पशोपेश में डेढ़ दर्जन प्रतिनियुक्ति पर आए अधिकारी
नागपुर: २८ जनवरी से सिर्फ १ प्रतिनियुक्ति पर आये आला अधिकारी की तूती बोल रही शेष शहर के दिग्गज सिर्फ ‘हाँ में हाँ’ मिला रहे या फिर मनममोस कर समय काट रहे.इक्के-दुक्के मुस्तैदी से विरोध कर रहे तो उन्हें फांसने के लिए मकड़जाल बुनी जा रही.जिसके लिए समय-समय पर नए-नए कांधे ढूंढ गोलियां दाग उनका आक्रामक क्रम तोड़ा जाने की कोशिश का अहसास किया जा सकता।
गत माह के आमसभा में इस अधिकारी ने लगातार ४ दिन विभिन्न नगरसेवक रूपी वक्ताओं के संसदीय भाषा में पुरजोर विरोध सहा.निश्चित ही यह ऐतिहासिक क्षण दोनों पक्षों के लिए रहा होंगा।इसलिए भी मुमकिन हो पाया क्यूंकि किसी को इज्जत तो किसी को नौकरी बचानी थी,ताकि भविष्य में उनके कैरियर पर कोई दाग न लगे.
गत शुक्रवार को उक्त दिग्गज अधिकारी की सार्वजानिक रूप से करारी हार हुई,जिसे खूबसूरती व दमखम से सच साबित करने की कोशिश की जा रही थी,शुक्रवार को सफ़ेद झूठ साबित हुई.इसका बदला लेने के लिए कल सुबह का प्रकरण ‘दटके बनाम गावंडे’ को एक सोचीसमझी रणनीत के तहत हवा दी गई.
मनपा इतिहास में अधिकारी-सत्तापक्ष,अधिकारी-विपक्ष,अधिकारी-नगरसेवक,अधिकारी-कर्मचारी,मूल अधिकारी-प्रतिनियुक्ति अधिकारी के मध्य भीषण उठापठक हुए और सोडा वॉटर की भांति शांत भी होते देखें गए.लेकिन इसके लिए लिखा-पढ़ी पहली बार देखा गया.साफ़ था कि इसके पीछे एक ‘मास्टर माइंड’ सक्रिय था.
पहला सवाल यह उठता हैं कि क्या पहली दफा दटके उग्र हुए थे या अपना आपा खो दिए थे,इसका सीधा सा और आम जवाब यह हैं कि नहीं। क्या वे अकारण अक्सर उग्र होते हैं,इसका भी जवाब मिला की नहीं.जब उनके निर्देश को किसी ने नियमित सिरे से नज़रअंदाज किया या किसी की आड़ लेकर गुमराह करने की भनक उन्हें लगती हैं या फिर जब उनका कोई खास के काम में अकारण बाधा डलती है तब वे उग्र हो जाते हैं.
दूसरी ओर गावंडे शायद ही कभी ‘फील्ड’ पर जाते,नतीजा मनभेद-मतभेद होता रहा.अक्सर तकनीकी भाषा में अपना वक्तव्य देते हैं.जब कोई घटना घटी तो अपना पल्ला झाड़ ज़ोन के संबंधितों पर इशारा करते मनपा में अनुभव किया हैं.वे नगर रचना विभाग के मुखिया हैं,यह विभाग मनपा को बड़ी आय दे सकता हैं,बशर्ते विभाग ने व्यक्तिगत स्वार्थ छोड़ा तो.शहर भर में अवैध बांधकाम की फेरहिस्त हैं,कार्रवाई के नाम पर शून्य फिर ‘एक नंबर’ राग अलापते कि मनपा की आर्थिक स्थिति जर्जर हैं.ऐसा शेष प्रतिनियुक्ति पर आए अमूमन सभी अधिकारियों का हालचाल हैं,जो शायद ही नियमित ‘फील्ड’ पर जाते हैं.
कल इन प्रतिनियुक्ति पर आए अधिकारियों(जिन्हें मनपा सातवां वेतन आयोग की सिफारिश अनुसार वेतन दिया जा रहा ) की एकता देखने को मिली।इससे पहले कभी एकसाथ ‘चाय की चुस्की’ तक कभी नहीं ली होंगी।कारण साफ़ था इनका ‘मास्टर माइंड’ कोई और था और मुंबई था खबर पहुँचाने का अघोषित रूप से नेतृत्व यही कर रहे थे.इनका निवेदन राज्य के मुख्य सचिव को भेजा गया.इनका मांग हास्यास्पद था,वे मनपा से प्रतिनियुक्ति के पद समाप्त करने की मांग कि जो असंभव मसला हैं.जबकि इन्होंने खुद के तबादले की मांग की होती तो मामला और गरमा सकता था.
इस मामले में स्थानीय अधिकारियों और कर्मचारियों ( जिन्हें अबतक छठवें वेतन आयोग की सिफारिश अनुसार वेतन दिया जा रहा ) को महापौर तक शिकायत करने तक सिमित रखा गया.महापौर के समक्ष इनकी जिद्द ऐसी देखी गई जैसे इन्हें सातवां वेतन आयोग की सिफारिश अनुसार वेतन दिया जाने का आश्वासन मिला हो.
इस मामले पर मंत्री का राजनैतिक बयानबाजी समझ से परे दिखा।मनपा में उन्हीं की पार्टी के नगरसेवक नितिन साठवाणे के अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा,उन्हीं के पार्षदों का प्रशासन के प्रति आक्रोश को नज़रअंदाज किया जाना कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होंगी ,क्या मंत्रिमडल के सदस्य राजनैतिक बंदिश में हैं.या फिर अपने पक्ष के कार्यकर्ताओँ को तहरिज देना मुनासिब नहीं समझते।
‘मास्टर माइंड’ से मनपा के ऊर्जावान नगरसेवकों का भिड़ंत तब तक जारी रहेंगा,जब तक राज्य सरकार मनपा हित में कोई ठोस उपाययोजना नहीं करती।