और वृक्षारोपण के नाम पर ३४.२५ लाख रुपए वर्ष २००५ में वसूले थे.

उक्त निधि में से ढाई से ३ साल पहले स्कीम के सीवेज के पानी की निकासी के लिए १२ लाख रुपए पाइपलाइन बिछाई में खर्च किए गए.

इसके बाद जब प्रभारी सभापति के रूप में वर्तमान जिलाधिकारी अश्विन मुद्गल ने नासुप्र की जिम्मेदारी संभाली, तो उन्हें इस मामले की जानकारी दी गई. उन्होंने उक्त जमा राशि में से शेष बची निधि से परिसर के जन उपयोगी मैदान(परिसर ) के आधे हिस्से में गट्टू लगाने के लिए साढ़े १३ लाख रुपए के प्रस्ताव को प्रशासकीय मंजूरी प्रदान की. इसके बाद उसका टेंडर जारी हुआ. पहली बार में टेंडर में १ या २ ठेकेदारों ने भाग लिया. इसलिए नियमानुसार दूसरी बार टेंडर निकालने का निर्णय लिया गया. इसके साथ ही उक्त परिसर के रहवासियों की गुजारिश पर निकट के कच्चे नाले का निर्माण करने का ठेका भी जारी किया गया था. इसमें भी प्रतिसाद न मिलने के कारण दोबारा टेंडर जारी करने का निर्णय लिया गया था.

इसी बीच मुद्गल की अतिरिक्त जिम्मेदारी कम कर नासुप्र को पूर्णकालीन सभापति के रूप में शीतल तेली-उगले की तैनातगी की गई. उक्त मामलात को लेकर अधीक्षक अभियंता सुनील गुज्जलवार,कार्यकारिणी अभियंता पी.पी. धनकर से संपर्क करने की कोशिश की गई. धनकर ने जानकारी दी कि उक्त प्रस्ताव सभापति उगले ने रोक दी है. इसके बाद नियमित तौर पर सभापति उगले को जानकारी देकर दोबारा टेंडर जारी करने का निवेदन किया जाता रहा,लेकिन जवाब मिला कि पैसा ख़त्म हो गया और अब दोबारा संपर्क न करें. उल्लेखनीय यह है कि उक्त सभापति के रवैय्ये से सम्पूर्ण विभाग, जनप्रतिनिधि आदि नाराज हैं, क्यूंकि अमूमन सभी से कह दिया कि वे नासुप्र को समझ रही हैं.

उक्त मामलात से उपजे कई सवाल
क्या इस परिसर के नागरिकों का नासुप्र में जमा पैसा डूब गया ? क्या आला अधिकारियों में इतनी दूरियां रहती हैं ? क्या पूर्व के अधिकारियों के निर्णय को इस तरह रद्द (ओवररूल) किया जाता है? वहीं अफसोस इस बात का मनाया जा रहा है कि अगर मुद्गल अब तक कायम रहते तो काम शुरू हो गया होता.

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