गुजरात ले जाने की तैयारी में पकड़ाया
बच्चे को मुक्त करती पुलिस
धारणी (अमरावती)। बंधुआ मजदूरों की प्रथा पर भले ही सरकार का प्रतिबंध है, लेकिन मेलघाट में बंधुआ मजदूरी के लिये अब बालकों का उपयोग किये जाने का सनसनीखेज तथ्य उजागर हुआ है. मंगलवार को पुलिस ने बकायदा योजना बध्द तरीके से दो परप्रातियों को अरेस्ट किया, जो एक 14 वर्षीय बालक को 2 वर्षों से सालाना 30 हजार रुपये मजदूरी देने का सौदा तय कर गुजरात ले जाने के लिये ट्रैवल्स बस में सवार हो गये थे. बच्चे को सकुशल छुड़ा लिया गया है. मानव तस्करी से जुड़े इस मामले में स्वयं सेवी संस्था अपेक्षा के साथ मिलकर पुलिस ने यह संयुक्त कार्रवाई की. पुलिस अब गिरफ्तार गोवा करमसिंग रबारी (45) व कालसिंद मुसकाशाह से कड़ी पूछताछ कर रही है. आदिवासियों की अज्ञानता, शिक्षा और गरीबी का लाभ उठाते हुए इनके मासूमों की खरीदी-फरोख्त कर उनसे उनका बचपन छिनने की कई घटनाएं इससे पहले भी उजागर हो चुकी है.
सिविल ड्रेस में जाल बिछाया
तहसील के खिडक़ी गांव से सतीश मुंसी जावकरकर(14) नामक बालक को गत् दो वर्ष पहले गोवा (गुजरात) नामक व्यक्ति द्वारा 30 हजार रुपए प्रतिवर्ष के हिसाब से खरीदा गया था. वर्ष में उसे एक बार उसके गांव उसके माता-पिता से मिलवाने के लिए लाया जाता था, लेकिन यह काम चुपचाप से होता था. जिससे किसी को इसकी भनक नहीं लगती, लेकिन इस बार अपेक्षा होमियो सोसायटी के कार्यकर्ता लक्ष्मणसिंग गौर व पुलिस को इसकी खबर लग गई. मंगलवार को गोवा रबारी जब सतीश को लेकर गुजरात लौट रहा था. जब वह पेट्रोल पंप के पास खड़ी निजी बस में बैठने लगा तो कार्यकर्ताओं की सूचना पर पुलिस ने सिविल कपडों में वहां पहुंचकर उसे धर दबोचा. इस समय गोवा को साथ देने वाला इसी गांव का कालसिंग भी उसके साथ था. पुलिस ने उसे भी गिरफ्त में लिया. पुलिस अधिकारी चव्हाण द्वारा की गई इस कार्रवाई में समाजसेवी गौर, दिगंबर मने, जयकिसन इंगले, अर्जून पवार व मनु वरठी ने इस कार्रवाई में सहयोग दिया. बताया जाता है कि इस गांव के कई बच्चों को इसी तरह खरीद कर राजस्थान, गुजरात के अन्य जिलों में बेचा जाता है.
शाला बाह्य सर्वे के नाम पर खोजा
अपेक्षा के कार्यकर्ताओं को बच्चों की खरीद फरोख्त की जानकारी काफी पहले मिली थी. उन्होंने गोवा का फोन नंबर भी हासिल किया था, लेकिन गोवा कभी फोन पर किसी बात नहीं करता था. सतीश नामक बालक के गांव लाए जाने की खबर मिलते ही अपेक्षा के कार्यकर्ताओं ने शाला बाह्य बच्चों के सर्वे की बात कहकर सतीश का पता लगाया.
जानवरों जैसा सलूक
इस समय सतीश ने बताया कि वह दो वर्षों से गोवा उसे नांदेड के निमरड़ गांव अपनी भेड़ बकरियां खेती व अन्य घरेलू काम करवता था. यह उसका तीसरा वर्ष था. इस दौरान सतीश से जानवरों जैसा व्यवहार किया जाता रहा. पर्याप्त भोजन व आराम नहीं मिलने के साथ ही न ही उसे कभी खेलने दिया जाता. और न ही सोने के लिए पूरा समय दिया जाता. बीमार पडऩे पर इलाज तक नहीं करवाया जाता था. कभी-कभी उसे दूसरों के पास भी काम के लिए भेजा जाता था. उसने खुद अपनी आपबीती जब पुलिस को बताई तो सभी दंग रह गये.