नागपुर। पेट्रोलियम एवं खनिज पाइपलाइन अधिनियम, 1962 की धारा 10(4) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को नागपुर हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। प्रभावित किसानों और भू-स्वामियों ने मुआवजे को लेकर यह याचिका दाखिल की थी, लेकिन लंबी सुनवाई के बाद अदालत ने याचिका को “योग्यता रहित” करार देते हुए खारिज कर दिया।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि याचिकाकर्ताओं की भूमि का उपयोग भूमिगत गैस पाइपलाइन बिछाने के लिए किया गया है। अधिनियम के तहत भूमि का स्वामित्व भू-स्वामी के पास ही रहता है, लेकिन भूमि का उपयोग सीमित हो जाता है। इस भूमि पर अब वे न तो कोई स्थायी निर्माण कर सकते हैं और न ही फलदार वृक्ष लगा सकते हैं। इससे भूमि लगभग अनुपयोगी हो जाती है।
मुआवजे को लेकर जताई आपत्ति
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि अधिनियम के तहत मिलने वाला मुआवजा भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 (RFCTLARR Act) की तुलना में काफी कम है। उन्होंने कहा कि 2013 का यह कानून एक क्रांतिकारी पहल थी, जो उचित मुआवजा, पुनर्वास और पुनर्स्थापन की पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाता है। इस अधिनियम के प्रावधानों को न लागू कर केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 300ए के तहत याचिकाकर्ताओं के संवैधानिक संपत्ति अधिकार का हनन किया है।
‘20 मीटर भूमि बेकार हो जाती है’
याचिकाकर्ताओं के वकील ने बताया कि पाइपलाइन के दोनों ओर लगभग 20 मीटर का क्षेत्र प्रभावित होता है, जो कहीं-कहीं 2 से 4 मीटर की गहराई तक बिछाया गया है। इस भूमि का उपयोग न होने के कारण यह क्षेत्र भू-स्वामी के लिए अनुपलब्ध और अनुपयोगी हो जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि मुआवजे का निर्धारण भूमि के बाजार मूल्य के आधार पर होना चाहिए, जैसा कि 2013 के अधिनियम में प्रावधान है।
हाईकोर्ट का फैसला
इन सभी दलीलों पर विचार करने के बाद हाईकोर्ट ने कहा कि याचिका में पर्याप्त कानूनी आधार नहीं है। इसलिए अदालत ने इसे अयोग्य मानते हुए खारिज कर दिया और 1962 के अधिनियम की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा।