नई दिल्ली – भारतीय टेलीविज़न पत्रकारिता ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की कवरेज के दौरान जिस स्तर तक गिरावट दिखाई, उसने न केवल देश को शर्मसार किया है, बल्कि भारत को वैश्विक मंच पर हंसी का पात्र बना दिया है। एक बेहद संवेदनशील सैन्य अभियान की रिपोर्टिंग को कुछ टीवी चैनलों ने नाटकीयता, ज़बरदस्ती की देशभक्ति और झूठी सूचनाओं से इतना विकृत कर दिया कि अब उन पर मीम्स बन रहे हैं और विदेशी मीडिया भी उनका मज़ाक उड़ा रहा है।
सबसे हैरानी की बात यह रही कि पाकिस्तान सेना ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारतीय चैनलों की कवरेज के वीडियो दिखाकर भारत पर तंज कसा। इससे बड़ा पत्रकारिता का अपमान और क्या हो सकता है?
‘गोदी मीडिया’ – अब पत्रकार नहीं, प्रचारक
जो पत्रकार कभी अपने पेशे पर गर्व करते थे, आज वे अपना परिचय बताने से भी डरते हैं, क्योंकि उन्हें “गोदी मीडिया” का हिस्सा माना जाता है। इस लेबल ने पत्रकारिता की साख पर अंतिम कील ठोक दी है।
एक पत्रकार द्वारा एक ईरानी राजनयिक को लाइव टीवी पर ‘सूअर’ कह देना और उसके चेहरे को घेरकर अपमानित करना सिर्फ बदतमीज़ी नहीं, बल्कि भारत की विदेश नीति के प्रयासों पर सीधा हमला है। वहीं दूसरी ओर, कुछ एंकर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के संघर्षविराम की अपील पर सवाल उठाते हुए कह रहे हैं, “वो कौन है?” — क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस तरह की भाषा और रिपोर्टिंग को मंज़ूरी देते हैं?
प्रिंट मीडिया की चुप्पी – क्यों?
टीवी मीडिया के इस गिरते स्तर के बीच देश की प्रतिष्ठित संस्था प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और प्रिंट मीडिया की चुप्पी चिंताजनक है। क्या प्रेस क्लब अब पत्रकारों की आवाज़ नहीं, सिर्फ रस्म अदायगी बनकर रह गया है?
प्रिंट पत्रकारों से सवाल – आप कब बोलेंगे?
जब पूरा टेलीविज़न सेक्टर ध्वस्त हो चुका है, तब भी लोग प्रिंट मीडिया पढ़ते हैं, क्योंकि उन्हें आप पर भरोसा है। लेकिन अगर आप भी चुप रहे, तो आने वाली पीढ़ियाँ इस पेशे को कभी माफ़ नहीं करेंगी।
क्या सरकार कोई कार्रवाई करेगी?
जवाब है – नहीं। सरकार सिर्फ उन पत्रकारों पर कार्रवाई करती है जो सत्ता से सवाल करते हैं, न कि उन पर जो प्रोपेगेंडा फैलाते हैं। जब झूठ को इनाम और सच को सज़ा मिले, तो पत्रकारिता एक मज़ाक बन जाती है।
आज जो हुआ है, वह सिर्फ एक रिपोर्टिंग की गलती नहीं, यह देश और उसकी प्रतिष्ठा के साथ गद्दारी है।