Published On : Thu, Aug 21st, 2014

चंद्रपुर : तीन घंटे चला नरभक्षी बाघ का पोस्टमार्टम

Advertisement


बुधवार को चंर्दंपुर की रामबाग नर्सरी में किया गया, कुछ अंश भेजे गए हैदराबाद

चंद्रपुर

Maneater Tiger (Chandrapur)
पिछले कुछ दिनों तक पोभुर्णा में आतंक का पर्याय बने रहे बाघ के पोस्टमार्टम को भी तीन घंटे का समय लगा. 19 अगस्त को पोभुर्णा तालुका के डोंगरहलदी से उमरी मार्ग के बीच एक पुल के पास शार्पशूटर विनोद ने नरभक्षक बाघ को मौत के घाट उतार दिया था. बुधवार को सुबह 8 बजे बाघ का पोस्टमार्टम किया गया.

Gold Rate
04 Aug 2025
Gold 24 KT ₹ 1,00,300 /-
Gold 22 KT ₹ 93,300/-
Silver/Kg ₹ 1,12,100/-
Platinum ₹ 46,000/-
Recommended rate for Nagpur sarafa Making charges minimum 13% and above

7 लोगों की जान ली थी
7 लोगों की जान लेने वाले इस बाघ की मौत के बाद चंद्रपुर के रामबाग नर्सरी में उसका पोस्टमार्टम किया गया. इस मौके पर डॉ. चित्रा राउत, डॉ. पी. डी. कडूकर, डॉ. खोब्रागडे और डॉ. छोमकर उपस्थित थे. बाघ के शरीर के कुछ अंशों को हैदराबाद स्थित फॉरेंसिक लैब भेजा गया है.

देखते ही गोली मारने का आदेश
याद रहे कि पोभुर्णा परिसर में पिछले कुछ दिनों में 7 लोगों की जान लेने वाले इस बाघ को पकड़ने में वन विभाग के नाकाम रहने के बाद रविवार 17 अगस्त को देखते ही गोली मारने के आदेश दे दिए गए थे. इस आदेश के बाद वन विभाग और पुलिस ने सर्च आॅपरेशन प्रारंभ किया था. इसी दौरान 19 अगस्त की सुबह 6 बजकर 27 मिनट पर एक पुल के पास शार्प शूटर विनोद को बाघ दिखाई दिया और उसने बाघ पर ताबडतोड 20 गोलियां चला दी, जिसमें से 15 गोली बाघ को लगी और वह वहीं पर ढेर हो गया.

देखने के लिए लगी भीड़
बाघ के मारे जाने की खबर जंगल में आग की तरह आसपास के गांवों में फैली और गांव वालों ने उसे देखने के लिए भीड़ लगा दी. वन क्षेत्र अधिकारी डी. एम. उके और वन परिक्षेत्र अधिकारी राठोड़ घटनास्थल पर पहुंचे और बाघ को हटाया गया.

क्या बाकी बाघों को भी मारोगे ऐसे ही ?
बाघ के मारे जाने के बाद से वन्य प्रेमियों द्वारा इस घटना की निंदा की जा रही है. उनका सवाल है कि अगर मारा गया बाघ नरभक्षी था तो क्या दूसरे नरभक्षी बाघों को भी इसी तरह मार गिराया जाएगा ?

नरभक्षी नहीं था वह बाघ : ग्रीन प्लैनेट सोसायटी का दावा
इस बीच, ग्रीन प्लैनेट सोसायटी ने दावा किया है कि वह बाघ नरभक्षी था ही नहीं. सोसायटी के प्रा. सुरेश चोपणे, प्रा. योगेश दूधपचारे और प्रा. सचिन वझलवार ने कहा है कि उक्त बाघ, दरअसल तीन साल का शावक था और अपना निवास तय करने के साथ ही शिकार करना सीख रहा था. इसलिए बाघ को नरभक्षी नहीं कहा जा सकता. सोसायटी ने कहा है कि लोग ही बाघ के पास पहुंचे थे. अलावा इसके शिकार के अभाव के कारण भी वह इंसानों को उठाकर ले जा रहा था. सोसायटी ने मांग की है कि अब बाघ पकड़ने की नई तकनीक विकसित की जाए, जंगल में लोगों का बढ़ता अवैध हस्तक्षेप बंद किया जाए, बाघ के निवास स्थानों की निगरानी की जाए तथा बाघ-मानव संघर्ष को कम करने के लिए एक अध्ययन दल का गठन किया जाए.

Advertisement
Advertisement