Published On : Sat, May 26th, 2018

जन्मदिन विशेष – वो नितिन गड़करी जिन्होने कभी दूध और मिठाईयाँ बेचीं

Advertisement

Gadkari

नागपुर: राजनेता के जीवन कई दिलचस्प किस्से कहाँनियों से भरा रहता है। राजनितिक गलियारों में विभिन्न अवसरों पर इन किस्सों का स्मरण होना आम है। विदर्भ के आने वाले बीजेपी के कद्दावर नेता नितिन गड़करी आज देश भर में लोकप्रिय है। उनके काम के साथ उनके बयान भी काफ़ी चर्चा में रहते है। आम तौर पर राजनीतिक जीवन में रहने वाला व्यक्ति ऐसे बयानों को देने के बचता है जिससे विवाद पैदा हो लेकिन नितिन गड़करी की पहचान इसी तरह के बयान देने की हो चली है। लेकिन जो लोग गड़करी से परिचित है वो उनके इस स्वाभाव से परिचित है। मोदी सरकार में मोस्ट परफोर्मिंग मिनिस्टर की पहचान रखने वाले गड़करी संबंधो को जीने वाले नेता है। हैवी वेट केंद्रीय मंत्री होने के बावजूद वो अपनी जड़ों से जुड़े है।

गड़करी के बचपन के साथी रविंद्र फडणवीस के मुताबिक उसका स्वाभाव जैसा बचपन में था आज भी वैसा है। जो कहना सीधे मुँह पर जो करना उसी का वादा करना, राजनीतिक जीवन में उनके बयानों को लेकर लोग उनकी आलोचना भले करते हो लेकिन गड़करी संबंध निभाने वाले व्यक्ति है। एक पल वो ऐसी बात कहते है जो कड़वी लगाती है लेकिन दूसरे ही पल कंधे में हाँथ डालकर पुरानी बातों को झट में भूल जाने की गजब की फ़ितरत उनकी है। आम लोगो को इसकी जानकारी कम ही होगी की कभी गड़करी दूध पहुँचाने का भी काम करते थे। विद्यार्थी जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में सक्रीय हुए गड़करी जब अपने महल स्थित घर से बर्डी स्थित कार्यालय के लिए निकलते थे। तो उनके हाँथो में दूध की केटली होती थी, उनके घर में उत्पादित होने वाले दूध को वो बर्डी की एक कुल्फ़ी दुकान में बेचा करते थे। सिर्फ दूध बेचने का ही नहीं उन्होंने फेब्रिकेशन का काम भी किया। उनके घर के नीचे ही उनका कारखाना था। रविंद्र के अनुसार नितिन ने बचपन में ही तय कर लिया था किसी की नौकरी नहीं करनी। अलग-अलग तरह के बिजनेस आईडिया उन्हें बचपन से ही आते थे।

गड़करी के विद्यार्थी जीवन के एक अन्य मित्र भालचंद्र दावले ने तो उनके घर में रहकर ही अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। दोस्त की आर्थिक परिस्थिति ठीक नहीं होने पर नितिन ने भालचंद्र को अपने साथ रखने का फैसला लिया, दोनों साथ रहे। भालचंद्र बचपन के दिनों को और उस दौर की शरारतों को याद करते हुए कहते थे की नितिन के घर में बड़े-बड़े बर्तन थे जिनका इस्तेमाल नहीं होता था। उन्होंने आईडिया निकाला और उसे किराये पर देना शुरू कर दिया। मस्ती के दौर को याद करते हुए भालचंद्र ने बताया की डीडी नगर विद्यालय के बहार खाने पीने की चीजें बेचने वाले हरिभाऊ चूड़ेवाले को आये दिन दोस्त चपत लगते थे। उसकी ख़ास स्टाईल की वजह उसे दोस्तों ने मधुबाला नाम दे दिया था। गड़करी का पैतृक गाँव नागपुर जिले के धापेवाड़ा में स्थित है। यहाँ अक्सर साईकिल से सभी दोस्त पार्टी मानाने जाते थे। गड़करी आज भी अपनी निगरानी में विरासत में मिली ज़मीन में खेती करते है। भालचंद्र के मुताबिक राजनीति में ऊंचाई पर पहुँचने के बावजूद नितिन गड़करी का स्वाभाव नहीं बदला,सिर्फ गड़करी ही नहीं उनका परिवार भी किसी सामन्य परिवार के जैसा ही है। उनके रिश्ते सामान्य घरों से है जिन्हे वो निभाते है। आज भी हर कार्यक्रम में उन्हें बुलाया जाता है और बचपन की ही तरह सम्मान दिया जाता है। गड़करी का व्यवहार प्रगट करने का तरीका उन्हें अपनी माँ भानुताई से मिला है भालचंद्र नबे बताया वो उन्हें अपने बेटे की तरह ही मानती थी।

