Published On : Wed, Mar 11th, 2020

आयुक्त तुकाराम ने ठेकेदारों की होली की बेरंग

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– मनपा में भविष्य को लेकर चिंतित हो गए विकासक

नागपुर: नागपुर महानगरपालिका को आर्थिक संकट के दौर से गुजरने को प्रचारित कर आयुक्त तुकाराम मूंढ़े ने के तरफ पिछले ४३ दिन से किसी को भुगतान करने और न ही टेंडर होने के बाद रोके गए कार्यादेश को शुरू करने के आदेश दिए.इस वजह से मनपा के विकासक अर्थात ठेकेदार वर्ग में उनके भविष्य को लेकर नई चिंता खड़ी हो गई.मूंढ़े राज में पहली मर्तबा ठेकेदारों की होली बेरंग हो गई.दूसरी ओर सत्तापक्ष भी इस दफे ठेकेदारों को राहत दिलवाने मामले में दूर ही रहा.

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गत दिनों आयुक्त मुंढे ने नए कार्यादेश जारी करने से साफ इंकार कर दिया गया. यहां तक कि प्राथमिकता के आधार पर ही भुगतान करने की मंशा भी जता दी थी. वित्तीय अनुशासन लगाने के उद्देश्य से जहां नए कार्यों पर अस्थायी रोक लगी हुई है, वहीं निधि के अभाव में ठेकेदारों को भुगतान नहीं होने से इस वर्ष ठेकेदारों की होली बेरंग हो गई.

जिस तरह से सम्पत्तिधारकों पर मनपा का करोड़ों का बकाया हुआ है, उसी तरह मनपा पर ठेकेदारों का करोड़ों रुपए का बकाया हो गया है, लेकिन बिल के भुगतान को लेकर किसी तरह का निर्णय नहीं हो रहा है, जिससे होली के दौरान विशेष रूप से कामगारों को भी भुगतान करना संभव नहीं हो रहा है. हालांकि होली के पूर्व कुछ राहत की आशा करते हुए ठेकेदारों का एक शिष्टमंडल मनपा आयुक्त से मिला तो था, किंतु उन्हें खाली हाथ ही लौटना पड़ा.

याद रहे कि कुछ ठेकेदारों का मानना था कि पहले भी मनपा की वित्तीय स्थिति अच्छी नहीं थी. यहां तक कि मनपा को कर्मचारियों का वेतन देने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ती थी. इसके बावजूद ठेकेदारों को उनके बकाया बिल में से कुछ न कुछ निधि प्राप्त होती रहती थी, जिससे कम से कम कच्चा माल देनेवाले दूकानदार और कामगारों की झोली में कुछ न कुछ पड़ जाता था, लेकिन अब पूरा लेनदेन ही ठप पड़ा हुआ है. मनपा में लंबे समय से इसी तरह का वित्तीय संकट होने के कारण कई ठेकेदारों की ओर से कर्ज लेकर कार्य किए गए, लेकिन हालात यह हो गए कि अब पुराना ही भुगतान नहीं होने से कर्ज मिलना भी मुश्किल हो गया है.

ठेकेदारों के शिष्टमंडल की ओर से इस तरह की त्रासदी की जानकारी मनपा आयुक्त को दी गई, लेकिन आयुक्त की ओर से ठेकेदारों को पहले प्राथमिकता के अनुसार वित्त प्रबंधन करने के बाद ही ठेकेदारों को भुगतान पर विचार करने की जानकारी दी गई. आयुक्त का मानना था कि सीमित वित्तीय विकल्प रहने से पहले प्राथमिकता के अनुसार ही काम किए जाते हैं. जीपीएफ का भुगतान नहीं होने के कारण मनपा को ब्याज तक अदा करना पड़ रहा है, जबकि जीपीएफ की निधि पहले ठेकेदारों को भुगतान के लिए दी गयी थी. वित्तीय व्यवस्था की समीक्षा चलने की जानकारी देते हुए बजट के बाद ही कुछ राहत मिलने के संकेत भी आयुक्त की ओर से दिए गए.

उल्लेखनीय यह हैं कि काला-पीला कर मनपा को चुना लगाने वाले ठेकेदार अब मूंढ़े में नए ठेके लेने से घबरा रहे,क्यूंकि उन्हें टेंडर कंडीशन के हिसाब से काम करना होंगा।इसमें आनाकानी की तो दोबारा करना पड़ेंगा,जुर्माना भी सहन करना पड़ेंगा तब लगभग ६ माह बाद भुगतान प्राप्त होंगी।
आज बड़े-बड़े दिग्गज ठेकेदार आयुक्त के समक्ष भुगतान हेतु चक्कर लगा रहे,लेकिन आयुक्त के कुछ कड़क सवाल करते ही उल्टे पांव लौट जा रहे.

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