प्याज उत्पादक किसान सर्वाधिक परेशान
खामगांव
इस साल फरवरी के अंतिम और मार्च के पहले सप्ताह में ओलों के साथ हुई बरसात ने प्याज की फसल को पूरी तरह से बरबाद कर दिया है. ये वह वक्त था जब प्याज की फसल अपने पूरे शबाब पर थी. प्याज की ग्रीष्मकालीन फसल के डूबने से प्याज उत्पादक किसानों की मुश्किलें बढ़ गई हैं. वह गहरे आर्थिक संकट में फंस गया है.
प्याज की फसल के लिए खर्च अधिक लगता है, जबकि बिक्री के समय बाजार में उचित भाव भी नहीं मिलता. पिछले वर्ष 2013 के अगस्त माह में प्याज के भाव बाजार में 5 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक पहुंच गए थे. मगर उस समय उंगलियों पर गिनने लायक किसानों के पास ही प्याज उपलब्ध था. प्रारंभ के कुछ दिनों में तो प्याज बहुत ही कम दामों पर बिका था.
उम्मीदों पर फिरा पानी
इस साल पर्याप्त बारिश होने के कारण प्याज उत्पादक किसानों को अच्छा भाव मिलने की उम्मीद थी, परंतु ओलावृष्टि ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. अगस्त से नवंबर के बीच में बाजार में प्याज के भाव बढ़ गए थे, परंतु तब तक बारिश और ओलावृष्टि के कारण किसानों के पास पड़ा आधे से अधिक प्याज सड़ गया था. इससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा.
खर्च अधिक, भाव कम
पिछ्ले 5 सालों से ढोरपगांव परिसर में प्याज का रिकॉर्ड उत्पादन हो रहा था, मगर पिछले साल और इस वर्ष भी प्याज की दोनों फसलों के बरबाद होने के कारण प्याज उत्पादक किसानों की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो गई है. कीटनाशकों का छिड़काव, निंदाई, पानी देने और प्याज
के यातायात खर्च को देखते हुए प्याज का प्रारंभिक खर्च प्रति एकड़ 35 से 50 हजार रुपए तक आता है. ऐसे में किसानों की अपेक्षा है कि बाजार में प्याज का भाव कम से कम 1500 रुपए प्रति क्विंटल तो मिलना ही चाहिए.