– प्रशासन की उपेक्षा के कारण जर्जर होकर ‘डंपिंग यार्ड’ बन गया
नागपुर – एक दशक पहले विधायकों की ‘प्राकलन समिति’ ‘मेयो इज ए बूचड़खाना’ शब्दों का उपयोग कर मजाक उड़ाया था. लेकिन चूंकि गरीब निजी इलाज का खर्च वहन नहीं कर सकते, इसलिए इंदिरा गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (मेयो) में इलाज के अलावा कोई विकल्प नहीं है। इसलिए राज्य सरकार ने मेयो अस्पताल परिसर में 77 करोड़ की लागत से एक सुंदर ‘सर्जिकल कॉम्प्लेक्स’ बनाया गया था।सर्जरी से लेकर अत्याधुनिक सुविधा से लैस वार्ड बनाए गए थे। लेकिन प्रशासन की उपेक्षा के कारण मेयो का सर्जिकल कांप्लेक्स जर्जर होकर ‘डंपिंग यार्ड’ बन गया है।
मेयो में ‘सर्जिकल कॉम्प्लेक्स’ में रोगी देखभाल के लिए सर्जरी विभाग का मुख्य ऑपरेटिंग थियेटर और गहन देखभाल इकाई है। इसके अलावा, पहली मंजिल पर,आर्थोपेडिक विभाग के लिए तीन मॉड्यूलर ओटी हैं, जिनमें से प्रत्येक में 30 बेड की क्षमता है और रोगी देखभाल के लिए कई वार्ड हैं। दूसरी मंजिल पर नेत्र विभाग, होम वार्ड, कान-नाक-गला विभाग की तीन अत्याधुनिक सर्जरी की गई।
तीसरी मंजिल पर कान, नाक और गले के विभाग के लिए एक अत्याधुनिक ऑपरेशन थियेटर और सर्जरी विभाग के लिए एक-एक बेड के दो इन-पेशेंट वार्ड बनाए गए हैं।
बर्न वार्ड बेड सहित इस 390 बिस्तरों वाले सर्जिकल कॉम्प्लेक्स ने विभिन्न वार्डों में भर्ती मरीजों को तत्काल कृत्रिम श्वसन प्रणाली प्रदान करने के लिए केंद्रीकृत तरल ऑक्सीजन इकाई को अलग से मंजूरी दी है। एक ‘ऑक्सीजन लीकेज डिटेक्शन सिस्टम’ लगाया गया है, लेकिन इस परिसर स्थानीय प्रशासन ने सिरे से नजरअंदाज कर दिया,नतीजा उक्त काम्प्लेक्स बदहाल सा प्रतीत हो रहा,उस पर किया गया खर्च बेकार हो रहा.
यहां बड़ी संख्या में मंगवाए गए ताबूतों को कोरोना काल में फेंक दिया गया है। इसके अलावा ‘यूपीएस’ ताबूत हवा और बारिश में पड़े हैं। चूंकि ये सामग्रियां यहां पड़ी हैं, इसलिए सर्जिकल कॉम्प्लेक्स की महत्ता ख़त्म हो गई.
ज्ञात हो कि मेयो अस्पताल को स्थाई दिन लम्बे अर्से से नहीं मिला है। हर समय मेयो के अधीक्षक के पद का प्रभारी होता है। पूर्व डॉ. अजय केवलिया के सेवानिवृत्त होने के बाद मेयो प्रभारी बने हुए हैं। इससे पहले भी डॉ. अनुराधा श्रीखंडे कई महीनों से प्रभारी अधिकारी के रूप में कार्यरत थीं। इसके अलावा डॉ. मधुकर परचंद भी प्रभारी थे।सरकार मेयो जैसे महत्वपूर्ण अस्पताल के विकास की वर्षो से लगातार उपेक्षा कर रही है। इसी चक्कर में मेयो का ‘सर्जिकल कॉम्प्लेक्स’ अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा हैं.
उल्लेखनीय यह है कि मेयो में गरीब मरीजों को मुफ्त इलाज और बेहतर डॉक्टर उपलब्ध कराने के लिए बनाया गया था। विशेषज्ञ डॉक्टरों द्वारा इलाज किया जाता है। लेकिन यहां चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की कमी है। एक छत के नीचे उपचार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से 77 करोड़ रुपये की लागत से एक ‘सर्जिकल कॉम्प्लेक्स’ बनाया गया था।लेकिन प्रशासन द्वारा उनकी साफ-सफाई की उपेक्षा के कारण उनका हाल बेहाल हो गया है. प्रवेश द्वार से मेयो की बदहाली दिखाई देता है। प्रवेश द्वार पर भिखारी के समूह हाथ फैलाए आवाजाही करने वालों के लिए सरदर्द बने हुए हैं.