Nitin Gadkari Old Photos

नितिन गड़करी से पत्रकारों के भी मधुर संबंध रहे है। शहर के कई पत्रकारों से वो भी कई विषयों पर विमर्श करते रहते है। तरुण भारत के संपादक गजानन निमदेव गड़करी के व्यक्तित्व पर बोलते हुए कहते है की वो संवेदनशील राजनेता है। इतने कद्दावर मंत्री होने के बावजूद उनके या किसी अन्य के बीच सुरक्षा की दीवार या पिए का चक्रव्हूय कोई अड़ंगा नहीं डालता। नागपुर या दिल्ली में कोई भी उनसे आसानी से मिल सकता है। निमदेव ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों को साझा करते हुए बताया की उनके केंद्रीय मंत्री बनाने के बाद उन्हें बुलढाणा से एक फोन आता है की विदर्भ के करीब 400 लोग जम्मू में फंसे है। उन्हें सुरक्षा कारणों से रोक लिया गया था। उन्होंने उनसे मदत की अपील की इसकी जानकारी उन्होंने एमएमएस के माध्यम से गड़करी को दी। आधे घंटे बाद उन्हें खुद गड़करी का फ़ोन आया और उन्होंने बताया की फंसे लोग सुरक्षित है और उन्हें छोड़ दिया गया है। ऐसा ही एक और किस्सा आगरा घूमने गए लोगों की मुश्किल हालातों का है। इस लोगों की ट्रेन किसी कारण से रद्द हो गई थी। उनकी परेशानी की सूचना निमदेव को मिली उन्होंने इसकी सूचना गड़करी को दी। गड़करी ने तुरंत तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु को बोलकर परेशान लोगों को नागपुर लाने का इंतजान कराया। सिर्फ मदत ही नहीं गड़करी खुद संवेदनशील इंसान भी है लोगो की पहचान उन्हें अक्सर रहती है। निमदेव के मुताबिक एक वाकया गड़करी के निवास पर उनकी आँखों के सामने का है। गड़करी अपने निवास में लोगो से मिल रहे थे इसी दौरान पुराने कपड़ो और परेशानी की हालत में उन्हें उनका पुराना मित्र दिखाई दिया। उन्होंने उसको तुरंत पहचाना पहले गले लगाया हाल चाल पूछने के बाद उनकी मदत भी की। निमदेव ने बताया की प्रेस के अक्सर राजनेता दुरी बनाकर रखते है लेकिन गड़करी का स्वाभाव इस मायने में अलग है उनके प्रेस में कई मित्र है। जो कभी भी उनके घर जा सकते है उनसे बात कर सकते है।

