Published On : Wed, Sep 10th, 2014

नागपुर : टिकट देने से इनकार, बस वोट लेने को तैयार

Advertisement

photoजिले में उत्तर भारतीय उपेक्षा के शिकार, प्रतिनिधित्व का टोटा सभी दलों में. 

चतुर्वेदी, गुप्ता, तिवारी, व्यास, सफेलकर, पांडे, अग्निहोत्री टिकटार्थियों की कतार में.

नागपुर टुडे. 

Gold Rate
25 April 2025
Gold 24 KT 96,300 /-
Gold 22 KT 89,600 /-
Silver / Kg 97,100 /-
Platinum 44,000 /-
Recommended rate for Nagpur sarafa Making charges minimum 13% and above

महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों की संख्या इतनी है कि वह किसी भी लोकसभा या विधानसभा चुनाव को प्रभावित करती रही है. दूसरी ओर चुनावों के वक़्त इन्हीं उत्तर भारतीयों को उपेक्षित रखा जाता है. लगभग सभी दल उनके वोट हासिल करने के लिए हमेशा उनसे नए-नए लुभावने वादे करते रहते हैं. नागपुर जिले का भी लगभग यही हाल है. एकाध अवसर को छोड़ दें तो शहर में उत्तर भारतीयों को टिकट देने के मामले में सभी दल ऐन वक़्त तक आनाकानी करते रहे हैं. ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या आगामी विधानसभा चुनाव में उत्तर भारतीयों को टिकट देने में पार्टियां दिलेरी दिखाएंगी ?

मध्य और पूर्व क्षेत्र उत्तर भारतीय बहुल 

नागपुर शहर में मध्य और पूर्व क्षेत्र उत्तर भारतीय बहुल क्षेत्र हैं. पूर्व नागपुर से सतीश चतुर्वेदी पिछले विधानसभा चुनाव तक बतौर कांग्रेसी उम्मीदवार उत्तर भारतीयों का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं. वे इस क्षेत्र से 4 दफा विधायक चुने गए हैं. इसके अलावा न तो कांग्रेस ने और न ही भाजपा ने उत्तर भारतीयों को दमखम के साथ कभी मैदान में उतारा है.

चतुर्वेदी आज भी उत्तर भारतीयों के लिए प्रेरणास्त्रोत है.बाहरी राज्यों से आने वाले उत्तर भारतीय छात्र,युवक और काम-धंधा करने हेतु आने वालों को हरसंभव मदद करते रहे है.वही भाजपा नेता दयाशंकर तिवारी भी उत्तर भारतीय समुदाय के उत्थान के लिए हरसंभव प्रयास करते रहते है.

टिकटार्थियों की कतारें लगी

इस विधानसभा चुनाव में सतीश चतुर्वेदी, जयप्रकाश गुप्ता, दयाशंकर तिवारी, गिरीश व्यास, रणजीत सफेलकर, आभा पांडे, उमाकांत अग्निहोत्री आदि अपने-अपने दलों से टिकट मांग रहे हैं. अब देखना यह है कि कांग्रेस और भाजपा के अलावा और कौनसे दल उत्तर भारतीय मतों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए उत्तर भारतीयों को उत्तर भारतीय बहुल क्षेत्रों से उम्मीदवार बनाते हैं.

सिलसिला बरसों से जारी 

उल्लेखनीय है कि लगभग सभी दल नागपुर समेत विदर्भ के उत्तर भारतीयों को  न तो केंद्र में और न ही राज्य मंडल-महामंडल-समितियों और पार्टी में उचित प्रतिनिधित्व देते हैं. जब पार्टी में स्थान देने का मुद्दा उछलता है तब पार्टी की उत्तर भारतीय इकाई बनाकर उसमें सभी को डाल दिया जाता है. बरसों से बस यही सिलसिला जारी है.

Advertisement
Advertisement