Published On : Wed, Mar 26th, 2014

पुल बनाने के लिए कीमती पेड़ों कि कटाई

Advertisement

photo

सुस्त अवस्था में वनविभाग 

गोंदिया- अर्जुनी मोरगाँव तालुके के कोहलगाँव (कन्होली) के पास एक नाले के ऊपर पुल बनाने के दौरान ठेकेदार कि ओर से वहाँ के लाखों रुपए कि कीमत के पेड़ों को नुकसान पहुँचाए जाने का  मामला सामने  आया है। गौरतलब है कि ठेकेदार ने दो पेड़ काट दिए है  जबकि तीन और पेड़ गिरने कि कगार पर है। कुछ गाँववासियों ने वनविभाग को इसकी सुचना भी दी लेकिन वनविभाग के अधिकारि धृतराष्ट्र कि भूमिका में नज़र आ रहे है और सब कुछ जानते हुए भी आँखों पर पट्टी बांधे हुए है। दोषी वनविभाग अधिकारियों और ठेकेदार पर कार्यवाही कि मांग उठ रही है।

गौरतलब है की कोहलगाँव फाटक के पास के एक पुल को बनाने का ठेका देवरी के एक ठेकेदार को दिया गया है। ये निर्माण कार्य सार्वजनिक बांधकाम विभाग कि देखरेख में हो रहा है और ये वनक्षेत्र नवेगाँव रेंज के कोहलगाँव-वीटा कि हद में आता है। मिली जानकारी के मुताबिक़ जिस जगह निर्माणकार्य चालू है उसी जगह रास्ते के किनारों को लगकर २ सागवन और कुछ आंजन के अत्यंत पुरातन (तकरीबन ७० से ८० साल पुराने) पेड़ हैं। इस पुल के निर्माण कार्य कि इजाज़त ठेकेदार को बांधकामविभाग कि ओर से मिलने के बाद पुल निर्माण कि जगह पर मौजूद सागवान के कीमती पेड़ों को नुक्सान न पहुचे इसका ख़याल ठेकेदार कि ओर से रखा जाना चाहिए था। बायपास रास्ता बनाते वक्त आंजन के जो वृक्ष रास्ते में आ रहे थे उनकी कटाई करने से पहले वनविभाग कि तरफ से इज़ाज़त लेना ज़रूरी है। लेकिन बायपास रास्ता तैयार करते वक्त बीच में आने वाले आंजन के कई वृक्षों कि कटाई ठेकेदार ने कर दी। इसके अलावा पुल के पास २ सागवान और १ आंजन का वृक्ष जिसकी गोलाई ५ से ७ फूट होगी उसे भी तोड़ा गया है। वृक्ष के अगल बगल कि ज़मीन कि खुदाई कर दिए जाने के कारण किसी भी वक्त वो वृक्ष धराशाही हो सकता है जिससे वहाँ काम करने वाले मज़दूरो पर हर वक्त पेड़ के गिरने का खतरा मंडरा रहा है।

ध्यान देने वाली बात ये भी है कि पुल से लगे रास्ते से नवेगाँव वनपरिक्षेत्र के वाहतुक वनअधिकारी और कर्मचारी रोज़ गुज़रते हैं। किसी किसान कि ओर से अपने खेत में मौजूद पेड़ को बिना वनविभाग कि इजाज़त के काटे जाने पर किसान को नियमों का हवाला देते हुए डराने धमकाने वाले ये वनाधिकारी इस कथित दोषी ठेकेदार पर कार्यवाही क्युँ नहीं कर रहे ये सवाल पैदा ओ रहा है। वनअधिकारी और ठेकेदार कि मिलीभगत के कयास लग रहे है। इस सम्बन्ध में जब एक वनाधिकारी से बात कि गयी तो जवाब  में  दोषी व्यक्ति पर उचित कार्यवाही कि जायेगी ऐसा जवाब तो मिला पर एक महिना गुज़र जाने के बावजूद भी इन कीमती वृक्षों को क्षति पहुचाने वाले ठेकेदार पर कार्यवाही क्यों नहीं कि जा रही है ये सवाल उठना लाज़मी है।