दिव्येश द्विवेदी – संवाददाता, नागपुर टूडे

महाराष्ट्र विधान परिषद सदस्य गिरीश व्यास ने गड़करी के साथ लंबे दौर तक काम किया है। एक मायने में वो सीनियर है लेकिन गड़करी की प्रतिभा में हमेशा लीडरशिप रही। आपातकाल के दौर को याद करते हुए व्यास कहते है उन दिनों अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने आपातकाल के ख़िलाफ़ शहर में आंदोलन चला रखा था जिसका नेतृत्व गड़करी ही कर रहे थे। अज्ञात रहते हुए गड़करी मार्गदर्शन करते और अन्य कार्यकर्त्ता उनकी योजना को कामियाब बनाते। गड़करी ने सिनेमा हॉल में प्रदर्शन का आईडिया सोचा। आपातकाल के ख़िलाफ़ पर्चे छपवाए गए कार्यकर्त्ता टिकिट खरीदकर सिनेमा हॉल में जाते और फिल्म शुरू रहने के दौरान इंदिरा गाँधी,आपातकाल के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी करते हुए पर्चे हवा में उड़ाते। व्यास की सी दौरान गिरफ़्तारी होती है और वो 90 दिनों तक सेंट्रल जेल में भी रहते है। इस दौरान शहर के कई मीसा बंदियों के परिवारों को आर्थिक मदत करने का बीड़ा गड़करी ने उठाया था।

व्यास के पास भी गड़करी से जुड़े कई रोचक किस्से है उन्होंने बताया की उनके पिता बच्छराज व्यास तब जनसंघ के अध्यक्ष थे और नितिन गड़करी की माताजी भानुमति सक्रीय सदस्य इस वजह से दोनों परिवारों के बिच घनिष्ठ संबंध थे गड़करी के साथ उन्होंने साथ में पढाई भी की। जनता पार्टी की सरकार के वक्त का एक रोचक किस्सा सुनाते हुए व्यास कहते थे की आपातकाल के बाद हुए आम चुनाव में कांग्रेस की पराजय हुई। देश में जनता पार्टी की सरकार आयी। इस सरकार के दौरान शक्कर की कीमते आम आदमी के बस से बहार थी। विपक्ष में होने के नाते सरकार का विरोध करना लाजमी था। लेकिन गड़करी ने सोचा हम विरोध ऐसा करेंगे जिससे हमारा हित भी पूरा हो जाये और जनता को राहत भी मिल जाए। दिवाली के दिन थे हमने जनता को सस्ते दामों में मिठाई उपलब्ध कराने का फ़ैसला लिया। गड़करी के घर में पंडाल लगाया गया। बिछायत से लाये बर्तनों और अचारियो की मदत से दशहरे से लेकर तो भाई दूजतक हर दिन मिठाई बनती और उसे कल्याणेश्वर मंदिर चौक पर सस्ते दामों में बेचा जाता।

Nitin Gadkari Old Photos
आज राजनीति की ऊँचाइयाँ छू रहे नितिन गड़करी अपने जीवन का पहला चुनाव हार चुके थे। विद्यार्थी जीवन में एक बार नागपुर विश्विद्यालय में छात्रों का प्रतिनिधित्व करने वाली कमिटी का चुनाव लड़ा वो हार गए। इसके बाद पश्चिम नागपुर से विधानसभा का चुनाव लड़ा वो भी हार गए। इसके बाद वो विधान परिषद के सदस्य चुने गए। इसी दौरान सदन में नेता प्रतिपक्ष भी बने। गड़करी एक बार भीषण दुर्घटना का शिकार हुए। जिस वजह से आज भी उन्हें चलने में दिक्कत होती है। जिस समय दुर्घटना हुई उसके कुछ वक्त बाद राज्य में चुनाव था। भारी शारीरिक कस्ट होने के बावजूद उन्होंने चुनाव प्रचार में जाने का फ़ैसला लिया। प्रचार सभाओं में वो जा सके इसके लिए मुंबई में एक ख़ास कार तैयार की गई। इस कार में होने का बिस्तर,मूविंग कुर्सी और माइक लगा था। इसी कार में बैठे बैठे गड़करी सभाओं में अपनी पार्टी के लिए वोट जुटाते थे। व्यास गड़करी को अपने इरादों का पक्का व्यक्ति और निष्ठावान पार्टी कार्यकर्त्ता मानते है जो समाज सेवा और अपने दल के पूरी तरह समर्पित है।

Nitin Gadkari Old Photos

Photo Credit: nitingadkari.org