जिला सत्र न्यायालय नागपुर ने सुनाया फैसला
नागपुर। जहां एक ओर वर्षों तक कोर्ट में मामलों का लंबित रहना आम बात मानी जाती है, वहीं नागपुर में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसमें दो फरार आरोपियों की गैरमौजूदगी के बावजूद सुनवाई पूरी हुई और दोनों को दोषमुक्त करार दे दिया गया।
यह मामला जरीपटका थाने का है, जहां 26 जुलाई 2002 को सूरजसिंह अजितसिंह लोटे और सपनजीत जगदिशसिंह लोटे के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 324 और 34 के तहत मामला दर्ज किया गया था। दोनों आरोपियों को उसी दिन गिरफ्तार भी किया गया, लेकिन जमानत पर रिहा होने के बाद से दोनों फरार चल रहे थे।
22 वर्ष, 8 माह और 20 दिन बाद, 27 मई 2025 को जिला सत्र न्यायालय ने मामले की सुनवाई पूरी करते हुए दोनों आरोपियों को सबूतों के अभाव में निर्दोष करार दिया।
मामला क्या था?
अभियोजन पक्ष के अनुसार, 26 जुलाई 2002 की शाम 7 बजे शिकायतकर्ता कपील नगर स्थित एनआईटी क्वार्टर के पास खड़ा था। उसी दौरान शिकायतकर्ता की मां द्वारा पुलिस में की गई शिकायत के चलते दोनों अभियुक्तों ने शिकायतकर्ता के साथ गालीगलौच और झगड़ा किया।
कोर्ट की कार्रवाई
चार्जशीट दायर होने के बाद सुनवाई के दौरान आरोपियों की अनुपस्थिति के कारण कोर्ट ने उनके खिलाफ कई बार गैर-जमानती वारंट जारी किए। इसके बाद उन्हें “जाहिरनामा” घोषित किया गया। उनकी लगातार गैरहाजिरी के चलते भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 299 के तहत अभियोजन पक्ष को गवाहों के बयान दर्ज करने की अनुमति दी गई।
सरकारी पक्ष ने तीन गवाहों के बयान दर्ज करवाए। हालांकि, शिकायतकर्ता और अन्य प्रमुख गवाह अदालत में उपस्थित नहीं हो पाए। पुलिस की रिपोर्ट में बताया गया कि वे उपलब्ध नहीं हैं।
गवाहों के बयान और कोर्ट का निष्कर्ष
विशेष बात यह रही कि एक गवाह ने अपने बयान में आरोपियों को पहचानने की बात कही थी और बताया था कि पुलिस ने उसे घटनास्थल पर पंच के रूप में बुलाया था। लेकिन बचाव पक्ष द्वारा की गई जिरह में उसी गवाह ने अधिकांश सवालों पर जानकारी होने से इनकार कर दिया। दूसरे गवाह ने तो यह भी कहा कि उन्होंने पुलिस को क्या बयान दिया था, यह उन्हें याद नहीं।
पुलिस द्वारा जांच के दौरान कथित चाकू भी जब्त किया गया था जिससे शिकायतकर्ता को जख्मी किया गया था, लेकिन कमजोर गवाही और प्रमाणों की कमी के कारण कोर्ट ने दोनों फरार आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए निर्दोष करार दिया।