मूल
आजादी के 65 साल बाद भी ग्राम डोणी के निवासियों का वनवास खत्म नहीं हुआ है. मूल से महज 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित आदिवासी बहुल ग्राम डोणी कोलसा गट ग्राम पंचायत के तहत आनेवाले ताड़ोबा अंधारी व्याघ्र प्रकल्प के अंतर्गत बफर जोन में आता है. मूल के करीब होने के बावजूद डोणी का तालुका 61 किलोमीटर दूर चंद्रपुर है. हालांकि पुलिस स्टेशन मूल ही है.
जंगल से घिरा गांव
385 लोगों के इस गांव में 84 घर आदिवासियों के हैं. जंगल से घिरे इस गांव में रोजगार के पर्याप्त साधन भी नहीं हैं. खेती भले ही यहां का रोजगार का मुख्य साधन है, मगर सिंचाई के अभाव और वन्य प्राणियों के आतंक के चलते पर्याप्त आय नहीं हो पाती. वन्य प्राणियों का आतंक डोणी के ग्रामीणों को बारहमासी फसल लेने से वंचित रखता है. जो बांस मिलता है उसकी चटाई बनाकर किसी तरह जीवन चलता है.
न नल, न दवाखाना, न राशन दुक़ान
गांव को जानेवाला रास्ता ऊबड़-खाबड़ है. लगभग गिट्टियों से भरा. गांव के व्याघ्र प्रकल्प में आने के कारण वन्य प्राणियों का डर तो है ही. समस्याएं तो यहीं वास करती हैं. पानी की किल्लत है. स्वास्थ्य समस्याएं मुंहबाए खड़ी हैं. डोणी में कोई दवाखाना नहीं हैं. मलेरिया के मरीज जिधर-उधर नजर आते हैं. इलाज का एकमात्र सहारा वैद्य ही हैँ. नलयोजना नहीं हैं. जल-समस्या भयंकर है. हैंडपंप तो हैं, मगर उंगलियों पर गिने जाने लायक. जो हैं वह भी बिगड़े पड़े हैं. गांव आने के लिए महामंडल की बसें एकमात्र सहारा हैं. दो फेरियां करती हैं. गांव में राशन दुकान नहीं हैं. अजयपुर का राशन दुकानदार अपनी सुविधा के मुताबिक डोणी में आता है और राशन बांटकर चला जाता है.