Published On : Wed, Nov 14th, 2018

अकल और नकल मे जमीन आसमान का अंतर होता है : आचार्य गुप्तिनंदी

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नागपुर : अकल और नकल मे जमींन आसमान का अंतर होता है यह उदबोधन प्रज्ञायोगी आचार्यश्री गुप्तिनंदी गुरुदेव ने संगीतमय महावीर कथा के दूसरे दिन टांगा स्टैंड चौक स्थित न्यू इतवारी रोड पर दिया. कथा का संयोजन पार्श्वप्रभु दिगंबर जैन मोठे मंदिर ने किया.

मरीचि और महावीर स्वामी पर व्याख्यान करते हुए आचार्य गुप्तिनंदी ने कहा कि पुरुरवा भील ने एक सागरसेन नामक दिगंबर जैन मुनिराज के उपदेश से प्रेरित होकर आजीवन मद्य-माँस-मधू के साथ सप्तव्यसनों का त्याग किया, पाँच अणुव्रत ग्रहण किए. इतने त्याग से वह पहले सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ. वहां दो सागर वर्ष तक दिव्य सुखों का आनंद लेने के बाद इस युग के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ के ज्येष्ठ पुत्र भरत का पुत्र मरिचीकुमार बना. जैन धर्म के पहले तीर्थंकर भगवान आदिनाथ विश्व व्यापी तीर्थंकर हुए।वैदिक साहित्य में कहा गया है कि चारों धाम की यात्रा करने से और चारों वेद का पारायण से जितना पुण्य मिलेगा उससे कहीं अधिक पुण्य ऋषभदेव के नामस्मरण से मिलता है.

इसलिए भगवान ऋषभदेव का वर्णन हिंदू धर्म के स्कंदपुराण, अग्निपुराण, विष्णुपुराण, मार्कण्डेयपुराण, बौद्धों के त्रिपिटक ग्रंथ में, मुसलमानों के कुरानशरीफ व ईसाइयों के बाईबिल आदि सभी ग्रंथों में मिलता है. भगवान ऋषभदेव से महावीर स्वामी तक चौबीसों भगवान का नाम एकसाथ स्मरण करने के लिए राजा दशरथ ने अपने बड़े बेटे का नाम श्री राम रखा. भगवान आदिनाथ के ही आदिनाथ, आदिब्रह्मा, आदम, अवधूत, वातरसना, ऋषभदेव, वृषभदेव, पशुपतिनाथ, प्रजापिता आदि अनेक नाम प्रसिद्ध हुए. सौधर्म इंद्र ने1008नामों से उनकी स्तुति की. भगवान आदिनाथ ने ही सबसे पहले इस संसार को असि-मषि-कृषि-विद्या-वाणिज्य-शिल्प इन षट्कर्मों का उपदेश देकर जीवन जीने की कला सिखलाई. अंकलिपी,ब्राह्मीलिपी, अस्त्र-शस्त्र आदि संसार की सभी विद्याओं का ज्ञान भगवान आदिनाथ ने दिया. इस तरह संसार में रहते हुए जीवन जीने की कला उसने ही सिखलाई और वैराग्य होने पर इस युग में सबसे पहले स्वयं मुनिदीक्षा लेकर त्याग धर्म का पाठ पढ़ाया.

जब भगवान आदिनाथ को वैराग्य हुआ तब अपने पितामह के प्रेम में मरीचिकुमार ने भी मुनिदीक्षा ले ली. तीर्थंकर आदिनाथ के वैराग्य का मरिची आदि चार हजार राजाओं ने अनुकरण किया. भगवान ने अकल से दीक्षा ली तो उन सब ने उनकी नकल की, अकल और नकल में जमीन और आसमान का अंतर होता है. मुनिदीक्षा लेना सरल है पर उसे निभाना कठिन है. आगे की विधि का ज्ञान 4000 राजाओं को नहीं था, इसलिए भूख प्यास से पीड़ित होकर वे सब भ्रष्ट हो गए. तेरह महीने के कठोर उपवास के बाद आदिनाथ ने हस्तिनापुर में राजा श्रेयांस के हाथ से ईक्षुरस का आहार लेकर दानविधी का जीवंत ज्ञान दिया. वहीं दिन सारे संसार में अक्षय तृतीया के नाम से प्रसिद्ध मुहूर्त बन गया. प्रभु को केवलज्ञान होने के बाद उनका उपदेश पाकर उन भ्रष्ट राजाओं ने भगवान से प्रायश्चित लेकर फिर से मुनिदीक्षा ग्रहण की. वहाँ अधूरी भविष्यवाणी सुनकर मरीचिकुमार को मान आ गया. अहंकार में वह भगवान के समोशरण से बाहर निकल गया और 363 मिथ्यामतों का प्रचार करते हुए अनंत संसार में परिभ्रमण किया.

उसने अपने दादा तीर्थंकर ऋषभदेव का विरोध किया. उन पर अपवाद लगाया इसलिए धरती पर असँख्य भवों में उसे अनेक दुःखों का सामना करना पड़ा.

इसलिये कभी बुजुर्गों का अपमान नहीं करें।जिस घर के बुजुर्ग मुस्कुराते मिल जायें तो समझना ये घर दिल से अमीरों का आशियाना है. बुजुर्गों की दुआओं के दीप जहाँ जला करते हैं, उन घरों में दवाओं के पहले दुआ असर करती है. ध्यान रखें इज्जत भी मिलेगी, दौलत भी मिलेगी. सेवा करो बुजुर्गों की जन्नत भी मिलेगी आज श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मोठे मंदिर में मुख्य श्रोता रूप पुण्यार्जक बनकर सभी पूर्व मांगलिक कार्यों को संपन्न किया.

धर्मसभा में दीप प्रज्ज्वलन उदय गहाणकरी, अभयकुमार पनवेलकर, सतीश जैन पेंढारी, हीराचंद मिश्रिकोटकर, दिलीप शिवणकर, नितिन नखाते, शरद ठवली ने किया. मंगलाचरण विभास गहाणकर, सिद्धि मुधोलकर, रूपल गरीबे ने किया. पुर्व उपमहापौर अशोक जर्मन, नितिन महाजन, प्रतिक सरावगी, शरद ठोल्या ने गुरुदेव का आशीर्वाद प्राप्त किया. धर्मसभा का संचालन संयोजक नितिन नखाते ने किया.

रिपृष्ठ और महावीर पर कथा का तीसरा पुष्प गुरुवार को
प्रज्ञायोगी आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी गुरुदेव के मुखारबिंद से संगीतमय महावीर कथा का तीसरा पुष्प गुरुवार १५ नवंबर को सुबह ८ बजे न्यू इतवारी रोड, टांगा स्टैंड चौक ‘त्रिपृष्ठ और महावीर’ इस विषय पर होगा. संयोजन श्री. दिगंबर जैन सेनगण मंदिर लाडपुरा इतवारी का रहेगा. धर्मप्रिय जनों से उपस्थिती की अपील श्री. दिगंबर जैन सेनगण मंदिर के अध्यक्ष सतीश जैन पेंढारी, सचिव उदय जोहरपुरकर ने की है.