सरकारी कंपनी महाऑनलाइन पर श्रमिक एल्गार का आरोप
जांच और कार्रवाई की मांग, वरना आंदोलन
चंद्रपुर
राज्य सरकार की कंपनी महाऑनलाइन पर 500 करोड़ से अधिक के घोटाले का आरोप लगाते हुए श्रमिक एल्गार की नेता अधि. पारोमिता गोस्वामी ने कहा है कि ई-पंचायत के तहत राज्य के 32 हजार युवाओं को रोजगार मिला था. टाटा कन्सल्टन्सी की भागीदारी में बनी कंपनी को सरकारी अध्यादेश के मुताबिक कर्मचारियों को डेटा एंट्री ऑपरेटर को देय वेतन मिलना चाहिए था, मगर निजी कंपनी की मार्फ़त आधा वेतन देकर काम करवाया जाता रहा. चंद्रपुर जिले में ऐसे 750 कर्मचारी हैं, जबकि राज्य में 35 हजार. इन कर्मचारियों को उद्यमी का दर्जा दे दिया गया है, जिससे ये कर्मचारी अपना कानूनी अधिकार मांगने की स्थिति में भी नहीं है.
जनता के साथ धोखाधड़ी
सुश्री गोस्वामी ने एक पत्र परिषद में बताया कि केंद्र सरकार की निधि से संचालित ई-पंचायत राज्य की ग्राम पंचायतों को कम्प्यूटरीकृत कर सीधे राज्य की राजधानी से जोड़ने की परियोजना है. वर्ष 2010 में राज्य सरकार और टाटा कन्सल्टन्सी की भागीदारी में बनी कंपनी महाऑनलाइन को ग्राम पंचायत स्तर पर डेटा एंट्री ऑपरेटर नियुक्त करने थे. 30 अप्रैल 2011 को बाकायदा सरकार ने फैसला किया था कि ऑपरेटर को 8324 रुपए मानधन देने का करार ग्राम पंचायतों को करना होगा, मगर हुआ इसका उल्टा ही. डेटा एंट्री ऑपरेटर की नियुक्ति का अधिकार निजी कंपनी को दे दिया गया. महाऑनलाइन ने यूनिटी टेलीकॉम इन्फ्रास्ट्रक्चर यूनिटी आईटी और चंद्रपुर ऑनलाइन लिमिटेड की मार्फ़त डेटा एंट्री ऑपरेटर की आपूर्ति का करार किया. इस कंपनी ने ऑपरेटर को 8324 रुपए देने की बजाय 3800 से 4100 मानधन दिया. सुश्री गोस्वामी ने सवाल उठाया कि तेरहवें वित्त आयोग से मिलनेवाली बाकी रकम आखिर कहां जाती है ? याद रहे कि आयोग से मिलनेवाली 20 फीसदी राशि ग्राम पंचायत के अधिकार की होती है. उन्होंने इसे जनता के साथ धोखाधड़ी बताया.
उच्च अधिकारियों ने हजम कर लिया मानधन
अधि. पारोमिता गोस्वामी ने बताया कि योजना के तहत चंद्रपुर जिले में 750 और पूरे राज्य में 35,000 डेटा एंट्री ऑपरेटर काम कर रहे हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि ऑपरेटरों के मानधन को हजम करनेवाले राज्य सरकार के उच्च पदस्थ अधिकारी हैं और प्रतिमाह 12 करोड़ से अधिक की राशि हजम कर ली जाती है. दूसरी ओर महाऑनलाइन कंपनी के सलाहकारों को प्रतिमाह डेढ़ से ढाई लाख रुपया वेतन दिया जाता है. लेकिन महाऑनलाइन की वेबसाइट पर इस संबंध में कोई भी जानकारी नहीं दी गई है. इसलिए यह विशुद्ध रूप से घोटाला है. उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने डेटा एंट्री ऑपरेटर का बकाया पैसा तुरंत नहीं दिया तो श्रमिक एल्गार आंदोलन करेगा.
प्रधान सचिवों की चुप्पी
श्रमिक एल्गार की नेता अधि. पारोमिता गोस्वामी ने बताया कि जब उनके संगठन को डेटा एंट्री ऑपरेटरों की ढेर सारी शिकायतें मिलीं तो उन्होंने मुंबई जाकर ग्रामविकास विभाग के प्रधान सचिव एस. एस. संधु और तकनीकी विभाग के प्रधान सचिव राकेश अग्रवाल से भेंट की. लेकिन दोनों अधिकारी संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए. इन अफसरों को तो यह भी नहीं मालूम था कि महाऑनलाइन ने कोई निजी कंपनी की नियुक्ति कर रखी है.
सवाल पूछा तो काम से निकाल दिया
सरकार के नियमानुसार डेटा एंट्री ऑपरेटर को 8324 रु. और कर, कम्प्यूटर विशेषज्ञ को 10 हजार रु. और कर तथा हार्डवेयर इंजीनियर को 10 हजार रु. और कर दिया जाना चाहिए था. लेकिन पिछले दो सालों से किसी को भी इतना मानधन नहीं मिला है. इतना ही नहीं, निजी कंपनी से तो समय पर तय मानधन भी नहीं मिलता. रत्नापुर के संजय ईश्वर बोरकर ने जब इस संबंध में पूछताछ की तो उसे कंपनी ने काम से ही निकाल दिया. श्रमिक एल्गार ने इस पूरे मामले की जांच की मांग की है.