Published On : Sun, Aug 10th, 2014

चंद्रपुर : शहीदों को श्रद्धांजलि देने की एक अनोखी परंपरा

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एक पुलिस अफसर ने की थी शुरू, घने जंगल में बनवाया शहीदों का स्मारक

(प्रशांत विघ्नेश्वर) 

चंद्रपुर

Hutatma Smarak Chandrapur
अब से ठीक 25 साल पहले चंद्रपुर जिले के टेकामांडवा के जंगल में नक्सलियों द्वारा बम विस्फोट कर मारे गए 8 जवानों को राज्य सरकार, प्रशासन और उनके अपने साथी भी भूल चुके थे. आदिवासियों को पुलिस से तीन हाथ दूर करने वाली इस घटना के कोई दस साल बाद एक अधिकारी ने वो कर दिखाया जो किसी ने सोचा भी नहीं था. सिर्फ 5 माह की तैनाती पर आए पुलिस निरीक्षक स्तर के अधिकारी पुंडलिक सपकाले ने इन शहीद जवानों का स्मारक बनवाया और फिर उसी घने जंगल में आदिवासियों को आदर से साथ निमंत्रित किया. पुलिस से दूर रहने और दहशत के साये में जी रहे आदिवासियों ने पुलिस कर्मियों के साथ बैठकर भोजन किया. आज 15 साल बाद भी यह परंपरा कायम है और आदिवासी तथा पुलिस वाले इस जंगल में हर साल 10 अगस्त को जुटते हैं, शहीदों को नमन किया जाता है और फिर सब लोग साथ बैठकर खाना खाते हैं.

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विस्फोट कर उड़ाया था पुलिस की गश्ती जीप
तीन दशक पहले चंद्रपुर -गडचिरोली में शुरू हुआ नक्सली आंदोलन आज भी चल रहा है. आंदोलन अब आतंकवाद का रूप ले चुका है. सरकार नक्सलियों पर नियंत्रण के लिए दर्जनों प्रयास कर चुकी है. अभी भी कर रही है. सैकड़ों जवान शहीद हो चुके हैं. नक्सलियों ने आज से 25 साल पहले 10 अगस्त 1989 को महाराष्ट्र-आंध्र प्रदेश की सीमा पर स्थित टेकामांडवा के जंगल में एक शक्तिशाली विस्फोट कर एक गश्ती जीप को उड़ा दिया था. इसमें जीप में सवार 9 में से 8 जवान शहीद हुए थे.

1988 के अंत में बढ़ीं नक्सली गतिविधियां
1988 के अंत में गडचिरोली जिले के सिरोंचा, असरअली, अहेरी, एटापल्ली
में नक्सली गतिविधियां बढ़ीं. गडचिरोली जिले के चामोर्शी, कुरखेड़ा, आरमोरी व पुराडा पुलिस स्टेशनों के क्षेत्र में गतिविधियां चालू रहने के दौरान ही नक्सलियों ने चंद्रपुर जिले के राजुरा, कोठारी, गोंड़पिपरी की ओर रुख किया. 1989 में नक्सली भंडारा जिले के अर्जुनी मोर, चिंचगढ़, देवरी, सालेकसा की ओर बढ़े. यवतमाल, नांदेड जिले में भी नक्सलियों ने पैर पसारे.

… और अचानक हुआ जोरदार विस्फोट
इसी दौरान सरकार ने चंद्रपुर में एक पुलिस उप अधीक्षक का पद सृजित किया. भारी पैमाने पर एसआरपी पुलिस को नक्सली इलाकों में तैनात किया गया. अनेक कल्याणकारी योजनाएं भी चलाई गईं. टेकामांडवा परिसर में गश्त के लिए एसआरपी पुलिस को लगाया गया. 15 गांवों का जिम्मा इस पुलिस को दिया गया. 10 अगस्त 1989 को एक टुकड़ी को गश्त पर भेजा गया. 9 सदस्यीय इस टुकड़ी में 7 जवान पुणे, एक नागपुर का और जीप चालक था. दोपहर का समय था.… और अचानक एक जोरदार विस्फोट हुआ. जीप हवा में उड़ गई. कोई जवान कहीं गिरा तो कोई कहीं. पीएसआई भोसले, हवलदार अशोक परब, कां. श्रीहरि शेरे, सर्जेराव सपकाल, बलिराम जाधव, विलास तामड़े, काशीनाथ रसाल, दत्तात्रय सालुंके और चालक हजारे इधर-उधर बिखरे पड़े थे. 28 वर्षीय सालुंके को छोड़ सबकी घटनास्थल पर ही मौत हो गई थी.

Police Upnirikshak Pundalik Sapkaal शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित कर भूल गई सरकार
जंगल में आग की तरह देश भर में खबर फैली. सरकार ने सारे शहीद जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित कर नक्सलियों के सफाए का संकल्प लिया. लेकिन इस घटना के बाद आदिवासियों ने पुलिस से तीन हाथ की दूरी बना ली. भय और दहशत उनकी जिंदगी का मानो हिस्सा बन गया. सब-कुछ ऐसे ही चलता रहा. पुलिस आदिवासियों के सहयोग के बगैर अपनी गतिविधियां चलाते रहे.

तबसे चल पड़ी परंपरा
इस घटना के दस साल बाद 1999 में टेकामांडवा में पुलिस निरीक्षक पुंडलिक सपकाले को भेजा गया. उन्होंने गांवों में फैले डर और दहशत का कारण खोज निकाला. सपकाले ने कोशिश शुरू की. उन्होंने विस्फोट के घटनास्थल पर स्मारक बनवाया. शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की. इस कार्यक्रम में आसपास के गांवों के लोगों को आमंत्रित किया गया और सबने मिल-बैठकर भोजन किया. बस.. तबसे यह परंपरा चल पड़ी. इस साल भी यही हुआ.

…. और रिश्तेदारों की आंखों से बहने लगे आंसू
दस साल पहले आदिवासियों और पुलिस कर्मियों के साथ में बैठकर भोजन करने की परंपरा टेकामांडवा में शुरू तो हो गई, मगर शहीद जवानों के रिश्तेदारों का कोई पता नहीं था. उन्हें मालूम ही नहीं था कि उनके शहीद रिश्तेदार का स्मारक बन चुका है. पुलिस अधीक्षक राजीव जैन ने यह महत्वपूर्ण काम किया. उन्होंने पिछले साल शहीदों के रिश्तेदारों की खोज शुरू की. उन्हें सफलता भी मिली. पिछले साल ही सारे रिश्तेदारों को टेकामांडवा के घने जंगलों में आमंत्रित किया गया. अपने रिश्तेदार का स्मारक देख उनकी आंखों के आंसू ठहर नहीं सके.

जो भी अच्छा हो सके, जरूर करें – सपकाले
पुलिस निरीक्षक पुंडलिक सपकाले मानते हैं कि पुलिस की नौकरी सिर्फ नौकरी नहीं होती, बल्कि एक राष्ट्रीय कर्तव्य होता है. उन्होंने कहा कि यह नौकरी करते हुए हमें नहीं भूलना चाहिए कि हम राष्ट्रसेवा में है. हर किसी को जो भी अच्छा कार्य उससे हो सकता है वह करना चाहिए. इस सेवा में रहते हुए अनेक जटिल समस्याओं को हल किया जा सकता है.

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