Published On : Tue, Jun 4th, 2019

डॉ.उदय बोधनकर की आत्मकथा ‘ तिमिर से उदय की ओर ‘ किताब विमोचित

Advertisement

मेरे जीवन को बचाने में कई लोगों ने प्रयास किया है. मेरे साथ दुर्घटना होने के बाद मेरे जीने की डॉक्टरों ने उम्मीद छोड़ दी थी. लेकिन मेरी पत्नी ने डॉक्टरों से कहा था कि वह शेर है ठीक होकर ही रहेगा. उस कठिनाई भरे दिनों से मैं बाहर आया, यह मेरा पुनर्जन्म है. और इसी कारण मैंने यह जीवन सामाजिक कार्यों के लिए समर्पित कर दिया है. यह कहना है शहर के जाने माने बालरोग विशेषज्ञ डॉ.उदय बोधनकर का.

वे उनकी किताब ‘ तिमिर से उदय की ओर ‘ के विमोचन के कार्यक्रम में बोल रहे थे. विमोचन समारोह यशवंतराव चव्हाण प्रतिष्ठान विभागीय केंद्र की ओर से राष्ट्रभाषा संकुल, महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा के बाबूराव धनवटे सभागृह में आयोजित किया गया था. जिसमें प्रमुख रूप से कराड स्थित कृष्णा इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज के कुलपति डॉ. वेदप्रकाश मिश्रा, वरिष्ठ पत्रकार एस.एन.विनोद, गिरीश गांधी, मराठी भाषा की प्रसिद्द साहित्यिक सुप्रिया अय्यर, हिंदी की वरिष्ठ साहित्यिक हेमलता मिश्र, सुनीति बोधनकर समेत अन्य मेहमान समेत सैकड़ों लोग कार्यक्रम में मौजूद थे.

Gold Rate
15 july 2025
Gold 24 KT 98,200 /-
Gold 22 KT 91,300 /-
Silver/Kg 1,12,500/-
Platinum 44,000/-
Recommended rate for Nagpur sarafa Making charges minimum 13% and above

इस दौरान कृष्णा इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज के कुलपति डॉ. वेदप्रकाश मिश्रा ने सभी को संबोधित करते हुए कहा कि डॉ. उदय के साथ जीवन में जो भी हुआ वह उनके साक्षी हैं. तिमिर से उदय की ओर केवल किताब नहीं इसमें डॉ. उदय के जीवन के पहलु हैं. यह उदय नाम उसे इसलिए मिला क्योंकि वह तिमिर से लौट आए. डॉ.उदय को जीवन में दो मौके मिले हैं. उन्होंने कहा कि एक समय डॉक्टर और मरीज के रिश्ते अलग होते थे. मरीज के मन में डॉक्टरों के लिए एक अलग सम्मान था. लेकिन अब केवल उनके बीच कॉमर्स का रिश्ता है. उन्होंने कहा कि डॉ.उदय का तिमिर से नवोदय हुआ है.

मंच पर मौजूद वरिष्ठ पत्रकार एस.एन.विनोद ने सभी को संबोधित करते हुए कहा कि डॉ.बोधनकर की यह किताब अपने आप में सब कुछ कह देती है. इस किताब से कई लोग प्रेरणा ले सकते हैं और कई लोगों को प्रेरणा देने के लिए भी यह किताब प्रेरित करेगी. डॉ.उदय ने बाल रोग विशेषज्ञ बनने के बारे में ही क्यों सोचा, इस बारे में भी जानकारी इस किताब में है. यह बहुत ही दिलचस्प किताब है. डॉ. बोधनकर ने अपनी बहन की मौत देखी और अपने दो बच्चों को खोया है. इस पुस्तक के माध्यम से कई बातें भी बताई गई है. उन्होंने शहर के सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा के बारे में भी मौजूद लोगों को जानकारी दी. उन्होंने कहा कि सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा एक राष्ट्रीय बहस का मुद्दा है. बजट के माध्यम से करोड़ों रुपए आने के बावजूद भी शहर के सरकारी अस्पताल बदहाल हैं. उन्होंने इसे औपचारिक विमोचन न कहते हुए एक क्रांति का विमोचन कहा.

गिरीश गांधी ने इस दौरान कहा कि डॉ.बोधनकर की पत्नी सुनीति की हिम्मत के कारण ही वे इस दुर्घटना से बाहर आए हैं. उनकी पत्नी ने इससे पहले भी कई आघात देखे हैं. उन्होंने कहा कि वे इन दोनों को बहुत पहले से जानते हैं.

मराठी भाषा की प्रसिद्द साहित्यकार सुप्रिया अय्यर ने कहा कि इस किताब का अनुवाद सभी भाषाओं में होना चाहिए. यह एक डॉक्टर की लड़ाई है जो खुद मरीजों का इलाज करता था. वह खुद मरीज बन गया था. उन्होंने बताया कि पहले बोधनकर का फ़ोन आया था अनुवाद के लिए तो मैंने ना कहा था. क्योंकि उनके पति बीमार थे. दूसरी बार फ़ोन आया तो उनके पति की मौत हो चुकी थी. जब तीसरी बार फ़ोन आया तो उन्होंने हां कहा क्योंकि वह भी इस सदमें से बाहर निकलना चाहती थी.

हिंदी की वरिष्ठ साहित्यकार हेमलता मिश्र जिन्होंने उनके किताब का हिंदी अनुवाद किया उन्होंने इस दौरान कहा कि इस पुस्तक को पढ़ने के बाद मन में सैलाब आता है. उन्होंने कहा कि डॉ.बोधनकर उपलब्धियों के भंडार है. इस दौरान सुनीति बोधनकर ने सभी मौजूद लोगों का आभार माना.

Advertisement
Advertisement