Published On : Sun, Mar 30th, 2014

अकोला: माँग के बावजूद, कपास के दामों में भारी गिरावट

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प्रजाति ७९७ के दाम महीने भर में गिरे ५०० रूपए प्रति क्विंटल।

जानबूजकर ऐसी स्थिति पैदा करने कि आशंका। 

cotton

भारतीय कपास को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में  अच्छी माँग होने के बावजूद वायदा बाज़ार में कार्यरत एनसीडीएक्स (नैशनल एंड कमोडिटी एक्सचेंज) द्वारा प्रतिदिन जारी होनेवाली कपास की प्रजाति ७९७ के दाम १७ फ़रवरी से २७ मार्च तक औसत ५०० रूपए प्रति क्विंटल से गिर चुके हैं। जानकार इसपर आश्चर्य व्यक्त कर रहे है। इसके कारण कपास उत्पादक किसान सामान्य छोटे-मोटे व्यापारी तथा जिनिंग प्रेसिंग मिल मालिकों में खलबली मची है। कपास व्यापार से जुड़े सूत्रों के अनुसार कपास के दाम गिराने का यह सोचा समझा षड़यंत्र हो सकता है। एनसीडीएक्स हर कमोडिटी में प्रति दिन खरीदी व्यवहार करती है। जिसमें दो प्रकार के सौदे होते हैं। एक वायदा बाज़ार का सौदा और दूसरा हाज़िर बाज़ार का सौदा। हाज़िर बाज़ार में स्पष्ट रेट फिक्स किया जाता है। इसमें डिलिवरी कम्पलसरी और नॉनकम्पलसरी होती है। यानि कपास का खरीदी मूल्य निर्धारित होने पर कम से कम ४० क्विंटल की खरीद करना अनिवार्य है। लेकिन, वर्तमान कपास के व्यवहार में खरीदी करना कम्पलसारी नहीं है और इसलिए कपास के दाम गिराने के षड़यत्र कामयाब हो रहे है।

पिछले एक महीने में तक़रीबन १६ प्रतिशत दाम घटने से  और स्पॉट रेट में गड़बड़ी कि आशंका से व्यापारी चिंतित है साथ ही डिलीवरी कि गारंटी नहीं होने की भी बात कही जा रही है।

एक नज़र आँकड़ों पर।  

एनसीडीएक्स की ओर से जारी आँकड़ों पर नज़र डालें तो पता चलता है की १७ फ़रवरी को जो दाम ९३६ रूपए प्रति २० किलो थे वही दाम २८ फ़रवरी को ८२७ रूपए हो गया। इससे साफ़ होता है की दस दिन में १०९ रूपए की गिरावट दर्ज़ की गयी है। वहीँ दाम २७ मार्च को ८०८ रूपए तक गिरा जो १०९ रूपए पर फिरसे १९ रूपए कम हुआ। इस लिहाज़ से प्रति क्विंटल कपास का दाम ४६४ से ५१२ रूपए प्रति क्विंटल औसतन गिरा है। १ से २ प्रतिशत की गिरावट बाज़ार जानकारों के मुताबिक़ सामान्य मानी जाती है लेकिन १४ से १६ प्रतिशत गिरे ये दाम चिंता का विषय है।

किसानो और मध्यमवर्गीय व्यापारियों की बढ़ी परेशानी।  

भाव गिरने से अगर किसीको सबसे ज्यादा नुक्सान हो रहा है तो वो है किसान और आम मध्यमवर्गीय व्यापारी। इस बारे में कपास व्यापारी और जिनिंग मिल मालिक फर्म कन्हैयालाल दयाचंद की ओर से अनूप गुप्ता ने एनसीडीएक्स मुम्बई कार्यालय को २० मार्च को चिट्ठी लिखकर कपास के दामों में हो रही धांधली की घटना को उजागर किया था। एनसीडीएक्स के एम. डी. और सीईओ समीर शहा को  जानकारी देने के अलावा प्रत्यक्ष मिलकर भी गड़बड़ियों के बारे में जानकारी दी गयी।  शहा ने सुधार करने का मौखिक आश्वासन तो दिया लेकिन कुछ नहीं किया गया।

चंद व्यापारी क्युँ कर रहे है दाम निर्धारण

कपास कमोडिटी में तीन प्रकार के उत्पाद होते है। रुई, सरकारी (ढेप) और कपास गाठियाँ। जिसमे रुई व सरकारी ढेप के दाम एक ही उत्पाद में ठीक तरह से तय हो रहे है सिर्फ कपास धागों के दामों में ही गिरावट दर्ज़ की जा रही है। मिली जानकारी के मुताबिक़ कपास के दाम सुरेंद्रनगर, गुजरात के कुछ (४-५) व्यपारियों से लेकर एनसीडीएक्स अपनी ncdx.com  इस संकेतस्थल पर डालती है। हज़ारों लाखों व्यापारी और उद्यमी होने के बाद सिर्फ ४-५ व्यापारी एक जगह बैठकर भाव तय करते है और वही भाव पुरे देश में चलाये जाते है इसी जगह पर गड़बड़ी कि आशंका आती है। मुट्ठीभर हवाला व्यापारियों द्वारा पुरे देश की अर्थव्यवस्था पर चोट करना एक बड़े आर्थिक घोटाले का सूचक है। इसके जरिये कपास व्यापार में कृत्रिम मंदी निर्माण करने कि कोशिश ये लोग कर रहे है।

कपास के दाम और बढ़ना था अपेक्षित। 

पिछले दो महीने से भारतीय कपास को चीन, बांग्लादेश, वियतनाम, पाकिस्तान जैसे देशों से अच्छी खासी मांग है। ऐसे में घरेलु बाज़ार में कपास के दाम निरंतर बढ़ते रहना अपेक्षित है। कुछ संस्थाओं द्वारा किसानो और व्यापारियों को इस तरह प्रताड़ित किया जाना निश्चित ही चिंता का विषय है. ये जगजाहिर है की जब तक़रीबन ६ साल पहले भारतीय बाज़ार में वायदा बाज़ार, एनसीडीएक्स आरम्भ करने के सन्दर्भ में चर्चा हुई थी तब देश के ८० प्रतिशत से अधिक किसान और व्यापारी वायदा बाज़ार के खिलाफ थे। कॉंग्रेस (यूपीए) कि सरकार में शुरू हुए वायदा बाज़ार पर कई तरह के घोटालों के आरोप लगते रहे है। भारतीय उद्योग व बाज़ार मसंघ ने लम्बे समय से वायदा बाज़ार बंद करने का आंदोलन चलाया है।