अकोला। खरीफ हंगामे के दौरान बारिश एक माह से नदारद रहने के कारण खेतों में सोयाबीन की फसल खराब होने की कगार पर पहुंच गई है. सोयाबीन की फसल की बुआई करने को 30 दिन का समय हो गया है. 30 दिनों के पश्चात इस अंकुरित बीजों पर फूल लगने की प्रक्रिया आरंभ होती है. किंतु सोयाबीन को पानी न मिल पाने के कारण यह फसल सूखने लगे है. जिससे आगामी दिनों मे किसानों को इसका असर उपज पर दिखाई देगा. बारिश न होने के कारण खेतों में की गई फसले पीली पडने लगी है.
विदर्भ में 17 लाख हेक्टेयर जमीन पर सोयाबीन फसल की बुआई की गई है. जो पानी के अभाव में सूखने की कगार पर पहुंच गई है. जबकि कपास, सोयाबीन फसल पर भी इसका परिणामा दिखाई दे रहा है. विदर्भ के अकोला, अमरावती, बुलडाणा, यवतमाल व वाशिम जिले के अधिकतर क्षेत्रों मे सोयाबीन की फसल पीली पडने लगी है. विगत 21 दिनों से बारिश न होनेे कारण जमिन का गिलापन कम होता जा रहा है. जिससे इन फसलों का अन्नद्रव्य शोषण का प्रमाण कम हो रहा है. फसलों को मिलने वाला नायट्रोजन कम मिलने के कारण सोयाबीन फसल की बढत थम गई है. वहीं फसलों पर पीला मौझेक नामक बीमारियों ने हमला कर दिया है. इसी के साथ हरी ऊंट इल्ली का प्रकोप फसलों पर हो रहा है. बारिश तथा फसलों पर बीमारियों के संक्रमण के कारण किसानों में दहशत का वातावरण दिखाई दे रहा है. कपास पर इन दिनों गर्मी का प्रकोप बढ़ने के कारण फसलों पर बुरसी दिखाई दे रही है.
बारिश का छिड़काव
विगत 28 दिनों से नरादर वरूण देव कुछ पल के लिए बरसे थे. इससे किसानों को उम्मीद थी कि जल्द ही जोरदार बारिश आरंभ होगी. लेकिन किसानों की उम्मीद ताश के पत्तों की तरह धाराशायी हो गई. बारिश न होने के कारण फसलें सूख रही है. वहीं किसानों में दस बात को लेकर चिंता दिखाई दे रही है कि आगामी दिनों में जोरदार बारिश नहीं हुई तो उन पर दोबारा बुआई करने का संकट निर्माण हो जायेगा.