नागपुर: लकड़गंज थाना क्षेत्र में 1993 में हुई चोरी के एक मामले में 32 वर्षों बाद सुनवाई पूरी हुई, लेकिन पर्याप्त सबूत और गवाह न मिलने के कारण अदालत ने दोनों आरोपियों को बरी कर दिया। इस दौरान चौंकाने वाली बात यह रही कि चार्जशीट दाखिल होने के बाद भी दशकों तक सुनवाई नहीं हो पाई और आरोपी फरार ही रहे।
32 वर्षों तक नहीं हुई सुनवाई, आरोपी हुए फरार
27 अगस्त 1993 को क्वेटा कॉलोनी स्थित चौरसिया वाइन शॉप में चोरी की वारदात हुई थी। आरोप था कि दुकान की वेंटिलेटर की जाली तोड़कर चोर भीतर घुसे और सामान चुरा ले गए। दुकान मालिक ने अज्ञात चोरों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। पुलिस ने दो संदिग्धों—मुंबई के युसुफ उर्फ मसलेब इकबाल शेख और बांग्लादेश के भोला उर्फ अमीनउल्ला सुनई वशीस को गिरफ्तार कर 2 महीने में यानी 4 नवंबर 1993 को चार्जशीट दाखिल कर दी थी।
हालांकि इसके बाद आरोपी जमानत पर छूटने के बाद फरार हो गए और 32 वर्षों तक कोर्ट में कभी हाजिर नहीं हुए। अदालत ने जमानती और गैर-जमानती वारंट जारी किए, फिर भी आरोपी नहीं आए। अंततः उन्हें फरार घोषित करते हुए अनुपस्थिति में सुनवाई की गई।
न कोई गवाह, न सबूत; अभियोजन पक्ष फेल
कोर्ट के समक्ष सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष आरोप साबित नहीं कर पाया। मामले के दौरान एक भी गवाह का बयान दर्ज नहीं हो सका। यहां तक कि शिकायतकर्ता भी अदालत में उपस्थित नहीं हुए। पुलिस अधिकारी पंकज दहापुते का बयान ही एकमात्र गवाही के रूप में दर्ज किया गया, लेकिन उसमें भी ठोस सबूत नहीं मिल सके।
कोर्ट ने भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 313 के तहत आरोपियों के बयान दर्ज करने की आवश्यकता नहीं समझी।
कोर्ट का निष्कर्ष: आरोप साबित नहीं, आरोपी निर्दोष
कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि चोरी का आरोप ठोस साक्ष्यों के अभाव में साबित नहीं हो सका। शिकायतकर्ता ने भी प्रारंभ में अज्ञात चोरों के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी और किसी प्रत्यक्षदर्शी गवाह का भी उल्लेख नहीं हुआ।
ऐसे में यह सिद्ध नहीं किया जा सका कि घटना के समय आरोपियों ने ही चोरी की थी। नतीजतन, अदालत ने दोनों आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए निर्दोष करार दिया और बरी कर दिया।