नागपुर : नवरात्रि की पहली रात नागपुर के ग्रामीण इलाकों में गरबा उत्सव विवादों में घिर गया। कई आयोजनों को पुलिस ने रात 10 बजे लाउडस्पीकर बंद करने के नियम का हवाला देकर रोका, वहीं आयोजकों का आरोप है कि उन्हें विश्व हिंदू परिषद (VHP) से भी एनओसी लेने के लिए कहा गया। यह शर्त किसी भी आधिकारिक दिशा-निर्देश में दर्ज नहीं है। इस दोहरी स्थिति ने सवाल खड़े कर दिए हैं कि गरबा सच में पुलिस नियमों से रुका या राजनीतिक दबाव से।
वीएचपी की भूमिका पर सवाल
नागपुर टुडे ने जब प्रशांत तिट्रे, महासचिव, विश्व हिंदू परिषद (विदर्भ प्रांत) से पूछा कि उनकी संस्था एनओसी देने की अधिकृत कैसे है, तो उन्होंने स्वीकार किया कि यह केवल आयोजकों की मांग पर दिया गया।
“आयोजकों ने मांगा तो हमने दे दिया। पहले कुछ घटनाओं के कारण हमने गरबा स्थल पर प्रवेश करने वालों को तिलक लगाने की पहल की थी। लेकिन अब सबकुछ ठीक है। किसी को एनओसी चाहिए तो हमें कोई आपत्ति नहीं,” तिट्रे ने कहा।
हालाँकि उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वीएचपी को औपचारिक रूप से एनओसी जारी करने का अधिकार नहीं है। “टाइमिंग और डेडलाइन का निर्णय पूरी तरह पुलिस का है, इसमें हमारा कोई अधिकार नहीं,” उन्होंने जोड़ा।
आयोजकों का आरोप
इसके बावजूद कई आयोजकों का कहना है कि उन्हें अनौपचारिक तौर पर वीएचपी की एनओसी लाने के लिए दबाव डाला गया। “जब पुलिस और प्रशासन की अनुमति ही काफी है, तो किसी निजी संगठन को बीच में लाने की क्या ज़रूरत है?” एक आयोजक ने कहा। आयोजकों का आरोप है कि यह “परंपरा के नाम पर नैतिक दबाव और राजनीतिक हस्तक्षेप” है।
पुलिस का दावा – नियम सबके लिए समान
डीसीपी (ज़ोन-1) ऋषिकेश रेड्डी ने कहा कि 10 बजे के बाद लाउडस्पीकर बंद करने का नियम सभी आयोजनों पर समान रूप से लागू है। लेकिन आयोजकों का कहना है कि जहां उनके कार्यक्रम समय पर बंद कराए गए, वहीं आसपास के कुछ आयोजनों में आधी रात तक गरबा चला। इससे “चयनात्मक कार्रवाई” पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
संस्कृति बनाम राजनीति
नागपुर के ग्रामीण इलाकों में दशकों से गरबा आयोजन आधी रात तक चलते आए हैं। इस बार आयोजकों का कहना है कि विवाद सिर्फ 10 बजे की डेडलाइन तक सीमित नहीं है, बल्कि वीएचपी की भूमिका और राजनीतिक दखल से त्योहार की असली भावना प्रभावित हो रही है।
दर्शकों की नाराज़गी, आयोजकों की चिंता
दूर-दराज़ से आए दर्शक मायूस होकर लौटे। “हम सज-धजकर गरबा खेलने आए थे, लेकिन राजनीति ने माहौल बिगाड़ दिया,” एक सहभागी ने कहा। आयोजकों ने लाइट, साउंड और सजावट पर भारी खर्च किया था, अब उन्हें भारी वित्तीय नुकसान का डर सता रहा है।
त्योहार पर राजनीति की छाया
पुलिस का कहना है कि मुद्दा सिर्फ डेडलाइन का है, वहीं वीएचपी इसे “स्वैच्छिक एनओसी” बता रही है। नतीजा यह है कि नागपुर का गरबा उत्सव पुलिस नियमों, राजनीतिक दबाव और धार्मिक संगठनों की भूमिका के बीच उलझकर रह गया है।











